राजतंत्र में निर्मित तालाबों का मिटता जा रहा नामोनिशान लड़ रहे अस्तित्व की लड़ाई
प्रयागराज। कभी तालाब खुदवाना पुण्य का काम समझा जाता था मगर अब ठीक उसके उल्टा तालाबों पर कब्जा जमाने की होड़ है।हद यह है कि राजा रजवाड़ों की निशानी भी मिटती जा रही है।यमुनापार में मांडा व शंकरगढ़ रियासतों का अपना इतिहास रहा है। राजाओं ने तालाब भी बनवाए। अब वह बदतर हालत में हैं। कैसे थे राजा, रानी तालाब, अब कैसी है उनकी दशा, आज इस पर खास रिपोर्ट में हम आपको बताते हैं जैसा कि मांडा में मिट गया पांच सौ जलाशयों का वजूद प्रयागराज यमुनापार की मांडा रियासत कभी तालाबों की नगरी कही जाती थी।रियासत में मांडा के अलावा आज के उरुवा और मेजा ब्लाक भी शामिल थे।आज भले ही मांडा ब्लाक में सिर्फ 125 गांव हों,पर रियासतों के दौर में यह संख्या काफी ज्यादा थी।गांव के लोगों को पानी की दिक्कत न हो और जलस्तर बना रहे, इसके लिए राजा मांडा ने करीब पांच सौ तालाब खोदवाए थे। मांडा कोठी के चारों ओर तालाब था। लोग पूजा पाठ कर सकें, इसलिए मंदिर भी बनवाए गए थे वहां। कुछ तालाब आज भी हैं इतिहास को समेटे हुए। मल्हिया तालाब कोठी के दक्षिण में 35 बीघे में फैला है मल्हिया तालाब। दो साल पहले तक यह तालाब लबालब रहता था। पहाड़ी इलाकों से आने वाले पानी के साथ ही बरसात का जल इसमें संग्रहीत होता था। पहाड़ से आने वाले नाले पर अतिक्रमण हुआ और बरसात हुई नहीं नतीजा आज यह तालाब सूखा हुआ है। रानी का तालाब : मांडा कोठी के पश्चिम में है रानी का तालाब। 20 बीघे के इस तालाब के भीटे पर 1970 में ही पूर्व माध्यमिक विद्यालय बना दिया गया था। दो दशक पहले यहीं पर बीआरसी सेंटर भी बना दिया गया। सूखे तालाब में वर्तमान समय में करीब सौ मकान हैं। न कोई देखने वाला है न सुनने वाला। सिंघाड़े वाला तालाब कोठी के उत्तर दिशा में बनवाया गया था सिंघाड़ा तालाब। इस तालाब की जमीन पर लाल बहादुर शास्त्री सेवा निकेतन के नाम पट्टा कर दिया गया था। करीब तीस बीघे के इस तालाब में अब पब्लिक स्कूल चल रहा है। बेनी गिरि का सगरा कोठी के दक्षिणी छोर पर स्थित है बेनी गिरि का तालाब। 30 बीघे के इस तालाब के एक सिरे पर बस्ती आबाद हो गई है। जो थोड़ी बहुत जगह बची है, उसमें से पानी नदारद है। जिन लोगों ने तालाब पर कब्जा किया है, उन घरों का गंदा पानी भी तालाब में गिर रहा है। फूल सगरा भारतगंज में स्थित है फूल सगरा तालाब। तालाब के उत्तरी और पश्चिमी छोर पर कम से कम दो सौ मकान बने हुए हैं। इन मकानों का सीवर का पानी सीधे तालाब में गिरता है। 32 बीघे के इस तालाब का पानी कभी दाल पकाने के लिए प्रसिद्ध था। आज इसका पानी काला हो गया है। इसके अलावा राजापुर गांव में 32 बीघा रानी का तालाब, भंजनपुर ग्राम पंचायत में 50 बीघा राजा का तालाब, कुरहरा गांव में 57 बीघा राजा का तालाब भी सूखे हुए हैं। सूखे तालाब पर लगता है गुड़िया का मेला जैसा कि प्रयागराज के जनपद में गुड़िया तालाब कई हैं, पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पूर्वजों द्वारा बनवाया गया तालाब शंकरगढ़ में है।आराजी संख्या 228, 229, 230, 231 व 232 में तालाब 26 बीघे दर्ज है, पर हकीकत जुदा लगभग डेढ़ सौ घर यहां अवैध तरीके से बना लिए गए हैं। मौके पर अब आठ नौ बीघे ही तालाब बचा है,वह भी सूखा। नगर पंचायत शंकरगढ़ के वार्ड नंबर एक के चिकान टोला निवासी घनश्याम प्रसाद केसरवानी ने 2014 में हाईकोर्ट में गुड़िया तालाब में हुए अतिक्रमण को लेकर याचिका दाखिल की थी। इस पर कोर्ट ने तालाब से कब्जा हटवाने का आदेश दिया था। करीब 100 अतिक्रमणकारियों को नोटिस भी जारी की गई थी।तहसीलदार, एसडीएम आदि ने दौराकर हकीकत भी जानी, लेकिन अतिक्रमण बरकरार है। वहीं कुछ दिनों पहले कार्यवाही के दौरान 17 अवैध कब्जे को जेसीबी से धराशाई किया गया था लेकिन फिर भी लोगों ने और अवैध मकान को लेकर तहसील दिवस पर भी इसकी शिकायत की, पर हुआ कुछ नहीं।सबसे ज्यादा दिक्कत आती है गुड़िया मेले को लेकर। सूखे तालाब में अब गुड़िया का मेला लगता है। अब तो तालाब के भीटा पर भी कुछ कब्ज़ा शुरू हो गया है। दर्द है जुबां पर शंकरगढ़ नगर पंचायत के प्राचीन व धार्मिक गुड़िया तालाब में भूमाफिया द्वारा किए गए कब्जे के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने के बाद भी अतिक्रमण पूर्ण रूप से नहीं हटाया गया। इसके चलते नाग पंचमी के मेले में लोगों को दिक्कत उठानी पड़ती है। वहीं एक तालाब और है जो तीन साल से सूखा पड़ा है रहता है जो पंचमठा शंकरगढ़ के शिवराजपुर में एक और ऐतिहासिक तालाब पानी मांग रहा है। इस तालाब को बनवाने का श्रेय भी राजा शंकरगढ़ के पूर्वजों को है। तालाब के किनारे बना शंकरजी का भव्य मंदिर भी अपनी प्राचीनता की कहानी कहता है। मंदिर में पूजा तो आज भी होती है, पर तालाब की ओर अब कम ही लोग झांकते हैं। कारण तालाब पूरी तरह सूख गया है। कहा जाता है कि इस तालाब का नाम पंचमठा इसलिए पड़ा कि उस समय पांच सर्वश्रेष्ठ मठों से पानी लाकर इस तालाब में मिलाया गया था। गांव के लोग बताते हैं कि तालाब सौ साल पहले बनवाया गया था। दस बीघे के इस तालाब की देखरेख राजा के परिवार द्वारा ही जाती थी। यहां बने मंदिर में राजा व उसके परिजन पूजा करने आते थे। राज के इस तालाब को उनके वंशजों ने भी भुला दिया। वहीं और दो तालाब है जिसे गढ़वा दुर्ग किला पुरातत्व बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा सन 1750 ई. में स्थापित किया गया था परंतु आज उसको भी सिलिका सैंड माफियाओं द्वारा सिल्का सैंड डस्ट से पाटा जा रहा है प्रशासनिक अधिकारी सो रहे हैं जिनकी तालाब की देखभाल करनी थी, पर वह भी पीछे हट गये है। जों कि यहां भी शिवरात्रि पर्व पर बड़ा मेला आज़ भी लगता है वहीं इसी तरह अन्य तालाबों पर नाग पंचमी पर यहां मेला लगते है। लेकिन अब तालाब के सूखने से श्रद्धालुओं में निराशा व्याप्त है।आज के समय में कुछ नहीं सब जिम्मेदार अधिकारीयों के सुस्त रवैये का कारण बन गया है तालाब खत्म होता जा रहा है वहीं लोगों का अब कहना है कि तालाब वास्तव में राजा रजवाड़ों के समय ही सुरक्षित था पर आज की स्थिति में नहीं सब समय समय की बात है।