ईश्वर कृपा से जो भी मिला है उसका सदुपयोग करेंः-हरिचैतन्य पुरी

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कामां। तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित हरिकृपा आश्रम के संस्थापक स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि हम सभी अपने महापुरुषों,तीर्थों, शास्त्रों व परमात्मा के विभिन्न अवतारों से प्राप्त होने वाले शिक्षाओं,प्रेरणाओं उपदेशों को मात्र अपनी कमियों को छुपाने के लिए ढाल ही न बनाये बल्कि अपने जीवन में उतारकर कल्याणमय मार्ग पर आगे बढ़ें। और मानव जीवन की सार्थकता मात्र पशु तुल्य अपने तक ही सीमित रहने में नहीं अपितु किसी के काम आने में है। ईश्वर कृपा से प्राप्त धन,बल,पद, सामर्थ प्राप्त आदि का भोग या उपयोग ही नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। पांच कर्म इन्द्रियां व पांच ज्ञानेन्द्रियां इन दसों इंद्रियों को चाहे सांसारिक कर्तव्यों के पालन में लगाएं लेकिन एक मन को जो कि परमात्मा की ही अमानत है उसे उसके सिमरन भजन में लगाना चाहिए। संग का भी जीवन में सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। संग अच्छा करना चाहिए, भोजन भी सात्विक, संयमित, संतुलित ही ग्रहण करना चाहिए।थोड़ी सी विषमता होने पर घर परिवार व समाज में अशांति पैदा हो जाती है, लेकिन भगवान शंकर तो इतनी विविधताओं, विषमताओं यहां तक कि एक दूसरे के स्वभाविक शत्रुओं को समेट कर बैठे हैं। इन विविधताओं व विषमताओं के बावजूद उनके परिवार में आपसी प्रेम और सदभाव बरकरार  रहता है।


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