श्री जोगणियां माता शक्तिपीठ मंदिर परिसर में स्थापित किया 52 फीट का त्रिशूल

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वैदिक विद्वानों और बटुकों द्वारा विधिवत पूजा अर्चना मंत्रोच्चार कर त्रिशूल को किया निर्धारित स्थल पर खड़ा

भीलवाड़ा।श्री जोगणियां माताजी मंदिर शक्तिपीठ जहां लोग अपराध छोड़ने का संकल्प लेते हैं और हथकड़ियां चढ़ाते हैं। लेकिन, कारोबार की मन्नत पूरी होने पर एक भक्त ने 52 फीट ऊंचा त्रिशूल भेंट किया है। लोहे से बने त्रिशूल पर नौ धातु की परत चढ़ाई गई है। आमेट (राजसमंद) के कबाड़ी व्यवसायी ने डेढ़ महीने में इसे तैयार किया है। मातेश्वरी के हाथ में स्थित त्रिशूल के तीनो शूल सत्व, रज और तम गुणों के प्रतीक हैं. मां ने इन तीनों के संतुलन से ही सृष्टि का संचालन किया था। सर्व प्रथम वैदिक विद्वानों और बटुकों द्वारा मंत्रोच्चार कर त्रिशूल को निर्धारित स्थल पर खड़ा किया गया। उसके पश्चात बेगू विधायक डॉक्टर सुरेश धाकड़, महंत नंदकिशोर दास महाराज, शक्तिपीठ संस्थान के अध्यक्ष सत्यनारायण जोशी, श्रवण गवारिया द्वारा भूमि पूजन कर त्रिशूल की प्राण प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार पूजन कर मातेश्वरी की आरती की। जिसमे निर्धारित स्थल पर त्रिशूल की विधिवत पूजा अर्चना कर परिसर में त्रिशूल को स्थापित किया गया। इस अवसर पर राम सिंह चुंडावत, रामेश्वर लाल गुर्जर प्रेम धाकड़ राजकुमार सेन, कन्हैया लाल मेवाड़ा, सीताराम धाकड़, रामनारायण मेवाड़ा शंभू लाल मीणा, शांतिलाल धाकड़, शंकर लाल धावाई, धनराज छिपा, महेंद्र कुमार सोलंकी सहित संस्थान के कई प्रदाधिकारी, भक्तजन व क्षेत्रवासी उपस्थित थे। राजस्थान के बेगूं (चित्तौड़गढ़) स्थित जंगल में पहाड़ी पर बने माता के मंदिर में 64 जोगणियां देवियों की प्रतिमाएं स्थापित है। यहां राजसमंद, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी और चित्तौड़गढ़ के भक्त पैदल दर्शन करने पहुंचते हैं। व्यवसायी श्रवण लाल गवारिया ने बताया कि उनका मणिहार और कबाड़ का व्यवसाय है। वे हमेशा जोगणियां माताजी की पूजा करते हैं और मानते हैं कि माता ने उन्हें सब कुछ दिया है। वह अपने परिवार और गांव की समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हुए माताजी के दरबार में अर्जी लगाते हैं। गांव में कोई गरीब भूखा न रहे, इस कामना को लेकर उन्होंने त्रिशूल भेंट किया है। उन्होंने बताया कि 52 फीट ऊंचा त्रिशूल लोहे से बनाया गया है, जिस पर ज्वेलर्स द्वारा अष्ट धातु (सोना, चांदी, तांबा, पीतल आदि) का लेप किया गया है। यह लेप इस उद्देश्य से किया गया है ताकि जादू-टोना या तंत्र-मंत्र का बुरा प्रभाव त्रिशूल पर न पड़े।


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