कामां 16 जून| गंगा दशहरा के पावन पर्व पर तीर्थराज विमल कुंड स्थित श्री हरि कृपा आश्रम के संस्थापक एवं श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गंगा मां जैसी शीतलता, पवित्रता, व निरंतरता से परिपूर्ण हमारा जीवन होना चाहिए। हम सभी को जागरुक होकर मां गंगा आदि नदियों की पवित्रता व सतत प्रवाह को बनाए रखते हुए जीवन को उनसे प्राप्त शिक्षाओं, प्रेरणाओं, संदेशों व उपदेशों को भी अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि गंगा,गाय, गीता,गायत्री, गोविंद ये पांचों भारतीय संस्कृति की महान धरोहर है। अन्य देशों के विचारकों ने भी इसको स्वीकार किया है और वह उसे अपनाने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु हम भारतवासी सहज में प्राप्त इन सभी का महत्व ना समझकर इनके लाभ से वंचित रह रहे हैं। यदि हम पाँच में से किसी एक की भी शरण ले लें तो मानव का कल्याण सुनिश्चित है।
उन्होंने कहा कि दूसरों को नुक़सान पहुँचाने वालों का अपना ही नुक़सान होता है यदि दूसरा हमें नुक़सान पहुँचाए तो हम बचाव की स्थिति अपनाएं। आक्रमक दृष्टि न होने दें, क्षमाशील बने। क्षमा कायरों का नहीं अपितु वीरों का आभूषण है। मानव पर जगत व जगपति दोनों का अधिकार है लेकिन मानव का इन पर अधिकार मानना अज्ञानता है। “जगत की चिंता करें जगत्पति” जगत को सुधारने की चिंता यदि हम करें तो जगत सुधरेगा या नहीं पर हम ज़रूर बिगड़ जाएंगे। समाज सुधारक नहीं समाज सेवक बनने का प्रयास करें।
इससे पूर्व प्रात काल में श्री महाराज जी ने बड़ी संख्या में भक्तों के साथ तीर्थराज विमल कुंड में स्नान, पूजन, दुग्ध अभिषेक व महाआरती की। श्री महाराज जी ने पंजाबी राजपूत समाज द्वारा मीठे जल की प्याऊ का व अनेक आयोजित भंडारों का उद्घाटन किया। दिनभर श्री हरि कृपा आश्रम में श्री महाराज जी के दर्शनों व दिव्य अमृत वचनों को सुनने के लिए भक्तों का तांता लग रहा।