जयपुर |अल्पसंख्यक वर्ग जैन समुदाय में चातुर्मास आज से प्रारंभ हुए । चतुर्मास का शाब्दिक अर्थ चा – चार गति का नाश करे, तु – तत्व की पहचान करे, र्मा – मोह माया का नाश करे, स – संयम की अभिलाषा l इस दौरान जैन श्रमण (साधु-साध्वी )चार माह तक एक ही स्थान पर निवास कर आत्मसाधना करेंगे और करवाएंगे। प्रवचनों और त्याग-तपस्याओं का वातावरण बनेगा। जैन श्रमणों के लिए यह आगमिक विधान है कि वे चातुर्मास काल में चार कोस अर्थात् शहर के प्राचीन चुंगी नाका की सीमा से 10 किलोमीटर के दायरे से बाहर नहीं जा सकेंगे। उल्लेखनीय है कि पक्खी पर्व होने के कारण चातुर्मास का शुभारंभ आज से हो रहा है ।
श्रमण डॉ पुष्पेंद्र ने बताया कि चातुर्मास के दौरान संस्कार,संस्कृति, सदाचार और संयम पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। श्रावक – श्राविकाओं एवं अनुयायियों को व्रत नियमों पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। चातुर्मास की उपयोगिता इसलिए अहम है कि इस दौरान श्रमण लोगों को नियमित प्रवचन और प्रेरणा देते हैं। इतिहासविज्ञ डॉ. दिलीप धींग ने बताया कि विभिन्न आध्यात्मिक साधनाओं से व्यक्तित्व विकास एवं सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास में अल्पसंख्यक वर्ग के जैन समुदाय में आश्चर्यजनक तपस्याएं की जाती हैं।
चातुर्मास के दौरान सादा व संतुलित भोजन किया जाता है
खाने में सादा भोजन,गरिष्ठ भोजन का त्याग किया जाता है। जमीकंद (आलू, प्याज,लहसुन,अदरक) का उपयोग नहीं करते। बीज,पंचमी,अष्टमी, एकादशी,चतुर्दशी तिथि पर श्रावक-श्राविकाओं द्वारा हरी सब्जी-फलों का पूर्ण त्याग किया जाता हैं।अधिकतर तौर पर बाजार की वस्तुओं का भी त्याग होता है।
एकासन- दिन में एक स्थान पर बैठकर एक बार भोजन करते हैं।
उपवास- एक दिन उपवास के दौरान खाना नहीं खाते,सिर्फ गर्म पानी का उपयोग करते हैं। अगले दिन नवकारशी आने के बाद पारणा करते हैं।
आयंबिल – नमक-मिर्च-हल्दी-घी-तेल-मिर्च मसाले रहित भोजन करते हैं।
इस अवसर पर राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद् के अध्यक्ष जिनेन्द्र जैन एवं संरक्षक अशोक बांठिया ने बताया कि चातुर्मास दौरान प्रमुख पर्व आज चातुर्मास प्रारंभ से लेकर जप, तप,त्याग,सामायिक,प्रतिक्रमण,श्रमण दर्शन आदि के साथ ही श्रावक – श्राविकाओं का उत्साह चरम पर होता है। इसी क्रम में 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा। श्वेतांबर समुदाय तीनों घटक इस बार सामूहिक रूप से 1 सितम्बर को पर्यूषण पर्व, 8 सितम्बर को संवत्सरी महापर्व की आराधना करेगा व दिगम्बर समुदाय के दस लक्षण पर्व का शुभारंभ 8 सितम्बर को होगा जिसका समापन 17 सितम्बर अनंत चतुर्दशी के रूप में होगा। 9 अक्टूबर को नवपद आयंबिल ओली पर्व,1 नवम्बर को तीर्थंकर भगवान महावीर 2551वां निर्वाण कल्याणक,2 नवम्बर को गणधर गौतम प्रतिपदा व वीर निर्वाण संवत् 2551वां शुभारंभ,6 नवम्बर ज्ञान पंचमी व 15 नवम्बर को चातुर्मास पूर्णाहुति होगी। चातुर्मास के चार माह के दौरान समय समय पर अनेक सामाजिक,धार्मिक,सांस्कृतिक कार्यक्रम,श्रमणों की जयन्तीयां और पुण्य तिथियां आदि आयोजन होंगे।
देश में कुल 20 हजार से अधिक श्रमण
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की वर्ष 2024 की जारी सूची अनुसार इस वर्ष श्रमण संघ साधुओं के कुल 84 चातुर्मास है एवं श्रमण संघीय साध्वियों के कुल 280 चातुर्मास है। इस प्रकार कुल मिलाकर श्रमण संघीय चतुर्थ आचार्य डॉ श्री शिव मुनि जी के दिशा निर्देश व आज्ञा से श्रमण संघ के 364 चातुर्मास है। वहीं श्रमण संघीय में साधुवृन्द की संख्या 221 और साध्वीवृन्दों की संख्या 960 है। पूरे भारत में जैन धर्म की चारों संप्रदायों, स्थानकवासी – पांच हजार,मन्दिर मार्गी – ग्यारह हजार,तेरापंथ आठ सो व दिगम्बर समुदाय 1600 साधु-साध्वियों की गणना होती है जोकि कुल संख्या लगभग बीस हजार के ऊपर है।