प्रयागराज। सरकार सस्ता इलाज कराने के लिए प्रयासरत रहती है जो की एक आम नागरिक का अधिकार भी है कि वह चिकित्सा सही ढंग से पाए और इसके लिए सरकार के प्रयास स्पष्ट रूप से दिखाई भी देते हैं।लेकिन सरकारी अस्पतालों में अपनी चिकित्सा सेवा देने वाले चिकित्सक सरकारी अस्पतालों में मरीज को देखने में कम दिलचस्पी दिखाते हैं और निजी प्रेक्टिस को ज्यादा महत्व देते हैं। एक तरफ तो प्रदेश सरकार सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर सख्ती कर रही है मगर कार्यवाही नहीं होने की वजह से अधिकतर सरकारी डॉक्टर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल व अपने घर पर ही प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। मगर सूत्रों की माने तो निजी अस्पतालों में मरीज देखने से लेकर कई डॉक्टर अपने निजी आवास में क्लीनिक भी चला रहे हैं। जबकि प्रदेश सरकार ने स्पष्ट निर्देश दे रखा है कि सरकारी डॉक्टर के प्राइवेट प्रैक्टिस करते पकड़े जाने पर डॉक्टरों की डिग्री निरस्त करने के साथ ही हॉस्पिटल का लाइसेंस भी निरस्त किया जाएगा। उनसे नान प्रैक्टिस अलाउंस भी वसूला जाएगा बावजूद उसके सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक नहीं लग रही है। सूत्रों का कहना है कि अधिकांश सरकारी डॉक्टर अपने निजी आवास को ही क्लिनिक बना लिया है जहां मरीजों से 300 रुपए से लेकर 500 रुपए मरीज देखने का फीस शुल्क लिया जा रहा है। सूत्रों की माने तो कुछ सरकारी अस्पतालों में परीक्षण करने वाले डॉक्टर इलाज के लिए निजी क्लीनिक को ज्यादा मुफीद समझते हैं। ओपीडी में मरीजों को देखने के बाद उनको निजी आवास के क्लीनिक पर बुलाया जाता है। यह खेल अरसे से सरकारी अस्पतालों में चल रहा है इसके पीछे चिकित्सक खुद सरकारी अस्पताल में बेहतर उपचार न होने का हवाला देते हैं और मरीजों को गुमराह करके अपनी जेबें भरने के लिए निजी क्लीनिक पर मरीज को बुलाते हैं। निजी चिकित्सा के क्षेत्र में अपने को ज्यादा सक्रिय रखकर सरकारी अस्पतालों के प्रति उदासीनता दिखाने वाले चिकित्सकों के प्रति सरकार को थोड़ा गंभीर होकर सख्त रवैया अपनाना चाहिए जिससे सरकारी सेवाओं को स्वस्थ और आसान बनाया जा सके आम नागरिक बेहतर चिकित्सा सेवाएं प्राप्त कर सके। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकारी लाभ लेने वाले ऐसे निजी प्रेक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों पर प्रदेश सरकार कब सख्त होगी और कब इनके ऊपर कार्यवाही होगी जो गरीब जनता के सवालों के ज़ेहन में है।