कुशलगढ| बडोदिया में तपस्या के बीना मोक्ष की प्राप्ती नही होती है। उपवास भी एक तप है और इस तप के माध्यम से हमारे कर्मो की निर्जरा होती है। यह विचार आर्यिका विज्ञानमति माताजी की परम शिष्या आर्यिका सुयशमति माताजी ने श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में उत्तम तप धर्म दिवस पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । आर्यिका उदित मति माताजी ने कहा कि पर्व पर तप करने से उसकी महिमा बढ जाती है। आर्यिका रजतमति माताजी ने कहा कि कभी भी गुरू के सामने किन्तु परंतु जैसे प्रश्न् वाचक चिन्ह नही बोलना चाहिए। गुरू के सामने तो समर्पण करना चाहीए कि गुरू जो प्राश्चित दे उसे स्वीकार करना चाहीए यही सबसे बडा तप है।विधान का आयोजन- दोपहर में नन्दीेश्वर जिनालय विधान का आयोजन किया गया । आर्यिका रजतमति माताजी व आर्यिका उदितमति माताजी के द्वारा भक्ति पूर्वक विधान की पूजन कराई गई । जिसमें सोधर्म इंन्द्र व कुबेर इन्द्र मय परिवार विधान में अर्घ्य चढाएं । मीना दीदी ने बताया कि सोलह कारण व दसधर्म व्रत तप करने वाले के उत्साह में अभिव्रद्धि हेतु दिन में तीन बार स्वयं आर्यिका संघ द्वारा स्वाध्याय कराया जा रहा है तथा तीनो आर्यिकाएं बच्चे से लेकर बुढी मां जो अपने तप में उत्तरोतर प्रगति कर रही है उन सबको एक मां जैसा दुलार देते हुए एक श्रेष्ठ श्रावक की क्रियाए करवा रही है।