बांसवाड़ा| जिले के कुशलगढ़ तहसील के गांव देवदा साथ में वाग्धारा गठित कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन ने सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से तालाब की मरम्मत, जल रिसाव को रोकने और वृक्षारोपण का कार्य सफलतापूर्वक संपन्न किया। इस कार्यक्रम में कुल 103 लोगों ने श्रमदान कर योगदान दिया, जिससे लगभग 60 मानव श्रम दिवस का कार्य पूरा हुआ।कार्यक्रम की शुरुआत में वाग्धारा गठित कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन के पदाधिकारी शंकरलाल देवदा ने हलमा के बारे में कहा की हलमा पारंपरिक आदिवासी प्रथा है, जिसमें सामुदायिक सहयोग कार्यों को पूरा किया जाता है। यह प्रथा पारस्परिक सहयोग और समर्थन के माध्यम से समुदाय की समृद्धि और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है। हलमा के माध्यम से कृषि कार्यों में सहायता मिलती है और सामुदायिक एकता और भाईचारा भी मजबूत होता है।सरपंच धार्मिका देवदा ने हलमा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह प्रथा न केवल कृषि कार्यों में मदद करती है, बल्कि समुदाय की एकता, सांस्कृतिक पहचान, और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देती है। वर्तमान समय में, जब पारंपरिक प्रथाएं और मूल्य लुप्त हो रहे हैं, हलमा जैसी प्रथाएं आदिवासी समाज की समृद्धि और स्थायित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह आवश्यक है कि इन पारंपरिक प्रथाओं को समझा जाए, प्रोत्साहित किया जाए, और आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाए।ग्राम पंचायत के वार्ड पंच राजू देवदा ने हलमा के माध्यम से तालाब की मरम्मत और जल संरक्षण का उदाहरण पेश किया। तालाब की गहराई बढ़ने से उसकी जल संग्रहण क्षमता में वृद्धि होगी और जल रिसाव से जलस्रोत की मरम्मत की गई। तालाब के आसपास छायादार पौधों का वृक्षारोपण भी किया गया, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा। यह कार्यक्रम अन्य गांवों को भी प्रेरित करेगा।स्थानिय समाजसेवी रमजी भाई देवदा ने समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि हलमा सामुदायिक सहयोग और विश्वास को बढ़ाता है। यह पर्यावरण-संवेदनशील प्रथा है, जहां स्थानीय संसाधनों का सतत उपयोग और संरक्षण होता है। सामूहिक श्रम से कृषि कार्यों में बाहरी संसाधनों की आवश्यकता कम हो जाती है। हलमा पारंपरिक ज्ञान और तकनीकों को सुरक्षित रखने का माध्यम है, जिससे आदिवासी समुदायों में स्थानीय और पारंपरिक कृषि तकनीकों का हस्तांतरण सुनिश्चित होता है। सामूहिक श्रम और सहयोग के माध्यम से समुदाय अपने कृषि कार्यों को खुद ही पूरा कर सकता है, जिससे बाहरी सहायता पर निर्भरता कम हो जाती है। कार्यक्रम को सफल बनाने में नर्सिंग कलारा, गोरसिंह, बदार, देवदा, शंकर भाई, भुरजी भाई, कोमजी भाई, जागू देवदा, कमली मईडा, सुमित्रा देवदा, कुसुम देवदा, निर्मला संतोष देवदा, बादर देवदा, हकरी देवी, काली देवी, पुजीबाई, लक्ष्मी, पूजा, शारदा, मजुला, पदम, जस्सू, दीपक पारीक, और दीपिका कटारा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।