घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में सावन महोत्सव शुरू

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शिवाड़ 22 जुलाई। घुश्मेश्वर द्वादशवा ज्योतर्लिंग महादेव मंदिर में सावन महोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ शोभा यात्रा ध्वजारोहण के साथ हुआ।
घुश्मेश्वर मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष प्रेम प्रकाश शर्मा ने बताया कि श्रावण के प्रथम सोमवार के 12 गौतम आश्रम से मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेवा प्रमुख शिव लहरी, विशिष्ट अतिथि हरदेव अर्जुन ज्योतिष आचार्य पंजाब महाराज मनीष दास निवाई व्यासपीठ पंडित बाल विजय शास्त्री ने शोभा यात्रा का शोभारंभ किया। शोभा यात्रा के आगे आगे वेद विद्यालय के विद्यार्थी धरम ध्वजा पताका हाथों में लिए घोड़ी पर चल रहे थे इनके पीछे बजरंग दल अखाड़े के पहलवान अपने करतब दिखाते हुए चल रहे थे। बैंड बाजों के साथ श्रद्धालु भोले बाबा के मधुर भजनो पर नाचते गाते हुए चल रहे थे पीछे जिप्सी में मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि चल रहे थे और उनके पीछे सजीव झांकियां शिव, भक्त पार्वती, गणेश,शंकर के राक्षस गण ट्रॉली में चल रहे थे। शोभा यात्रा कुशवाह, नाथ मोहल्ला, कल्याणजी मंदिर मुख्य बाजार लक्ष्मीनारायण मंदिर, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय होती हुई शिव मंदिर पहुंची। जहां मुख्य अतिथि शिव लहरी विशिष्ट अतिथि हरदेव अर्जुन ज्योतिषाचार्य मनीष दास महाराज ने अपने हाथों से ध्वजा पताका का विधि विधान के साथ पूजन किया व मंदिर शिखर पर ध्वजारोहण किया।
उन्होने बताया कि महोत्सव के दौरान प्रत्येक सोमवार को कालरा भवन में विशाल भजन संध्या होगी जिसमें दूर दराज राज्य के कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देगें।
सावन के पहले सोमवार को भोले के श्रद्धालुओं का सुबह से ही आने का सिलसिला शुरू हुआ जो दिन भर चलता रहा दिन भर बादल छाए रहने एवं रिमझिम बारिश के चलते मौसम सुहावना रहा है।
घुश्मेश्वर महादेव मंदिर में श्रवण शुरू होने के साथ कावड़ यात्रियों का आना प्रारंभ हो गया। कावड़ यात्रा सदस्य विकास गुर्जर ने बताया कि श्रवण शुरू होने साथ प्रथम सोमवार को शिवाड़ का कावड़ियो द्वारा बनास नदी पर जा करके वहां से बनास नदी का जलाकर के भोले बाबा का जला अभिषेक कराया गया। यह शिवाड़ की चतुर्थ कावड़ यात्रा है विकास गुर्जर ने बताया कि पौराणिक काल में जब देवताओं और दैत्य ने मिलकर समुद्र मंथन किया था वह समुद्र से 14 रत्न निकले थे इन रत्नों में हलाहल विष भी था जिसे देवताओं के विनय पर भगवान शिव ने पी लिया था कहां जाता है कि जब भगवान शिव ने वह जहर पिया तो वह इतना ज्यादा तीखा था कि उसे पीते ही उनका पूरा गला नीला पड़ गया इसलिए उनका नाम नीलकंठ भी है भगवान शिव के शरीर में दहकती हुईं गर्मी को कम करने के लिए देवताओं ने उन पर जल की बारिश की इस तरह भक्तों ने भी भोले बाबा का जला अभिषेक किया तब से सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक होता है देश की पवित्र नदियों से सभी राज्य में पवित्र नदियों से जलाकर उन पर चढ़ाया जाता है ताकि प्रतीक तौर पर ही सही भगवान शिव की गर्मी खत्म हो जाए जलाभिषेक पूरे सावन माह होता है मगर सबसे ज्यादा भीड़ सोमवार, त्रयोदशी प्रदोष व्रत को होती है इस दिन लाखों की संख्या में भगवान शिव की आराधना करते हैं।
विकास गुर्जर ने बताया कि कावड़ जल की महत्व को स्थापित करने वाला कार्य है इसलिए लाखों शिव भक्त हजारों मिल पैदल चलकर पवित्र नदियों से जल लाकर भगवान शिव पर चढ़ते हैं तो जल का महत्व व संस्कृति का पता चलता है।


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