History of Jaipur

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History Of Jaipur

जयपुर शहर भारत देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। जयपुर राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है। जयपुर को पिंक सिटी अथवा गुलाबी नगरी भी कहते है, इसको सबसे पहले स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था। जयपुर की स्थापना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने की थी। यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है। जयपुर के राज अभी अशोक जी है।

जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है। जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। 1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India’s Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं। भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। संघीय राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है।
शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो ‘न्यू गेट’ कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह 111 फुट (34 मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शहर के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वैधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं।
जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। 19वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या 1,80,000 थी जो अब बढ़ कर 2001 के आंकड़ों के अनुसार 23,37,3119 और 2012 के बाद 30.7 लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। इस प्रकार के धरोहर होना हमारे भारत देश के लिए एक गर्व की बात है । भारत सरकार को ऐसे धरोहरों को साज सजावट का पूरा ख्याल रखना चाहिए।

इतिहास

सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी, ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत,जिसके राजा भारमल जयचंद के पौत्र थे, एक बडी ताकत के रूप में उभरी। जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह जो भारमल के पुत्र थे को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई। इस शहर की नींव पहले पहल कहां रखी गई, इसके बारे में मतभेद हैं, किंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार तालकटोरा के निकट स्थित शिकार की होदी से इस शहर के निर्माण की शुरुआत हुई। कुछ इसे ब्रह्मपुरी और कुछ आमेर के पास एक स्थान ‘यज्ञयूप’ स्थल से मानते हैं। पर ये निर्विवाद है संबसे पहले चन्द्रमहल बना और फिर बाज़ार और साथ में तीन चौपड़ें।
सवाई जयसिंह ने यह शहर बसाने से पहले इसकी सुरक्षा की भी काफी चिंता की थी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही सात मजबूत दरवाजों के साथ किलाबंदी की गई थी। जयसिंह ने हालाँकि मराठों के हमलों की चिंता से अपनी राजधानी की सुरक्षा के लिए चारदीवारी बनवाई थी, लेकिन उन्हें शायद मौजूदा समय की सुरक्षा समस्याओं का भान नहीं था। इतिहास की पुस्तकों में जयपुर के इतिहास के अनुसार यह देश का पहला पूरी योजना से बनाया गया शहर था और स्थापना के समय राजा जयसिंह ने अपनी राजधानी आमेर में बढ़ती आबादी और पानी की समस्या को ध्यान में रखकर ही इसका विकास किया था। नगर के निर्माण का काम 1727 में शुरू हुआ और प्रमुख स्थानों के बनने में करीब चार साल लगे। यह शहर नौ खंडों में विभाजित किया गया था, जिसमें दो खंडों में राजकीय इमारतें और राजमहलों को बसाया गया था। प्राचीन भारतीय शिल्पशास्त्र के आधार पर निर्मित इस नगर के प्रमुख वास्तुविद थे एक बंगाली ब्राह्मण विद्याधर (चक्रवर्ती), जो आमेर दरबार की ‘कचहरी-मुस्तफी’ में आरम्भ में महज़ एक नायब-दरोगा (लेखा-लिपिक) थे, पर उनकी वास्तुकला में गहरी दिलचस्पी और असाधारण योग्यता से प्रभावित हो कर महाराजा ने उन्हें नयी राजधानी के लिए नए नगर की योजना बनाने का निर्देश दिया।
यह शहर प्रारंभ से ही ‘गुलाबी’ नगर नहीं था बल्कि अन्य सामान्य नगरों की ही तरह था, लेकिन 1876 में जब वेल्स के राजकुमार आए तो महाराजा रामसिंह (द्वितीय) के आदेश से पूरे शहर को गुलाबी रंग से जादुई आकर्षण प्रदान करने की कोशिश की गई थी। उसी के बाद से यह शहर ‘गुलाबी नगरी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सुंदर भवनों के आकर्षक स्थापत्य वाले, दो सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में फैले जयपुर में जलमहल, जंतर-मंतर, आमेर महल, नाहरगढ़ का किला, हवामहल और आमेर का किला राजपूतों के वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने हैं।
नियोजित तरीके से बसाये गये इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे, ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाये गये। गलियों का और सडकों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया,नगर को सुरक्षित रखने के लिये, इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया। पश्चिमी पहाडी पर नाहरगढ का किला बनवाया गया। पुराने दुर्ग जयगढ में हथियार बनाने का कारखाना बनवाया गया, जिसे देख कर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं, इस कारखाने और अपने शहर जयपुर के निर्माता सवाई जयसिंह की स्मॄतियों को संजोये विशालकाय जयबाण तोप आज भी सीना ताने इस नगर की सुरक्षा करती महसूस होती है। महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों में बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमे सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल,रानिवास,जंतर मंतर,गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं, शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये। प्रजा को अपना परिवार समझने वाले सवाई जयसिंह ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने आदि के साथ वर्षाजल का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवाया.सवाई जयसिंह ने लम्बे समय तक जयपुर में राज किया, इस शहर में हस्तकला,गीत संगीत,शिक्षा और रोजगार आदि को उन्होने खूब प्रोत्साहित किया। अलग २ समय में वास्तु के अनुरुप ईसरलाट, हवामहल, रामनिवास बागऔर विभिन्न कलात्मक मंदिर, शिक्षण संस्थानों आदि का निर्माण करवाया गया।

बाजार

जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पल भर में इसका सौन्दर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है। लम्बी चौडी और ऊंची प्राचीर तीन ओर फ़ैली पर्वतमाला सीधे सपाट राजमार्ग गलियां चौराहे चौपड भव्य राजप्रसाद, मंदिर और हवेली, बाग बगीचे,जलाशय और गुलाबी आभा से सजा यह शहर इन्द्रपुरी का आभास देने लगता है,जलाशय तो अब नहीं रहे, किन्तु कल्पना की जा सकती है, कि अब से कुछ दशक पहले ही जयपुर परकोटे में ही सिमटा हुआ था, तब इसका भव्य एवं कलात्मक रूप हर किसी को मन्त्र-मुग्ध कर देता होगा। आज भी जयपुर यहां आने वाले सैलानियों को बरसों बरस सहेज कर रखने वाले रोमांचकारी अनुभव देता है।

जयपुर का बदलाव

जयपुर की रंगत अब बदल रही है। हाल ही में जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। महानगर बनने की ओर अग्रसर जयपुर में स्वतन्त्रता के बाद कई महत्वाकांक्षी निर्माण हुए। एशिया की सबसे बडी आवासीय बस्ती मानसरोवर, राज्य का सबसे बड़ा सवाई मानसिंह चिकित्सालय, विधानसभा भवन, अमर जवान ज्योति, एम.आई.रोड, सेन्ट्रल पार्क और विश्व के प्रसिद्ध बैंक इसी कड़ी में शामिल हैं। पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कॄति के दर्शन होने लगे हैं। चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं। पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कॄति के दर्शन जैसे इस शहर के विकास और इतिहास दोनों को स्पष्ट करते हैं। जयपुर कितना भी बदले पर इसके व्यंजनों का जायका बदस्तूर कायम है। जयपुर के व्यंजन में प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा, केर सांगरिया की सब्जी, मालपुआ इत्यादि है।

दर्शनीय स्थल

शहर में बहुत से पर्यटन आकर्षण हैं, जैसे जंतर मंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, गोविंददेवजी का मंदिर, श्री गणेश जी मन्दिर (मोती डूंगरी), श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर, बिड़ला मंदिर, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि। जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी हैं, जिनमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरा-मोजरी जूतियाँ, ब्लू पॉटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियां आदि शामिल हैं। प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ लगे बाजार हैं।

सिटी पैलेस

राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना एक पूर्व शाही निवास जो पुराने शहर के बीचोंबीच है। भूरे संगमरमर के स्तंभों पर टिके नक्काशीदार मेहराब, सोने व रंगीन पत्थरों की फूलों वाली आकृतियों से अलंकृत है। संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी प्रवेश द्वार पर प्रहरी की तरह खड़े है। जिन परिवारों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजाओं की सेवा की है। वे लोग गाइड के रूप में कार्य करते है। पैलेस में एक संग्राहलय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं। इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ की तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ाऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं। महल में एक कलादीर्घा भी हैं जिसमें लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजों सामान और अरबी, फारसी, लेटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है जो सवाई जयसिंह द्वितीय ने विस्तृत रूप से खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्राप्त की थी।

 


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