कामां में मिलावट का धंधा जोरों पर

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प्रशासन की नाक के नीचे बिक रहा जहर

कामां-मंडी बाजार के सामने की दुकानों पर 20 रुपये प्रति किलो की लागत का पनीर बिक रहा 300 रुपये किलो,
खाद्य विभाग में भारी भ्रष्टाचार व सरकार में नफरी की कमी है केंसर के रोगियों की संख्या बढ़ने का प्रमुख कारण।
रिफाइन्ड, पाम ऑयल,पाउडर तथा ग्लूकोज एवं वाइट स्टोन पाउडर से बना पनीर और देशी घी है कैंसर जैसी बीमारियों सहित अन्य घातक बीमारियों का जनक।
राज्य सरकार के नरम रवैये व खाद्य विभाग में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के चलते आज डीग जिले में कामां शहर की मंडी बाजार की सामने की दुकानें मिलावट की सबसे बड़ी मंडी बन गया है। जब-जब सरकार के निर्देश पर शुद्ध के लिए युद्ध का दिखावा हुआ है तब-तब दाल-घी-बेसन,पनीर-मावा से लेकर ड्राई फ्रूट्स सहित रसोई का हर सामान मिलावटी मिला है। मिलावट की सबसे बड़ी मंडी मेवात के कामां में नकली घी, पनीर, दूध-दही के अवैध रूप से संचालित व भ्रष्टाचार की छत्र छाया में फल फूल रहे हैं। दुकानों के कारखाने जहां 1 नही 2 नही बल्कि दर्जनों कारखाने संचालित है।
जहां बड़ी-बड़ी होद में दूध जैसा सफेद पानी रहता है। कारखाने में इस तरह दूध की हौद में हाथ से केमिकल्स मिलाये जाते है। भगौनो में रखा पनीर छूने पर रबड़ जैसा लगता है और थोड़ा सा चखने पर गले में भी खरास हो जाती है। जहां अंदर घुसते ही सड़ांध आने लगती है। बड़ा सा होद बना रखा है जिसमे वेस्ट भरा हुआ है। आगे ही एक डीप फ्रीज रखा हुआ है जो पूरा मिलावटी पनीर से भरा है और कारखाने में ही देसी घी में एसेंस रिफाइंड मिलाकर। उसे तैयार किया जा रहा है। जानकारी की तो पता चला 80 रुपऐ किलो की लागत से बना देसी घी 400 रूपए किलो में बिक रहा है और 15 रुपये किलो की लागत से बनने वाला पनीर यहां मंडी बाजार के सामने दुकान पर 300 रुपऐ किलो बेचते हैं और यही पनीर कारखाने से जयपुर,दिल्ली,नोएडा,मथुरा,दौसा सहित भरतपुर,पलवल,फरीदाबाद आदि स्थानों पर 200 रुपये से 250 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है। आखिर असली नकली की कैसे करें पहिचान…?
पहचान–पनीर का एक छोटा सा टुकड़ा अपने हाथ पर मसल कर देख लें अगर यह टूट कर बिखरने लग जाये तो समझ लीजिए पनीर मिलावटी है। क्योंकि इसके अंदर जो केमिकल होता है वह ज्यादा दबाब सह नही पाता और बिखरने लग जाता है। हमेशा एक बात और ध्यान रखे कि नकली पनीर हमेशा ही टाइट होगा वह एक रबड़ की तरह नही होता है। जब भी आप नकली पनीर खाएंगे तो रबड़ की तरह खिंचता चला जायेगा। इसलिए मिलावटी पनीर से बचें क्योंकि ये हमारे शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
– हकीकत तो यह है कि लोगों की सेहत से जुड़ा यह संवेदनशील मुद्दा सरकारों की प्राथमिकता में ही नही है। आबादी पर प्रदेश को जिले से तीन मंत्री देने के बाबजूद भी मात्र 2 ही खाद्य निरीक्षक है, जो सिर्फ नेताओ व अधिकारियों की जी हुजूरी व धन बसूली में व्यस्त रहते है।भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा कृतिम और मिलावटी दूध के कारोबार को लेकर देश भर में किये गए सर्वे में 68.4% से भी ज्यादा दूध के नमूने निर्धारित मानकों के अनुरूप नही पाये गए। जांचे गए नमूनों में 66%हिस्सा खुले दूध है। सिंथेटिक और मिलावटी दूध,दही, पनीर,खोया,बगैरहा यूरिया,डिटर्जेंट,रिफाइन्ड ऑयल,कास्टिक सोडा और सफेद पेंट आदि से तैयार किये जा रहे है। ये चीजें मानव जीवन के लिए बहुत घातक है क्योंकि इनसे कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी हो सकती है।

– देश में अरसे से चले आ रहे मिलावटी दूध के कारोबार पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ माह पूर्व सख्त रुख अपनाया था। उसने इस मामले में उदासीन रवैया रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया, क्या जब दूध में सायनाइड मिला दिया जाएगा और लोग मरने लगेंगे तभी सरकार इस मामले में कोई कड़ा कानून बनायेगी?
दूध में केमिकल की मिलावट ने इसे एक खतरनाक चीज बना डाला है। इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।लिवर और किडनी फेल होने जैसी जानलेवा बीमारियां भी केमिलकल मिले दूध व दूध से बने उत्पादों के कारण बढ़ रही है। दूध में अगर यूरिया आदि की मिलावट है तो मरीज को खून की उल्टी और लकवे जैसी समस्या आ सकती है। अधिक गंभीर परिस्थिति में इसके चलते मौत भी हो सकती है। व्यावसायिक रूप में गाय – भैंस पालने वालों से लेकर दुकानदार और ठेकेदार,सभी दूध की क्वालिटी से खिलवाड़ कर रहे हैं। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों के खाद्य और स्वास्थ्य विभाग ने इसे रोकने को लेकर आज तक गंभीर कदम नही उठाये हैं। सच तो यह है कि लोगो की सेहत से जुड़ा यह संवेदनशील मुद्दा सरकारों की प्राथमिकता में ही नही है। अधिकांश राज्यों में अभी फ़ूड सेफ्टी एन्ड स्टैंडर्ड एक्ट के तहत दोषी को अधिकतम 6 माह कैद की व्यवस्था है। यही कारण है कि सरकार के लचीले कानून की बजह से मिलावटखोर बेख़ौफ़ घूम रहे है।

नकली दूध बनाने के लिए रिफाइन्ड आयल और लिक्विड डिटर्जेंट का घोल तैयार किया जाता है। दूध में घी की मात्रा और आरएम वैल्यू बरकरार रखने के लिए केमिकल मिलाया जाता है। शुद्ध दूध की रिचर्ड मिसेल वैल्यू करीबन 30 से 35 होनी चाहिए। कई बार केमिकलों से निर्मित दूध फैक्ट्रियो में खरीद के दौरान फैट एवं आरएम (रिचर्ड मिशेल वैल्यू) के मामले में शुद्ध दूध की तरह ही खरा उतरता है। लेकिन इसे पीने से स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचता है। नकली दूध पानी में मिल्क पाउडर मिलाकर भी बनाया जाता है। चिकनाई के लिए रिफाइण्ड ऑयल और शैम्पू के इस्तेमाल होता है। दूध में झाग बनाने के लिए वाशिंग पाउडर और दूध के सफेद रंग के लिए सफेद पेंट(सफेदा)मिलाया जाता है।दूध में मीठापन लाने के लिए ग्लूकोज डाला जाता है। इसी तरह के कई और तरीके इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं।
ऐसा नही है कि इसे रोकने के लिए प्रयास नही किये जाते हो। लेकिन आज इसके बढ़ने का मुख्य कारण जिम्मेदार विभागों में आपसी सामंजस्य नही होने के साथ साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है।
अंत में सबसे बड़ा सवाल क्या सरकार के मुखिया समय रहते कोई कारगर और ठोस कदम उठा पाएंगे या फिर किसी बड़ी महामारी या त्रादसी होने का इंतजार करते रहेंगे…?


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