कामां 17 अक्टूबर|तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित श्री हरि कृपा आश्रम के संस्थापक एंव श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने कहा श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति विपत्तियों,बाधाओं व परेशानियों से लड़ने की क्षमता रखता हो वही जीवन के विकास का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है। महानता के काम करना लेकिन अपने को महान मत समझना। जीवन में वही आगे बढ़ सकते हैं जो व्यर्थ के उलझाव व टकराव से बचने की कोशिश करते हैं। संसार के सभी जीव मोह रूपी रात्रि में सोए हुए हैं मोह नींद में सोए उन जीवों को जगाने ही आते हैं सभी संत, महापुरुष यहां तक की परमात्मा भी। इस संसार रूपी रात्रि में मात्र परमार्थी व प्रपंच से वियोगी लोग ही जागते हैं। जीव को जगा हुआ तभी जानना चाहिए जबकि उसे सभी विषयों व विलासिताओं से वैराग्य हो जाए,उठो,जागो व अपने लक्ष्य की ओर बिना रुके तब तक चलते रहो जब तक कि तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
अपने दिव्य व ओजस्वी प्रवचनों में उन्होंने कहा कि भूतकाल से प्रेरणा लें, हो चुकी गलतियों को सुधारें, भविष्य के लिए योजनाएं चाहे बनाएं लेकिन वर्तमान में जीना सीख लें। सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय वर्तमान ही है। वर्तमान का ही उत्तम से उत्तम सदुपयोग करें। वर्तमान को छोड़कर मात्र भूत व भविष्य का चिंतन मूर्खता है। महाराज श्री ने कहा कि आज लोगों में सहनशक्ति का सर्वथा अभाव हो रहा है। किसी को एक दूसरे की बात अच्छी नहीं लगती। क्रोध व आवेश बात बात में आ जाता है। लेकिन ऐसा क्रोध व आवेश जिसके आने पर हम अपने होश खो बैठें, विवेक को जागृत ना रख सके, उचित अनुचित का बोध हमें ना रहे,हमारे जीवन के लिए अच्छा नहीं है। स्वस्थ व जीवित व्यक्ति की पहचान खून गर्म ,चेतना जागृत परंतु मस्तिष्क ठंडा रहना है व राष्ट्र में शांति व प्रेम,एकता तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए अच्छा है। उन्होंने कहा कि हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए क्योंकि अन्यान्य प्रार्थनाओं की अपेक्षा इससे आप स्वयं को परमात्मा के अधिक करीब अनुभव करेंगे।