कुंडलीगत किसी योग या दोष को छिपाकर कृत्रिम जन्म पत्रिका बनाना हेय कर्म है, इससे बचा जाना चाहिये-पं. अशोक व्यास
शाहपुरा|परंपरा और आधुनिकता के संधि काल से गुजरते इस संक्रमण कालीन युग में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को धार्मिक मान्यताओं पौराणिक आख्यानों तथा लोक परंपराओं के बीच उलझा हुआ और असमंजस में पाता है। ऐसी संभ्रम पूर्ण स्थिति के कारण भारतीय हिन्दू समाज में वैवाहिक संस्कार मे मंगल ग्रह को लेकर भी उलझी हुई मानसिकता बनी रहती है।
ज्योतिष विद्वानों मे मतान्तर तथा ग्रन्थों से उपजे अन्तर्विरोधों के कारण आज परित्याग वैधव्य हिंसा प्राताडना तथा आत्मघात सरीखी बातों के लिये मंगल को जिम्मेदार ठहराते हुये अभिभावकों तथा विवाह योग्य युवक युवतियों के मन मे मंगल को लेकर अमंगल हो जाने की आशंका गहरे बैठती जा रही है।
ज्योतिष नगरी के नाम से विख्यात राजस्थान के कारोई गाँव में सिद्धि विनायक ज्योतिष केन्द्र के अधिष्ठाता पंडित अशोक व्यास कारोई का कहना हैं कि भारतीय समाज में गृहस्थाश्रम सामाजिक गतात्यकता की केन्द्रीय सत्ता है। गृहस्थ व्यक्ति पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति करता हुआ अपने सामाजिक ऋणों का भुगतान करते हुये पारिवारिक दायित्वों कर्तव्यों निर्वहन करता है। भारतीय समाज मे वैवाहिक जीवन का वरण केवल वैयक्तिक स्वार्थों की पूर्ति के लिये नही किया जाता वरन् उस पर भावी पीढ़ी निर्माण का भी दुष्कर दायित्व होता हैं। ऐसे में कुंडलीगत किसी योग या दोष को छिपाकर कृत्रिम जन्म पत्रिका बनाना हेय कर्म है। इससे बचा जाना चाहिये।
अपनी राजनीतिक भविष्यवाणी तथा चुनावी अनुष्ठानों के कारण राजनीतिक क्षेत्र में खासे लोकप्रिय पंडित अशोक व्यास का मानना है कि भारतीय जीवन पद्धति में विवाह मात्र दैहिक सम्बन्ध अथवा सामाजिक अनुबन्ध न होकर पंचमहाभूतों नवग्रहों तैंतीस कोटि देवों और व्यापक परिजनों पुरजनों की साक्षी में वैदिक ऋचाओं द्वारा अभिमंत्रित सप्तपदी के माध्यम से सात जीवन तक एक दूसरे के सुख दुख में सहभागी होने का सात्विक संकल्प माना जाता है। किन्तु बदलते हुये सामाजिक परिवेश तथा भौतिकवाद के बढ़ते आभामंडल ने विवाह रुपी सात्विक संस्कार को भी दूषित कर दिया है।
पंडित अशोक व्यास ने बताया कि जिस प्रकार से अन्य सामाजिक शारीरिक आर्थिक या व्यावहारिक समस्याओं का निदान तलाश किया जाता है। उसी गंभीरता से कुंडली गत दोष का निवारण भी शास्त्रों मे उल्लिखित हैं। पंडित अशोक व्यास ने कहा कि ज्योतिषीय अध्येता होने के नाते मुझे इस बात का क्षोभ और खेद अनुभव होता है कि कुंडली में मंगल की स्थिति को लेकर जो अर्द्धविकसित अतार्किक अशास्त्रीय और अनर्गल विवेचन विवेचन प्रसारित हुये हैं। उनसे मंगल को लेकर अमंगल होने की बेजा धारणा समाज मे व्याप्त हुई है।