पिता को सादर-श्रद्धांजलि; 25 वीं पुण्यतिथि पर अपने ही पिता के नाम पर खुला पत्र
शाहपुरा- ’आज पूज्य पिताश्री श्रीताराचंद जी पेसवानी की 25 वीं पुण्यतिथि है। इस पुनित अवसर पर उनके चरणों में सादर श्रृद्वांजलि अर्पित करता हूं।’
29 जुलाई 1998 को मेरे पिताजी का देवलोक गमन होने का सांसारिक दुःख जीवन पर्यन्त रहेगा ही। क्योंकि वे हमारे परिवार के निजी सुरक्षा कवच और पथ प्रदर्शक थे। आज मैने जो भी सार्वजनिक क्षेत्र में मुकाम हासिंल किया है वह सब उनके मार्गदर्शन व आर्शिवाद से ही संभव है, क्योंकि मुझे कलम हाथ में सौंपने वाले मेरे पिताश्री ही थे। मेरे प्रथम गुरू भी वो ही थे।
’पिताजी, यह आपकी कड़ी मेहनत और अच्छे पालन-पोषण ने मुझे वह इंसान बनाया है जो मैं आज हूं। वर्तमान में, मैं आपके उन सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रहा हूं जो आपने मुझे दिखाये हैं। लेकिन पापा आप इस समय मेरे सुधार को देखने के लिए नहीं हैं। निश्चित रूप से देख तो रहे होगें तो जहां में भटक जाउ वहां पर ही मुझे रोक देना तथा सही रास्ते की ओर अग्रसर कर देना।’
प्रिय पिताजी, आपके हमें छोड़ने के बाद मुझे आपकी कीमत और आपके दर्द का अहसास है। एक बेटे के तौर पर मैं अपने पूरे परिवार का ख्याल रख रहा हूं। लेकिन मैं किसी भी तरह से आपके जैसा नहीं हो सकता। आपके स्वरूप में भाई सा व माताजी है जो आज भी मेरा ख्याल रखे है। एक छोटे भाई को भी आपने अपने पास बुला लिया है।
’पिताजी, आप मेरी जिंदगी के हीरो थे। मैं तुम्हारे बिना आज बहुत अकेला हूँ। मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है पिताजी । पिताजी, आपने जिस प्रकार से परिवार को एकसूत्र में बांध कर रखा तथा रिश्ते नातों को जिस उदारता से निभाया वो अपने आप में मिसाल थी। आपके रहते हम चार भाई बहनों में जो सामंजस्य रहता था, वो आज भी गूढ़ रहस्य बना है। आपका यह रहस्य नहीं समझ पाया तथा परिवार में नहीं कर पाया, जिसके कारण आज विषम परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। पिताजी इसे तो समाप्त कर परिवार पर आर्शिवाद बनाये रखे। अगर आप है तो आर्शिवाद रखे व मार्गदर्शन करें । मेरी कमी को स्वीकारने में मुझे कोई हर्ज नहीं है पर उम्र के इस पड़ाव में परिवार में विछोह बर्दाश्त के बाहर हो रहा है।’ आपके आर्शिवाद का हर सदस्य आकांक्षी है।
मुक्ति अथवा पुनर्जन्म का निर्णय तो मेरे पिताश्री की भौतिक देह से किये गए कर्म करेंगे, उसके बारे में हमारा सोचना ही अनुचित है। मैने/हमने हमारा कर्तव्य-कर्म निभाया अथवा नहीं, हमारे लिए यही विचारणीय है । वो तो चले गए, वापिस लौट कर आने वाले भी नहीं है और अगर हमारी इस भौतिक देह के रहते आते भी हैं तो हमें उनका अनुभव भी नहीं होगा ।श्रीमद भागवत में लिखा है कि यह संसार किसी एक चैराहे पर स्थित उस प्याऊ की तरह है, जहाँ सभी अपनी प्यास बुझाने आते हैं, कुछ समय एक साथ बैठते हैं और फिर अपने मार्ग पर आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं।
आदरणीय पूज्य पिताजी हमारे साथ रहते हुए ऐसा ही कुछ कर गए हैं और अपनी आगे की परालौकिक यात्रा पर निकल चुके हैं। हमें उनके जाने से यही सीख लेनी है कि यहाँ, इस संसार में सदैव के लिए कोई नहीं रहता है।
पत्ता टूटा डारि से, ले गयी पवन उड़ाय,
अबके बिछुड़े कबहूँ मिले, दूर पड़ेंगे जाय
’मेरे पिताजी ने कर्म को पूजा, परिश्रम को सेवा का फल, दीन हीन की सेवा सर्वोपरी तथा ईमानदारी को सदैव प्राथमिकता दी तथा जिंदगी भर इससे कभी समझौता नहीं किया। ये आदर्श ही मेरे लिए आज ब्रह्मवाक्य है। उनके बताये मार्ग पर चलने का पूरा प्रयास कर रहा हूं फिर भी मेरे अग्रजों से अनुरोध कि जब कभी भी इससे भटक जाउ तो मेरा हाथ पकड़ कर वहीं रोक देना। हालांकि पिता को दिये संकल्प के अनुसार ऐसा होने नहीं दूंगा।’
मेरे अच्छे पिताजी, मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह आपको हमेशा की तरह उत्साहित रखे। आज आपकी पुण्यतिथि पर, मैं आपकी शांति और शांति के लिए प्रार्थना कर रहा हूं। बस आर्शिवाद बनाएं रखे तथा परिवार को एक मुठी में बांधे रखे तथा चार भाईयों का परिवार एक बार फिर से समन्वय से खुशियों के साथ रह सकें।
एक बार पुनः पिताश्री के चरणों में शत शत नमन करते हुए परमपिता परमेश्वर ठाकुरजी से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के साथ मुझे व मेरे परिवार को आर्शिवाद प्रदान करें कि आपके बताये मार्ग पर आजीवन चलने का साहस बना रहे और इस सांसारिक मोह माया के युग आप द्वारा स्थापित आदशों पर चल सकूं।
’आज हम सभी परिवारजन आपकी 25 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उनको सादर श्रृद्वासुमन अर्पित करते है। आपकी पुण्यतिथि पर परिवारजनों द्वारा जो भी सामाजिक सरोकारों के तहत तुलसी पत्र जितना कार्य किया गया उसे स्वीकार कर आर्शिवाद व मार्गदर्शन बनाये रखे, मेरा पूरा पेसवानी परिवार आपके आर्शिवाद का आकांक्षी है।’
सादर
’मूलचन्द पेसवानी-बबलू’
पत्रकार-शाहपुरा(भीलवाड़ा)