डॉ. रेखा चतुर्वेदी ने प्रवासी भारतीय दिवस पर अपनी पुस्तक “फिजी में भारतीयों का इतिहास तथा उनका जीवन (1879 – 1947)” का विमोचन किया
इस पुस्तक में भारत में ब्रिटिश राज द्वारा थोपे गए गिरमिटिया मजदूरों (कुलियों) के जीवन और तकलीफों के बारे में गहरी जानकारी दी गई है जो बहुत ही भावनात्मक और दिल छू लेनेवाली है
जयपुर। प्रख्यात लेखिका और शिक्षाविद् डॉ. रेखा चतुर्वेदी ने अपनी पीएचडी शोध पर आधारित पुस्तक “फिजी में भारतीयों का इतिहास तथा उनका जीवन (1879 – 1947)” का विमोचन प्रवासी भारतीय दिवस के शुभ अवसर पर किया। 18वें प्रवासी भारतीय दिवस का उद्घाटन भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 9 जनवरी, 2025 को किया जाएगा।
गौरतलब है कि डॉ. रेखा चतुर्वेदी स्वर्गीय पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी (राज्यसभा सांसद) की पोती हैं। पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने प्रवासी भारतीयों पर उल्लेखनीय कार्य किया है।
डॉ. रेखा चतुर्वेदी ने कहा, “फिजी में भारतीयों का इतिहास तथा उनका जीवन (1879 –1947)” भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के जीवन और उनके संघर्षों पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। साल 2025 के प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर इस ऐतिहासिक पुस्तक का प्रकाशन भारतीय प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को हाइलाइट करती है। प्रवासी भारतीय दिवस पर इस पुस्तक का विमोचन इसके महत्व को दर्शाता है और साथ ही यह प्रवासी समुदाय के योगदान और संघर्षों को सम्मान देने की एक सार्थक कोशिश है। यह पुस्तक भारतीय प्रवासी समाज के बलिदानों को पहचानने और उनकी कहानियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोने का आह्वान भी करती है।
याद रहे कि गिरमिटिया मजदूरों को उस समय के ब्रिटिश शासन के दौरान “कुली” के नाम से जाना जाता था। यह भारत के औपनिवेशिक इतिहास का एक दर्दनाक और शर्मनाक हिस्सा है। दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, त्रिनिदाद, गुयाना और फिजी जैसे देशों में इन गिरमिटिया मजदूरों को अमानवीय परिस्थितियों में कठोर और अत्यंत कठिन कार्य करने के लिए मजबूर किया गया।
सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक फिजी द्वीप पर इन गिरमिटिया मजदूरों की सेवाओं, उनकी पीड़ा और उनके जीवन की अमानवीय परिस्थितियों को उजागर करती है। इस मुद्दे को पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक “फिजी में मेरे 21 वर्ष” के माध्यम से सामने लाया था। यह पुस्तक श्री तोताराम सनाढ्य के अनुभवों पर आधारित है, जो स्वयं फिजी में गिरमिटिया मजदूर थे।
पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने फिजी में कई वर्ष बिताए और वहां भारतीयों की दुर्दशा पर विस्तार से लिखा। अपने दादाजी के कार्यों से प्रेरित होकर, डॉ. रेखा चतुर्वेदी का शोध भारतीय प्रवासी समुदायों, विशेष रूप से गिरमिटिया मजदूरों के संघर्ष और उनके अदम्य साहस को उजागर करता है। व्यक्तिगत और पेशेवर जिम्मेदारियों के बावजूद, डॉ. रेखा ने अपने शोध के प्रति समर्पण बनाए रखा है। उनका यह समर्पण उनके परिवार की विरासत और गिरमिटिया मुद्दों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
रेवरेंड सी.एफ. एंड्रयूज के हस्तक्षेप से फिजी में गिरमिटिया श्रम की व्यवस्था औपचारिक रूप से 1920 में समाप्त हो गई। पुस्तक के प्रकाशक सस्ता साहित्य मंडल का सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण साहित्य का समर्थन करने का इतिहास रहा है, जो पुस्तक के उद्देश्य के साथ कम प्रतिनिधित्व वाले ऐतिहासिक आख्यानों पर प्रकाश डालता है।
Awaaz Aapki News (A Web Portal) is an online publication, which comes under Gangapur Hulchal (weekly newspaper). aawazaapki.com provides information about more and more news.