वासनारहित जीवन होने पर ही खुलता मुक्ति का द्वार- शास्त्री

Support us By Sharing

वासना के कारण ही जन्म-मरण का बंधन

रामद्वारा धाम में चातुर्मासिक सत्संग के तहत पुरूषोत्तम मास की कथा

भीलवाड़ा, 22 जुलाई। जीवन जब तक वासना रहित नहीं होगा तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। वासना का जटिल बंधन हमे काटना है तो राम मंत्र का जाप व भजन करना ही होगा। संतों की सत्संग से ही इस बात को हम समझ पाएगे कि भजन किस तरह करना चाहिए जो हमारे बंधनों को तोड़कर मोक्ष मार्ग को सुगम बना सके। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने शनिवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत पुरूषोत्तम मास (अधिक मास) से जुड़ी कथा में व्यक्त किए। उन्होंने गर्ग संहिता के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि वासना के कारण ही जन्म-मरण का बंधन है। वासना का स्थान हमारे मन में होता है। जो हमारे मन में बस जाती है उसे ही वासना कहते है। जब तक शरीर है वासना पैदा होती रहेगी। शास्त्रीजी ने कहा कि शरीर का अंत होने पर भी वासना मन के साथ सम्बन्ध जोड़ लेती है। वासना ही हमारे परलोक का मार्ग भी तय करती है ओर वासना ही पुर्नजन्म का आधार भी होती है। हमे यह तय करना होगा कि हम वासना मुक्त होकर परलोक जाना चाहते है या वासनामय रहकर जन्म-जन्मांतर के बंधनों में बंधे रहना चाहते है। मुक्ति का द्वार वासनारहित जीवन से ही खुलता है। उन्होंने कहा कि इस भौतिकवादी युग में व्यक्ति वासना के जाल में फंस कर मुक्ति के लक्ष्य से भटक रहा है। सत्संग ऐसे भटके हुए प्राणियों को सन्मार्ग दिखाता पुनः मुक्ति की राह पर लाता है। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।


Support us By Sharing

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *