मोटे अनाज की खेती से बदल रही आदिवासी महिलाओं की जिंदगी
सज्जनगढ़, बांसवाड़ा, अरूण जोशी ब्यूरो चीफ: मोटे अनाज को उगाने के लिए जहां किसानों को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो वहीं इसके फायदे को भी डॉक्टर से लेकर डाइटिशियन के द्वारा भी खूब बताए जा रहे हैं । मोटे अनाज में शामिल सभी तरह के अन्न को केंद्र सरकार के द्वारा ‘श्री अन्न’ नाम दिया गया है. देश में मोटे अनाजों की खेती प्राचीन काल से होता आ रहा है. वहीं इसके सेवन से लोग बिना बीमारी के लंबा जीवन जीते थे. वर्तमान में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पन्न हो रहे अनाज के फायदे कम, दुष्प्रभाव ज्यादा है. यही बातें केसर देवी अपने गावो के लोगो को मोटे अनाज के फायदे को बताकर जहां जागरूकता फैलाई जा रही है। दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के घाटोल पंचायत गाँव घटीयन की केसर रंगलाल बामनिया 42 वर्षीय महिला 5 बीघा जोतवाली महिला किसान जो अपने खेत में मक्का, गेहूं, चना ,की खेती करती हैं, उनके पर 2 भैसे ,2 गाय और 3 बकरिया है मेरे परिवार में 2 बच्चे 1 लडकी है । केसर बामनिया की अपनी 5 बिघा जमीन को उत्साह से दिखाती हैं, यह जमीन कभी एक बंजर भूमि थी लेकिन अब यह जमीन उनके बच्चों की शिक्षा में मदद कर रही है। केसर देवी बताती है की गांव में ढलान पर स्थित इस जमीन का इस्तेमाल दो साल पहले तक मवेशियों के चरने के लिए किया जाता था। अब एक मोटे अनाज की खेती करने की तैयारी कर रही हैं। मोटा अनाज राज्य की पारंपरिक देसी फसल का हिस्सा रहा है जिसे एक लंबे अरसे तक भुला दिया गया था। अब वागधारा संस्था द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में, इसे पुनर्जीवित किया जा रहा है। इस मोटे अनाज में विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है जिनमें रागी,कुरी,बटी,कांग, कोदरा शामिल हैं। इन किस्मों में कुल खेती का 86 प्रतिशत से अधिक रागी की खेती होती है। अब तक, 20 हजार किसानो को मोटे अनाज का बीज देकर मोटे अनाज को पुनर्जीवित किया गया है और आमदनी एव पोषण मिल रहा है हुई। मोटे अनाज की खेती महिला किसानों के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती है मोटे अनाज की खेती अपनाने वाली महिला किसानों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जबकि अधिकांश महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों के साथ मक्का ,गेहूं की खेती करती हैं, ज़्यादातर जगहों पर मोटे अनाज की खेती पूरी तरह से महिलाएं कर रही हैं। इससे उन्हें एक स्वतंत्र आय और अपनी जोत को लेकर वित्तीय रूप से जागरूक होने में मदद मिलती है। बिना किसी भी अन्य आर्थिक आधार के केवल इस अतिरिक्त आय से केसर बामनिया अपने 10 वर्षीय बेटे की शिक्षा के अलावा, खुद को शिक्षित कर रही हैं। इस केसर कहती हैं, “यह दो कारणों से संभव हुआ, एक तो मेरे पास फीस देने के लिए अतिरिक्त पैसे थे, और दूसरा, चूंकि मोटे अनाज की खेती में अन्य फसलों की तरह समय नहीं लगता है, इसलिए मेरे पास नई चीजें सीखने के लिए बहुत खाली समय है।
केसर अपनी 3 जमीन पर तीन अलग-अलग किस्म की फसल उगाती हैं। पिछले सीजन में उसने चार क्विंटल उपज लगभग 3,579 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब बेचा था। दूसरी तरफ साथ-साथ वह मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग 2000 रुपये लेती हैं। 2023 में, उन्होंने 250 ग्राम बीज से खेती की शुरुआत की और अब एक साल में 5 क्विंटल मिलेट का उत्पादन करती हैं।महिलाएं अपनी उपज का एक हिस्सा स्थानीय बाजारों में भी बेचती हैं, जिससे उन्हें और भी अधिक कीमत, 50 रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है।
जिला बांसवाडा आनदंपूरी तहसील के गाव सुन्दराव गांव में 41 वर्षीया ईलादेवी निनामा अपनी 3 बीघा जमीन पर मोटे अनाज की खेती करती हैं, जिससे एक सीजन में पांच क्विंटल उत्पादन होता है। वह कहती हैं, “हम इसे न केवल बाज़ार में बेचते हैं, बल्कि सेहत के लिए तमाम फायदे को देखते हुए घर पर भी इसका सेवन करते हैं।” ईलादेवी निनामा ने बताया, “हम खेती से जो पैसा कमाते हैं, उसका प्रबंधन मै करती हु और मैं आर्थिक रूप से खुद को स्वतंत्रत महसूस करती हूं।” वागधारा संस्था के तहत बड़े पैमाने पर मोटे अनाज को पुनर्जीवित किया जा रहा है। मिलेट शुष्क क्षेत्रों में वर्षा आधारित कम कीमत वाली फसल के रूप में जाना जाता है।मिलेट से राज्य के आदिवासी जिलों में महिला किसानों को आजीविका के अवसरों को बढ़ाने और आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने में सहायता मिल रही है। ये जानकारी महेश सोनी ने दी।