जल जीवन मिशन योजना अधिकारियों की अनदेखी से ठेकेदारों की मनमानी से चढ़ रही भ्रष्टाचार की भेंट
प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर विकासखंड शंकरगढ़ में जल जीवन मिशन के तहत नल जल योजना के कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। ज्यादातर गांवों में घटिया स्तर की पाइप लाइन डाली जा रही है यही नहीं पाइप लाइन को गहराई में भी नहीं दबाया जा रहा है, इससे पाइपलाइन जमीन के ऊपर से ही दिखाई दे रही है एवं इसके क्षतिग्रस्त होने की आशंका है। इसके अलावा नल जल योजना के जिस संवेदक को जहां मौका मिला वही लाखों की लूट कर ली कुछ पाइप को मिट्टी के नीचे दबाया फिर विभाग से अपना भुगतान पाया और चलते बने। वहीं लोग शुद्ध पानी की आस में नल के टोटी और पाइप को ही निहार रहे हैं।लेकिन सरकार की इस योजना को भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है और जिम्मेदारों ने आंखें बंद कर ली हैं। इतना सब कुछ हो रहा है विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की सह पर इस भ्रष्टाचार से अधिकारी भली-भांति परिचित है लेकिन सब का अपना-अपना हिस्सा तय है। नलों से घर में पानी आने के पहले ही योजना के सरकारी पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा है। जनता तक पानी पहुंचे ना पहुंचे लेकिन इस भ्रष्टाचार का पैसा ठेकेदार से लेकर अधिकारी और नेताओं तक जरूर पहुंच रहा है।गौरतलब है कि शंकरगढ़ क्षेत्र के तमाम ग्राम पंचायतों के गांवों में महीनों पहले रोड को खोदकर छोड़ दिया गया है। जिसमें आज तक न तो पाइप डाला गया ना ही उसे बंद किया गया जिससे ग्रामीणों और राहगीरों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।नल कनेक्शन मिलना तो दूर ठेकेदार अधूरा काम छोड़कर लापता हैं और विभागीय अधिकारी आंखें बंद किए हुए हैं। सूत्रों की माने तो यह किसी एक गांव का मामला नहीं है इस तरह से पूरे क्षेत्र में ठेकेदारों ने घटिया किस्म की सामग्री इस्तेमाल कर पाइपलाइन आधे गांव में जमीन के अंदर तो आधे गांव में सीसी रोड की बनी नाली में खुला डाल दिया जाता है जो पूरी तरह खराब होने से नकारा नहीं जा सकता। नलों से पानी तो ग्रामीण वासियों को तब नसीब होगा जब गुणवत्ता पूर्वक योजना को अंजाम दिया जाएगा। सरकार कितने भी दावे कर ले कि ग्रामीण विकास की और उसका ध्यान है लेकिन सरकार की योजनाओं में पलीता लगाने का काम अफसर शाही की मिली भगत से ठेकेदार कर रहे हैं। और सब आंखें मूंदकर सरकारी खजाने को लुटता हुआ देख रहे हैं जनता की परेशानी अभी भी परेशानी ही बनी हुई है। ग्रामीण महिलाएं दूर दराज के कुआं से पानी लाने को मजबूर हैं या फिर निजी पैसे से पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब सब कुछ जनता को ही करना था तो सरकार क्या करेगी जनप्रतिनिधि जनता के दुख दर्द को कब समझेंगे।