कुशलगढ| दिगंबर समाज अध्यक्ष जयंतीलाल सेठ ने बताया कि मुनि श्री 108 सुमंत्र सागर के सानिध्य में पंचामृत अभिषेक शांति धारा हुई। उत्तम तप धर्म पूजन व दश लक्षण विधान, पंचमेरू,सोलह कारण विधान,अन्य पूजन संपन्न हुई। मुनि श्री के मंगल प्रवचन हुए जिसमें मुनि श्री ने उत्तम तप धर्म पर बताया कि जैन धर्म में तप (तपस्या) को आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन माना गया है। तप का उद्देश्य आत्मा के कर्मों से मुक्ति प्राप्त करना और शुद्धि की ओर अग्रसर होना है। जैन प्रवचनों में तप के अनेक रूप और इसके महत्व को विशेष रूप से समझाया जाता है।तप के दो मुख्य प्रकार होते हैं। बाह्य तप, आभ्यंतर तप तप का मुख्य उद्देश्य है आत्मा को शांत और निर्मल करना। जैन धर्म में यह माना जाता है कि तपस्या से व्यक्ति अपने कर्मों को जलाकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। तप न केवल शरीर को कठोर बनाता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है, जिससे व्यक्ति अंततः सम्यक ज्ञान, दर्शन और चरित्र को प्राप्त करता है। तप के बिना मोक्ष की प्राप्ति असंभव मानी जाती है। जैन प्रवचनों में यह बार-बार कहा गया है कि जो व्यक्ति सच्ची तपस्या करता है, वही अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य यानी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। शाम में मूलनायक भगवान और गुरुदेव की आरती एवं जैन रामायण पर एक सुंदर सी नाटिका आयोजित हुई।मुनिश्री की 186 दिवसीय मध्यम निष्क्रिदित व्रत आराधना चल रही है जिसमें अब तक 63 से अधिक उपवास एवं 12 पारणा हुए हैं ।