भीलवाड़ा, मूल चन्द पेसवानी, संस्कृत भारती के विभागीय भाषा बोधन के अंतर्गत आज महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम जी के सानिध्य में हरी सेवा संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, भीलवाड़ा में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों में संस्कृत संभाषण के प्रति रुचि जागृत करना था।कार्यवाहक प्राचार्य श्री मोहनलाल शर्मा ने बताया कि मेघरास विद्यालय के संस्कृत व्याख्याता पंडित विष्णु शास्त्री ने अपने उद्बोधन में संस्कृत संभाषण पर जोर दिया और विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे इस प्रकार के कार्यक्रमों में अवश्य भाग लें, ताकि संस्कृत के प्रति उनकी रुचि बढ़े।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, चित्तौड़ प्रांत के सह मंत्री और रोपा विद्यालय के संस्कृत व्याख्याता डॉ. मधुसूदन शर्मा ने संस्कृत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कई उदाहरणों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। उन्होंने ज्योतिष शास्त्र, खगोल शास्त्र, विज्ञान और गणित जैसे विषयों पर अपने तर्क प्रस्तुत किए और बताया कि भारतीय संस्कृति किस प्रकार समृद्ध रही है। डॉ. शर्मा ने सोमनाथ मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि जो बातें वहां संस्कृत की पंक्ति के रूप में हजारों वर्ष पूर्व लिखी गई थीं, वे आज के वैज्ञानिकों द्वारा भी सत्यापित और प्रमाणित की जा चुकी हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम जी ने अपने आशीर्वचन में बताया कि संस्कृत देव भाषा है और प्राचीन ग्रंथ, वेद, पुराण और उपनिषद सभी संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और इस प्रकार के विस्तार भाषण कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित होते रहने चाहिए। स्वामी जी ने विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे संस्कृत के अध्ययन और संभाषण में रुचि लें, जिससे वे हमारी समृद्ध संस्कृति से जुड़े रहें।कार्यक्रम का संचालन श्री मोहनलाल शर्मा और छात्र अध्यापक आशुतोष सोनी ने किया। इस अवसर पर विद्यालय के सचिव श्री ईश्वर लाल आसनानी, विद्यालय का स्टाफ, श्री हेमंत जी, श्रीमती पल्लवी जी और धाम के कई संत भी उपस्थित रहे।
संस्कृत का महत्व और विद्यार्थी===
कार्यक्रम के दौरान, विद्यार्थियों ने संस्कृत के प्रति अपनी बढ़ती रुचि और उत्साह का प्रदर्शन किया। पंडित विष्णु शास्त्री और डॉ. मधुसूदन शर्मा के वक्तव्यों ने उन्हें प्रेरित किया और उन्हें समझाया कि संस्कृत न केवल एक भाषा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।विद्यार्थियों ने भी अपनी विचारधारा साझा की और बताया कि इस प्रकार के कार्यक्रम उन्हें संस्कृत के गहरे ज्ञान की ओर आकर्षित करते हैं। छात्रा राधिका ने कहा, “संस्कृत का अध्ययन करना हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमारे ज्ञान को समृद्ध बनाता है। इस कार्यक्रम ने हमें प्रेरित किया कि हम संस्कृत के प्रति अपनी रुचि को और बढ़ाएं।”संस्कृत शिक्षा की दिशा में कदमसंस्कृत भारती और हरी सेवा संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल विद्यार्थियों में भाषा के प्रति रुचि जागृत होती है, बल्कि उन्हें संस्कृत के महत्व और उसकी समृद्धि का भी एहसास होता है।
संस्कृत का भविष्य=======
डॉ. मधुसूदन शर्मा ने अपने भाषण में यह भी बताया कि संस्कृत का भविष्य उज्ज्वल है और यह भाषा आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा, “संस्कृत केवल एक प्राचीन भाषा नहीं है, बल्कि यह एक विज्ञान है, जिसमें ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के रहस्य छिपे हुए हैं। हमें इसे संरक्षित करना और अगली पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराना आवश्यक है।”
समापन और आभार=======
कार्यक्रम के समापन पर, प्राचार्य श्री मोहनलाल शर्मा ने सभी उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया और आशा व्यक्त की कि इस प्रकार के कार्यक्रम आगे भी आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा, “संस्कृत हमारी संस्कृति और धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें इसे संरक्षित करना और अगली पीढ़ी को इसके प्रति जागरूक करना हमारा कर्तव्य है।”इस कार्यक्रम ने न केवल विद्यार्थियों में संस्कृत के प्रति रुचि जागृत की, बल्कि उन्हें यह भी सिखाया कि यह भाषा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस प्रकार के आयोजनों से संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा मिलता है और विद्यार्थियों को हमारी प्राचीन संस्कृति के महत्व का एहसास होता है।