समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता नहीं देने की मांग को लेकर शाहपुरा में दिया ज्ञापन

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समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता नहीं देने की मांग को लेकर शाहपुरा में दिया ज्ञापन

शाहपुरा|एबीआरएसएम राजस्थान (उच्च शिक्षा) की शाहपुरा इकाई द्वारा सोमवार को समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता नहीं देने के संबंध में उपखण्ड अधिकारी शाहपुरा भीलवाड़ा को महामहिम राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा गया । इस अवसर पर डॉ अनिल कुमार श्रोत्रिय, धर्म नारायण वैष्णव जिला प्रचार प्रमुख, डॉ रंजीत जगरिया इकाई सचिव, दिग्विजय सिंह इकाई सहसचिव उपस्थित रहे।
संगठन के जिला प्रचार प्रमुख धर्म नारायण वैष्णव ने बताया कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इधर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, राजस्थान (उच्च शिक्षा) ने भी महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दे कर इस तरह के विवाह को कानूनी दर्जा दिये जाने का विरोध किया है। एबीआरएसएम राजस्थान (उच्चशिक्षा) से जुड़े शिक्षाविदों का कहना है कि भारत में ऐसा कानून बनाना भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विपरीत जाना है।
संगठन के जिला प्रचार प्रमुख धर्म नारायण वैष्णव ने बताया कि विश्व में जिस राष्ट्र को उसकी महान सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता हो, उस राष्ट्र में उसकी संस्कृति के बिल्कुल विपरीत एवं विवाह हेतु अप्राकृतिक आधार वाला समलैंगिक विवाह कानून भावी पीढी को अप्राकृतिक संबंधों की छूट देने वाला तथा विवाह रूपी पवित्र संस्था को ही विकृत कर देने वाला साबित होगा। इससे संपूर्ण भारतीय समाज का तानाबाना ही बुरी तरह प्रभावित होगा।
सुप्रीम कोर्ट जल्दबाजी में कुछ लोगों के लिए ऐसा कानून लाने की तैयारी कर रहा है, जिससे भविष्य में भारतीय समाज के करोड़ों लोग दुष्प्रभावित होंगे और नैसर्गिक नियमों के विपरीत नित नए विवादों के साथ अपसांस्कृतिक मूल्यों से भारतीय समाज की भयंकर हानि होगी। सुप्रीम कोर्ट को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। ज्ञापन में एबीआरएसएम से जुड़े शिक्षकों के हवाले से महामहिम राष्ट्रपति से ऐसे कानून पर रोक लगाने का निवेदन किया गया है।
विपरीत लिंगी ट्रांसजेंण्डर के विवाह के अधिकार को मान्यता देने में जल्दबाजी करना उचित नहीं है। यह मौलिक अधिकार नहीं है। इसे केवल भारत की संसद कानून बनाकर संरक्षित कर सकती है। भारत विभिन्न धर्मों,जातियों एवं उप जातियों का देश है, जिसमें शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को मान्यता दी गई है। विवाह केवल एक संस्कार ही नहीं अपितु दो विषम लिंगी व्यक्तियों का प्राकृतिक मिलन है, जिसके द्वारा संतानोत्पत्ति से मानवीय सभ्यता अक्षुण्ण रही है। दूसरी ओर, समलैंगिक विवाह अप्राकृतिक है एवं समाज के विघटन का कारण बनेगा। इस अवसर पर डॉ अनिल कुमार श्रोत्रिय,धर्म नारायण वैष्णव जिला प्रचार प्रमुख, डॉ रंजीत जगरिया इकाई सचिव, दिग्विजय सिंह इकाई सहसचिव  उपस्थित रहे।

मूलचन्द पेसवानी


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