शाहपुरा में जिला बनने के बाद से कृषि भूमि के भावों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी गई है। इसके साथ ही, कृषि भूमि पर बिना कर्नवट (रूपांतरण) कराए कॉलोनियों के निर्माण की अंधाधुंध दौड़ भी तेज हो गई है। ऐसे में प्रशासन ने इस अवैध गतिविधि पर अंकुश लगाने के लिए कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है। शाहपुरा और उसके आसपास के क्षेत्रों में खेती की जमीन पर कॉलोनियों के निर्माण और भूखंडों की बिक्री का धंधा लंबे समय से फल-फूल रहा है। शाहपुरा के जिला बनने, पास से बाईपास निकलने, और जिला कलेक्ट्रेट व मिनी सचिवालय के लिए संभावित भूमि आरक्षित करने के कारण खेती की जमीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं। इसके चलते सरकार ने यहां डीएलसी (जिला मूल्यांकन समिति) की दरों में भी 20 प्रतिशत का इजाफा कर दिया है।
कॉलोनियों के निर्माण पर स्पष्ट नीति की कमी—-कृषि भूमि पर कॉलोनियों के निर्माण के बारे में कोई सुस्पष्ट नीति न होने या इसके पालन में कमी के कारण शाहपुरा मुख्यालय और आसपास के क्षेत्रों में सैकड़ों अघोषित कॉलोनियों का निर्माण हो चुका है। इनमें से आधे से ज्यादा भूखंड तो केवल इकरारनामा (समझौते) के आधार पर ही बेच दिए गए हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। शेष भूखंड रजिस्ट्री के माध्यम से बेचे जाते हैं, लेकिन राजस्व नियमों के तहत उनका नामांतरणकरण नहीं हो पाता है। इससे कई बार धोखाधड़ी के मामले भी सामने आते हैं।
प्रशासन की कार्रवाई और विरोध—-इन्हीं मामलों की रोकथाम के लिए प्रशासन ने अब सख्त कार्रवाई शुरू की है। हालांकि इस कदम का अंदरखाने में विरोध हो रहा है, लेकिन नियमों के तहत हो रही इस कार्रवाई का खुलकर विरोध करने के लिए कोई भी सड़कों पर नहीं उतरा है। पूर्व में कादीसहना रोड पर कृषि भूमि पर किए जा रहे व्यावसायिक निर्माण को प्रशासन ने रोक दिया था, जिसके बाद से शहर में हड़कंप मच गया था। इसके बाद शाहपुरा में फुलियागेट के बाहर तहसीलदार द्वारा की कार्रवाई से भूमि कारोबारियों को धक्का लगा है। इस मामले में स्थगन आदेश के बावजूद हो रहे व्यावसायिक निर्माण को रुकवा दिया, जिससे शाहपुरा में एक बार फिर से हड़कंप मच गया। इस मामले में कुछ लोगों ने शाहपुरा के विधायक लालाराम बैरवा से मुलाकात कर समाधान के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध भी किया।
कृषि भूमि पर कॉलोनियों का निर्माण—कृषि भूमि पर कॉलोनियों का निर्माण शाहपुरा में लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। बिना कर्नवट कराए, सीधे-सीधे कृषि भूमि पर कॉलोनियों के प्लॉट काटकर बेचना और वहां निर्माण करना न केवल अवैध है, बल्कि इससे भविष्य में कई कानूनी और सामाजिक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इन अघोषित कॉलोनियों में रहने वाले लोग अक्सर बुनियादी सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं, क्योंकि इन कॉलोनियों को कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिल पाती है। इसके अलावा, प्रशासन को भी ऐसे क्षेत्रों में आधारभूत संरचना का विकास करने में कठिनाई होती है।
भविष्य की चुनौतियां—शाहपुरा में प्रशासन द्वारा की जा रही इस कार्रवाई से यह स्पष्ट होता है कि सरकार अब कृषि भूमि पर अवैध कॉलोनियों के निर्माण को गंभीरता से ले रही है। हालांकि, यह भी सच है कि पूर्व में हुए निर्माणों के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इसके चलते पहले से निर्मित कॉलोनियों और वहां रहने वाले लोगों के लिए अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे एक सुस्पष्ट और व्यावहारिक नीति तैयार करें, जिससे न केवल अवैध निर्माणों को रोका जा सके, बल्कि पहले से हुए निर्माणों को भी नियमित किया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि संबंधित अधिकारियों, नेताओं, और स्थानीय लोगों के बीच एक सामंजस्य स्थापित हो, ताकि इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान निकाला जा सके।
नागरिकों की प्रतिक्रिया—शाहपुरा के नागरिकों में इस कार्रवाई को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग प्रशासन की इस कार्रवाई को सही ठहरा रहे हैं और मानते हैं कि यह अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए जरूरी है। वहीं, कुछ लोग इसे एकतरफा कार्रवाई मानते हुए इसका विरोध कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि उनकी भूमि का उपयोग कृषि के लिए ही होना चाहिए, जबकि भूखंड विक्रेताओं का तर्क है कि जमीन पर उनका अधिकार है और वे इसे अपने तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे में प्रशासन को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, ताकि सभी पक्षों के हितों की रक्षा हो सके।