शिवराजपुर बैशा में पट्टे की जमीन को भूमाफियाओं द्वारा प्लाटिंग कर औने- पौने दाम में किया जा रहा खरीद फरोख्त

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शिवराजपुर बैशा में पट्टे की जमीन को भूमाफियाओं द्वारा प्लाटिंग कर औने- पौने दाम में किया जा रहा खरीद फरोख्त

प्रयागराज।ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। जनपद के यमुना नगर शंकरगढ़ क्षेत्र में इन दिनों सरकारी जमीनों पर भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टि इस कदर जम चुकी है कि जिसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।ऐसा ही एक मामला शंकरगढ़ क्षेत्र के ग्राम सभा शिवराजपुर मजरा बैशा में देखने को मिल रहा है। लगभग 72 बीघा जमीन जो गरीबों के नाम जीवन यापन के लिए बसपा शासन काल में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के समय 2007 में पट्टा दिया गया था। उस पट्टे की जमीन को भूमाफियाओं द्वारा गरीबों को लालच देकर बहला फुसलाकर औने पौने दाम में खरीद कर प्लाटिंग कर बेंचा जा रहा है।जबकि ग्राम प्रधान शिवराजपुर ने इस मामले में संपूर्ण समाधान दिवस बारा में लिखित शिकायत दर्ज करवाई थी। मामले को संज्ञान में लेते हुए उच्च अधिकारियों ने धारा 66 के तहत कार्यवाही की संस्तुति की थी। मगर आज तक कोई भी कार्यवाही न करते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इस बाबत जब हल्का लेखपाल नरेंद्र मिश्रा व आर आई ओम प्रकाश यादव से जानकारी ली गई तो उन्होंने हीला हवाली कर गोलमोल जवाब देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। नायब तहसीलदार राकेश यादव ने जवाब देना मुनासिब ही नहीं समझा।महिला ग्राम प्रधान शिवराजपुर नीलम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि ग्राम सभा के भूमिहीन गरीबों द्वारा तीन तालाबों पर झुग्गी झोपड़ी बनाकर गुजर बसर किया जा रहा है अगर ऐसे में मजरा बैशा की जमीन को भूमाफियाओं के चंगुल से मुक्त कराकर इन भूमिहीन गरीबों के नाम पट्टा कर दिया जाए तो तालाब का अतिक्रमण भी खाली हो जाएगा और इन्हें जीवन यापन करने का सहारा मिल जाएगा।

इना भू माफियाओं के खिलाफ नहीं हो रही कार्रवाई

बारा तहसील प्रशासन ऐसे लोगों को चिन्हित कर कार्रवाई करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। जिसके कारण इन का आतंक पूरे क्षेत्र में मकड़जाल की तरह फैल चुका है। एक तरफ शासन-प्रशासन अवैध रूप से कब्जा धारकों के खिलाफ कई टीमों को गठित कर दिशा निर्देश देते हुए कब्जा मुक्त कराने की हुंकार भर रहा है। लेकिन यही हुंकार शंकरगढ़ थाना क्षेत्र में इन अवैध कारोबारियों के आगे बौना साबित होता दिखाई दे रहा है।

कार्रवाई के नाम पर सुस्त अधिकारी

विभाग में बैठे आला अधिकारियों की बात की जाए तो देखने के लिए तो 1 दर्जन से अधिक अधिकारी हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर बौने बन जाते हैं। अब देखना होगा कि अधिकारी कार्रवाई करने के लिए कौन सा कदम उठाते हैं जिससे हो रहे अवैध कब्जे पर लगाम लग सके।


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