भूख से तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे गोवंश
गौ संरक्षण केंद्र चकशिवचेर बना कत्ल खाना
प्रयागराज। जनपद में अन्ना गोवंशों की मौत को रोकने के लिए गौ संरक्षण केंद्र सूबे की सरकार द्वारा गांव कस्बे में खोले गए हैं लेकिन कत्लखाने की तरह पशुओं की मौत गौ संरक्षण केंद्रों में हो रही है आखिर गौ संरक्षण केंद्र की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है। योजना के संचालन में लगे सक्षम अधिकारी केवल फोटो खिंचवा कर शासन को रिपोर्ट भेजने तक ही सीमित हैं। जी हां चौंकिए मत हकीकत है कोई फसाना नहीं हम बात कर रहे हैं जनपद के यमुनानगर विकासखंड शंकरगढ़ क्षेत्र अंतर्गत गौ संरक्षण केंद्र चकशिवचेर की जहां स्थिति बद से बदतर है। भूसा और चारा के अभाव में भूख से तड़प तड़प कर गोवंश अपना दम तोड़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिम्मेदारों के मिलीभगत से गौ संरक्षण केंद्र कत्लखाने के रूप में तब्दील हो गया है।तमाम शिकायतों के बावजूद भी आला अधिकारी गौ संरक्षण केंद्र की बदहाली को ठीक करने का प्रयास नहीं कर पा रहे हैं जिससे गोवंशों की स्थिति बद से बदतर हो गई है। गोवंश सड़ा हुआ भूसा जो कि दूर से ही दुर्गंध मारता है उसे चाटने को मजबूर हैं। गोवंश तड़प – तड़प कर अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहे हैं। योगी सरकार भ्रष्टाचार को लेकर एक तरफ जहां जीरो टॉलरेंस की बात करती है वही उनके मातहत अधिकारी सरकार की इस नीति को ठेंगा दिखाते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं।गौ संरक्षण केंद्र में पशुओं की उपस्थिति का जितना आंकड़ा दर्ज करके प्रत्येक महीने राशन खर्च के नाम पर सरकारी खजाने से बजट उठाया जा रहा है हकीकत में उतनी संख्या में गौ संरक्षण केंद्र में पशु मौजूद नहीं हैं। जबकि चकशिवचेर मंदुरी सहित विभिन्न गौ संरक्षण केंद्रों के बाहर आए दिन लावारिस हालत में पशुओं की लाशें,हड्डियां और मांस के टुकड़े मिलते दिखाई देते हैं जिसकी जांच के नाम पर सिर्फ लीपापोती होती है। यहां तक की गौ संरक्षण केंद्रों में मौजूद पशुओं की टैगिंग न करने के पीछे जिम्मेदारों की सोची समझी साजिश है। किस तारीख को कितने पशु गौ संरक्षण केंद्र में भेजे गए उनका टैग नंबर क्या दर्ज है, किस टैग नंबर के कितने पशु की मौत किस तारीख को हो चुकी है इस आंकड़े का विवरण तक गौ संरक्षण केंद्र में मौजूद नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार गौशाला में गोवंशों को ना तो ठीक से भूसा दिया जाता है और ना ही कोई समुचित व्यवस्थाएं हैं। सारी की सारी व्यवस्थाएं बंटाधार हैं,कभी कभार गोवंशों को सूखा भूसा डलवा कर सिर्फ और सिर्फ कागजों की खानापूर्ति की जाती है।अब आखिर सवाल ये उठता है कि कब तक बेजुबान गोवंश जिम्मेदारों की मौन स्वीकृति से भूखे प्यासे तड़प-तड़प कर असमय काल के गाल में समाते रहेंगे।चारा भूसा के नाम पर धन हड़प कर अपनी तिजोरी भरने वाले इन जिम्मेदारों पर कब शिकंजा कसा जाएगा। बिहार का चारा घोटाला चर्चित जरूर रहा है मगर अब उत्तर प्रदेश में अगर गहनता से जांच हो जाए तो पता नहीं कितने रुपए का भूसा घोटाला सामने आ जाएगा। पता नहीं कितने जिम्मेदार सरकारी अफसर जेल के सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे। मगर ऐसा होगा नहीं क्योंकि पता नहीं कितने सरकारी अफसरों की कुर्सी के नीचे से जमीन खिसक जाएगी।