बारह रसों से किया परशुराम का महाभिषेक

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पुरुषसूक्त व श्रीसूक्त की आहुतियों से महका लिमथान धाम

ठीकरिया| विप्र फाउंडेशन के तत्वावधान में लिमथान स्थित पूरा परशुराम धाम पर संचालित अनुष्ठान के तहत शनिवार को बारह फलों के रसों से भगवान परशुराम की प्रतिमा का महा अभिषेक किया गया। पंडित निकुंजमोहन के आचार्यत्व में संचालित इस कार्यक्रम में पंचकुंडीय विष्णु लक्ष्मी महायज्ञ भी किया जा रहा है। परशुराम धाम के संयोजक महेश जोशी ने बताया कि शनिवार को प्रातः पूजन में परशुराम व श्रीकृष्ण पूजन के स्थापित देवता पूजन हुआ। दिन में पुरुषसूक्त व श्रीसूक्त की सहस्त्राहुतियां दी गयी। कार्यक्रम में विप्र फाउंडेशन के बांसवाड़ा तहसील अध्यक्ष सुभाष पण्डया ने पात्रासादन पूजन विधि की। परशुराम धाम के सह संयोजक राजेन्द्र चौबीसा, विप्र फाउंडेशन के ग्रामीण महामंत्री, नवनीत त्रिवेदी, जिला महामंत्री विनोद पानेरी, लोकेश सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी उपस्थित रहे। पांचों यजमान में प्रधान यजमान अभिषेक जोशी, कांतिलाल भट्ट सालियां, मनोज चौबिसा, योगेश चौबीसा व विठला भाई ने सपत्नीक पूजन व यज्ञहुतियां दी गयी। पं. सतीश राज त्रिवेदी, पं. कैलाश जोशी, पं. पुनीत त्रिवेदी, पं. सतीश जोशी सहित 11 विप्रवरों के द्वारा सस्वर वेद पाठ किया जा रहा है। मानव कल्याण एवं विश्व शांति को लेकर लिमथान परशुराम मंदिर पर विप्र फाउंडेशन बांसवाड़ा द्रारा आयोजित तीन दिवसीय पंच कुण्डीय श्री विष्णु महायज्ञ के द्वितीय दिवस पर आचार्य निकुंज मोहन जी पंड्या ने भगवान परशुराम की पात्रासादन महापूजा एवं विभिन्न फलो के रस से महाभिषेक कर सहस्त्रार्चन किया। इससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। यज्ञाचार्य निकुंज मोहन पंड्या ने यज्ञ का महत्व बताते हुए कहा कि यज्ञ प्रकृति के निकट रहने का साधन है। रोग-नाशक औषधियों से किया यज्ञ रोग निवारण वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करके स्वस्थ रहने में सहायक होता है। यज्ञ शब्द यज एवं धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ है देव पूजा, संगति करण और दान। संसार के सभी श्रेष्ठ कर्म यज्ञ कहे जाते है। यज्ञ को अग्निहोत्र, देवयज्ञ, होम, हवन, अध्वर भी कहते है। जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है। परोपकार की सर्वोत्तम विधि हमें यज्ञ से सीखनी चाहिए। जो हवन सामग्री की आहूति दी जाती है उसकी सुगंध वायु के माध्यम से अनेक प्राणियों तक पहुंचती है। उसकी सुगंध से आनंद अनुभव करते है। सुगंध प्राप्त करनेवाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही याज्ञिक उन्हें जानता है फिर भी परोपकार हो रहा है। यज्ञ में विभिन्न प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते है। सुगंधित केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावंतरि आदि इसमें शामिल है। पर्यावरण को शुद्ध बनाने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। इस विराट आयोजन में कल्पेश कलाल, राकेश कलाल, खेमराज कलाल, प्रीतम चौबीसा, हर्षिल जैन, नित्यम जैन, पार्थ चौबीसा, निकिथ चौबीसा, मीत चौबीसा, हेमंत चोबीसा, यश चौबीसा, हेरंब चौबीसा, रानू चौबीसा,मंजू चौबीसा,निशा,योगिता, रोहित,मुन्नी चौबीसा अनीता चौबीसा सहित बड़ी संख्या में युवा व महिलाओं का सक्रिय सहयोग दे रहे हैं।


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