कुनकटा कलां में नदी में किया पितरों का
समाज का संस्कार, गुर्जर संस्कृति, पूर्वजों की याद के बाद फिर मनाई जाती है, दीपावली
परंपरा हमें संस्कार से जोड़ती है, परंपराओं को जीवंत रखने से नई पीढ़ी में बढ़ते संस्कार, बढ़ता है, आपसी प्रेम : जिला अध्यक्ष मनोज कुनकटा
पूर्वजों की याद में गुर्जर समाज ने निभाई छांट भरने की परंपरा; गुर्जर समाज ने सामूहिक रूप से निभाई छांट भरने की रस्म
गंगापुर सिटी। पंकज शर्मा, 31 अक्टूबर। अपने पूर्वजों को याद करने की परंपरा सभी वर्ग एवं समाजों में अपने अपने तरीके से निभाई जाती है। कुछ ऐसी ही परंपरा गुर्जर समाज के लोगों द्वारा भी दीपावली के अवसर पर निभाई की जाती है। जो पारंपरिक श्रद्धा के साथ ही समाज को संस्कार से भी जोड़ती है। गुर्जर समाज के लोग अपने पूर्वजों की याद में दीपावली के दिन बड़ी अमावस पर छांट भरते हैं तथा पानी का तर्पण करते हैं, जिसे वह पवित्र एवं पुण्य का कार्य मानते हैं। इससे जहां तालाबों, नदियों एवं अन्य जल स्त्रोतों को शुद्ध रखने की सीख मिलती है, वहीं इस परंपरा से आपसी भाईचारा भी बढता है। छांट भरने के बाद ही समाज के लोग दीपावली की खुशियां मनाते हैं।
कैसे भरी जाती है छांट
गुर्जर समाज के दीपावली के दिन सुबह से छांट भरने तक कुछ नहीं खाते हैं। छांट साफ तालाब, नदी एवं अन्य जल स्त्रोतों पर भरने की परंपरा है। दीपावली के दिन करीब 2 बजे तक गुर्जर समाज के लोग अपने परिवार के साथ थाली में फलके, खीर आदि बनाकर सरोवर के किनारे पहुंचते हैं। अपनी परंपरागत वेशभूषा पहने सरोवर पर भोग लगाते हैं। उसके बाद वहां मौजूद अन्य परिवारों के लोग आंधी झाड़ा की बेल के साथ हाथ में भोग लगाने के बाद भोजन लेकर उसको पानी में लंबी कतार बनाकर पूर्वजों का नाम लेकर उनको याद कर तर्पण करते हैं। पानी में उस भोजन को जीव जंतुओं को खिलाते हैं तथा परिवारों के लोग आपस में मिलकर स्वयं भी खाते हैं। छोटी बच्चियां जाती है। बाद में वहां से रवाना होकर एक दूसरे के घर कुछ खाने की भी परंपरा है। जिस तालाब पर छांट भरने जाते हैं, वहां पर से पानी भी लाते हैं उसके छांटे देकर घरों को पवित्र किया जाता है। छांट के दौरान एक दो दिन पहले पैदा हुए बच्चें तक को भी लेकर जाते हैं। उसका हाथ बैल पर लगवाते हैं ताकि उनकी बैल बढे तथा पंरपरागत संस्कार मिलने के साथ वो फले फूलें।
परंपरा हमें संस्कार से जोड़ती है
गुर्जर समाज के युवा जिला अध्यक्ष मनोज कुमार गुर्जर कुनकटा का कहना है कि छांट भरने के कारण हम परंपरा से जुड़ने के साथ ही मेलजोल एवं संस्कार बढ़ते हैं। पूर्वजों एवं बुजुर्गों के प्रति सम्मान की भावनाएं बढ़ती है। सदियों से ये परंपरा चली रही है। खुशी के मौके पर भी पूर्वजों को नहीं भुला जाता है। उनको नमन एवं याद कर खुशियां मनाए जाती है।साथ ही कुनकटा ने कहा कि छांट भरने की परंपरागत सभी भाई बंदों में मनमुटाव दूर कर एक जगह एकत्रित होकर अपने पूर्वजों को याद करना सिखाती है। साथ ही खुशी के त्यौहार से पहले एक दूसरे के प्रति प्रेम को बढाती है।
गुर्जर समाज के युवा जिला अध्यक्ष मनोज कुनकटा ने बताया कि सोमवार को कुनकटा कलां गांव स्थित श्री वीर भोजा बाबा के मंदिर प्रांगण में एकत्रित होकर नदी में पहुंचकर पांच गांव बाँसरोटा परिवार के पंच पटेलों ने एक साथ मिलकर छांट भरने की परंपरा निभाई। इससे पहले कुनकटा कलां,किशन की झोपड़ी,कुनकटा खुर्द(बाढ़),कोठी,काडी-दड़ी,मोतीपुरा,बाढ़-नेहरी सहित पांच गांव बाँसरोटा परिवार के पंच पटेल गीत गाते, नाचते बजाते हुए पहुँचे।