प्राकृत भाषा का उत्थान बहुत आवश्यक है – आचार्य सुनील सागर जी
नई दिल्ली |प्राकृत भाषा सिर्फ जैनागमों की भाषा ही नहीं है बल्कि यह आम भारतीयों की जनभाषा रही है इस भाषा ने भारत की मूल संस्कृति को सुरक्षित रखा है। अतः यदि हमें भारतीय मूल विचारधारा को जीवित रखना है तो भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का संरक्षण और संवर्धन बहुत आवश्यक है यह विचार आचार्य सुनीलसागर जी ने ऋषभ विहार ,दिल्ली में प्राकृत परिचर्चा के अवसर पर मंगल उद्बोधन देते हुए कहा कि प्राकृत हिंदी की दादी है क्योंकि प्राकृत के बाद अपभ्रंश और फिर हिंदी का जन्म हुआ ।
ग्यारह नवम्बर को ऋषभ विहार स्थित सन्मति समवशरण सभा मंडप में प्राकृत परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जैन दर्शन के वरिष्ठ मनीषी डॉ रमेशचंद जैन,बिजनौर (रोहिणी)ने कहा कि प्राकृत भाषा का प्रभाव भारत की सभी भाषाओं के ऊपर पड़ा है और इसका कथा साहित्य बहुत विशाल है ।
प्रो वीरसागर जैन जी ने प्राकृत को सरल और सुबोध बताते हुए कहा कि शास्त्रों प्राकृत और संस्कृत की तुलना स्त्री और पुरुष के स्वभाव से की गई है। उन्होंने कहा कि सभी भाषाओं की जननी प्राकृत भाषा है ।
डॉ श्रेयांस कुमार जैन जी,बड़ौत ने प्राकृत साहित्य को बहुत विशाल और व्यापक बताते हुए कहा कि हमलोग सिर्फ संस्कृत भाषा पढ़कर संतुष्ट हो जाते हैं जबकि बिना प्राकृत भाषा पढ़े और समझे हम संस्कृत साहित्य के सही भाव को नहीं समझ सकते उन्होंने आचार्य सुनीलसागर जी द्वारा रचित प्राकृत साहित्य की भी चर्चा की ।
प्रो अनेकांत कुमार जैन नई दिल्ली ने कहा कि एक समय था जब इजराइल की मूल भाषा हिब्रू पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी मात्र एक व्यक्ति को उसका ज्ञान था उस देश ने अपने उत्कर्ष के काल में उस एक व्यक्ति के आधार पर अपनी मूल भाषा हिब्रू को इतना उन्नत किया कि वो आज वहां की राष्ट्र भाषा है । हमारे लिए तो आज भी लगभग एक हज़ार लोग ऐसे हैं जो प्राकृत भाषा जानते हैं तो हम उसे क्यों नहीं उठा सकते। आज हमें जनगणना में अपनी मातृभाषा प्राकृत लिखनी होगी तभी इस भाषा को सम्मान प्राप्त होगा । सीए गौरव जैन ने प्राकृत भाषा के शिक्षण प्रशिक्षण पर बल दिया । आर्यिका माता जी ने आचार्य सुनीलसागर जी द्वारा विरचित प्राकृत साहित्य का विस्तृत परिचय दिया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री पंकज जैन आईएएस ने कहा कि मेरी शिक्षा आरम्भ से अंग्रेजी माध्यम से हुई मैं आईएएस बन गया लेकिन आज मुझे पता चल रहा है कि अपनी मातृभाषा की कितनी कीमत है।आज इसके बिना हम धर्म का मर्म नहीं समझ सकते हैं ।
आरम्भ में प्राकृत मंगलाचरण डॉ रुचि जैन ने किया तथा अंत में चैयरमैन श्री विजय जैन जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया ।