ईश्वर कृपा से जो भी मिला है उसका सदुपयोग करें :- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु
कामां 30 जुलाई|तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित श्री हरि कृपा आश्रम के संस्थापक एंव श्री हरिकृपा पीठाधीश्वर स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरिकृपा आश्रम में भक्तो को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी अपने महापुरुषों, तीर्थों, शास्त्रों व परमात्मा के विभिन्न अवतारों से प्राप्त होने वाले शिक्षाओं, प्रेरणाओं उपदेशों को मात्र अपनी कमियों को छुपाने के लिए ढाल ही न बनाये बल्कि अपने जीवन में उतारकर कल्याणमय मार्ग पर आगे बढ़ें। और मानव जीवन की सार्थकता मात्र पशु तुल्य अपने तक ही सीमित रहने में नहीं अपितु किसी के काम आने में है। ईश्वर कृपा से प्राप्त धन, बल, पद, सामर्थ्य प्राप्त आदि का भोग या उपयोग ही नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। पाँच कर्म इन्द्रियां व पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ इन दसों इंद्रियों को चाहे सांसारिक कर्तव्यों के पालन में लगाएं लेकिन एक मन को जो कि परमात्मा की ही अमानत है उसे उसके सिमरन भजन में लगाना चाहिए। संग का भी जीवन में सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। संग अच्छा करना चाहिए, भोजन भी सात्विक, संयमित, संतुलित ही ग्रहण करना चाहिए।थोड़ी सी विषमता होने पर घर परिवार व समाज में अशांति पैदा हो जाती है, लेकिन भगवान शंकर तो इतनी विविधताओं, विषमताओं यहाँ तक कि एक दूसरे के स्वभाविक शत्रुओं को समेट कर बैठे हैं। इन विविधताओं व विषमताओं के बावजूद उनके परिवार में आपसी प्रेम और सदभाव बरक़रार रहता है।
अपने दिव्य प्रवचनों में उन्होंने कहा कि संत रूपी बादलों द्वारा जो सत्संग रुपी वर्षा होती है उसमें अपने मन की कलुषता व विकारों को धोकर मन को पावन बनाना है। जैसे बादलों को देखकर मोर व पपीहा मगन हो नृत्य करने लगते हैं, तथा पीहू पीहू की धुनि लगाने लगते हैं। ऐसे ही संत व भक्तों को देखकर हमारा मन मयूर भी यदि नाचने न लग जाए, सत्संग की वर्षा में हम मन को पावन न करें तथा अपने पिया (परमात्मा) को याद न करने लगे तो इसे दुर्भाग्य ही समझना चाहिए। जगत की यथासंभव व यथासामर्थ्य सेवा एवं परमात्मा से प्रेम करना चाहिए।
आज आश्रम पर बृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें महाराज जी के साथ साथ उपस्थित श्रद्धालुओं ने वृक्ष लगाये तथा वृक्ष लगाने का और उनके संरक्षण का संकल्प लिया ।