मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में
प्रयागराज।ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। बढ़ती महंगाई और इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध ने मिट्टी के दीपक का धंधा मंदा कर दिया है। दीपावली पर दीप मालिका जलाने की परंपरा काफी सदियों से चली आ रही है इस मौके पर कुंभकार मिट्टी के दीपक बनाकर अच्छी कमाई कर लेते थे मगर आधुनिकता की चकाचौंध में सदियों पुरानी परंपराओं का स्थान अब इलेक्ट्रॉनिक बिजली की झालरों और बल्बों ने ले लिया है। बढ़ती महंगाई की मार से कुंभ कारों के लिए खर्च और मेहनत ज्यादा मुनाफा कम होने की वजह से यह काम घाटे का सौदा साबित हो रहा है जबकि शास्त्रों के मतानुसार दीपावली में मिट्टी के दीपक जलाने और मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करने का विशेष महत्व है। कुंभकार करवा चौथ से ही मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेज कर देते हैं लेकिन इस बार कुंभकार कम संख्या में दीपक बना रहे हैं ऐसे में उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि महंगी मिट्टी व महंगा ईंधन खर्च कर ज्यादा मात्रा में बने दीपक नहीं बिके तो साल भर इन्हें पूछने वाला कोई नहीं होगा ऐसे में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम होने की वजह से इस व्यवसाय में युवा पीढ़ी जुड़ने से बचती है।
बाजारों में दीपोत्सव के 1 सप्ताह पूर्व ही मिट्टी के दीपक की बिक्री शुरू हो जाती है मगर महंगाई की मार और इलेक्ट्रॉनिक चलन की वजह से यह कारोबार धीरे-धीरे विलुप्त के कगार पर है। दीपक तैयार करने वाले कुंभ कारों ने बताया कि दीपोत्सव पर दीपक की मांग को देखते हुए 4 महीने पहले से इन्हें बनाने का काम शुरू हो जाता है दीपक के लिए बिना कंकड़ वाली मिट्टी खरीदते हैं जो काफी महंगी पड़ती है इस मिट्टी को धूप में सुखाकर छानतें हैं और गड्ढे में डालकर फुलातें हैं फिर खूब रौंदते हैं मिट्टी तैयार होने के बाद चाक पर मिट्टी का दीपक तैयार कर सुखाकर भट्ठे में पकाते हैं इस प्रक्रिया में लगभग 1 महीने का समय लग जाता है बावजूद उसके बाजारों में उचित कीमत नहीं मिलती जबकि इस समय ₹15 से ₹20 दर्जन तक ही बिकते हैं। ऐसे में दीपक बनाने का धंधा इसी तरह मंदा होता गया तो कुछ वर्षों में इस धंधे पर ग्रहण लग जाएगा और युवा पीढ़ी पूरी तरह से काम बंद कर देगा।