पाठा क्षेत्र में बेरोजगारों की बढ़ रही फौज सरकारी काम मिलता नहीं और जी हुजूरी की चाकरी में नहीं हो रहा गुजर बसर-क्षेत्रवासी
प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर बारा , शंकरगढ़ में शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और पलायन आदि समस्याओं में एक प्रमुख समस्या है। चिकित्सक विहीन अस्पतालें, बेरोजगारी, पलायन जैसी समस्याएं बरकरार हैं। क्षेत्र में तमाम संभावनाओं के बाद भी रोजगार की नीति नहीं बनी। हजारों बेरोजगार युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। यहां प्राथमिक शिक्षा तो ग्रामीण अंचलों के लोगों को मिल जाती है, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए आज भी छात्रों को बाहर जाना पड़ता है। लेकिन गरीबी होने के कारण बाहर जाकर पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ व महंगाई के चलते शिक्षा नहीं ले पाते हैं। बेरोजगारी की वजह से लोगों के बड़े शहरों की ओर पलायन हो जाने से शिक्षा का स्तर पर भी सुधार नहीं हो हो रहा है।प्रयागराज जनपद के तकरीबन सभी कस्बों में इंसानों की मंडी लगती है, जहाँ सूखे और बेरोजगारी से पस्त गरीब दिन भर के लिए खुद की बोली लगाते हैं। इसे तीर्थराज की बदकिस्मती कहें या कुछ और! सरकारी आकड़ो की बाजीगरी के चलते विशेष पैकेज और सौ दिन काम की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा भी यहाँ नाकाम साबित हो रही है।
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में रोजाना शहर के लगाते हैं चक्कर
जंगलो में बसे लोग दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में रोजाना शहर के चक्कर लगाते हैं। गांवों के गरीब आदिवासियो का कहना है कि रोजाना पन्द्रह, बीस, किलोमीटर की दूरी तय कर काम की तलाश मे शहर आना उनकी मजबूरी है, क्योंकि गांव में सरकारी काम मिलता नहीं और बड़े लोगों की चाकरी में बसर नहीं किया जा सकता। पाठा के आदिवासियों का कहना है सरकार जो सौ दिन का काम देने का दावा कर रही है वह पूरी तरह से असफल है, मनरेगा का सबसे ज्यादा फायदा तो ग्राम प्रधान और सचिव ले रहे है।
नैनी व घूरपुर में बंद पड़ी फैक्ट्री से हजारों युवाओं को मिल सकता था रोजगार
इंडस्ट्रियल एरिया नैनी व ग्लास फैक्ट्री घूरपुर की स्थापना हुई वह भी बंद पड़ी है। बंद पड़ी फैक्ट्री के चालू होने से हजारों युवाओं को रोजगार मिलता लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते चालू नहीं हो सकी। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा जब एक साथ पहल नहीं किया जायेगा तब तक ऐसे ही धूल फांकती रहेगी। इन फैक्ट्रियों के निर्माण में प्राइवेट सेक्टर के कई लोगों ने अपना- अपना साझा पूंजी निवेश कर रखा था।
भाषण नहीं रोजगार चाहिए
कामगारों के हालात बेहद खराब है। खेती के सिंचाई के लिए कोई साधन न होने से हमेशा सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है। जिसकी वजह से यहाँ के लोग कर्ज और मर्ज के शिकार हो गए हैं। लाखों किसानों पर अरबों का सरकारी कर्ज लद गया है। अदायगी न कर पाने पर किसान आत्महत्या कर रहे है, हलांकि सरकार यह मानने को तैयार नहीं है। लोगों की वेबसी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जनपद के कस्बों के चौराहों मे भोर से ही इंसानों की मंडी सजने लगती है। गांव देहात से आए गरीब हाथ मे फावड़ा कुदाल व डलिया लिए किसी सेठ महाजन के आने का बेसब्री से इंतजार करते मिल जाएंगे। जनपद में कई दशकों से डाकुओ का आतंक रहा है। अब यहां डकैतों से मुक्ति तो मिल गई लेकिन विकास के लुटेरे अब भी दिन के उजाले में विकास और सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को लूट रहे हैं। यहां न तो आवागमन के लिए पर्याप्त साधन है और न ही उद्योग-धंधे हैं। यहां बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है। केंद्र के साथ ही राज्य सरकार भी रोजगार देने के दावे तो कर रही है, लेकिन इसका कुछ खास परिणाम देखने को नहीं मिल रहा है। बातचीत के दौरान राजेश तिवारी ने कहा कि बेरोजगारी की समस्या का मर्ज दूर होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है।अगर डबल इंजन की सरकार में भी बेरोजगारी दूर नहीं हुई तो आखिर कब दूर होगी? सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। वही अपने विचारों को लवलेश द्विवेदी ने साझा करते हुए कहा कि स्थानीय जनप्रतिनिधि कभी भी बेरोजगारी का मुद्दा सदन में नहीं उठाते हैं। क्षेत्र में रोजगार ना होने से यहाँ की 70 प्रतिशत आबादी पलायन कर जाती है। यह सब जनप्रतिनिधियों के उदासीनता का जीता-जागता उदाहरण है। वहीं अवधेश सिंह का कहना है कि समूचे पाठा क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है। नौकरी की तलाश में युवा बड़े शहरों की तरफ भाग रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार रोजगार देने का दावा तो खूब कर रही है, लेकिन इसका कुछ खास परिणाम देखने को नहीं मिल रहा। बातचीत के दौरान युवा पत्रकार व समाजसेवी शिवम शुक्ला ने कहा कि चुनाव के समय नेता बेरोजगारी दूर करने का खूब वादा करते हैं। लेकिन चुनाव बीतने के बाद सब भूल जाते हैं। फिर चुनाव आ गया है और लोक लुभावने वादो की बरसात हो रही है। नेता काम नहीं सिर्फ वादा करते हैं।