खौफ में जी रही सच्चे कलमकारों की कलम


जाने कहां से ये टपके कथित पत्रकार बन पत्रकारिता में लपके

पत्रकार होता है मिशन पर लेकिन जब कलम बिक जाए तो मिशन भी बन जाता है मजाक

पत्रकारिता शायद अब जुनून नहीं बना जेब का माध्यम

प्रयागराज। यदि आप एक पत्रकार हैं तो एक शब्द पर ध्यान दें, वर्तमान परिदृश्य में जो मैंने देखा, जो जाना, जो समझा, वही अपने शब्दों के माध्यम से उकेरा है। कई नामी गिरामी ऐसे पत्रकार हुए हैं जिनके नाम से कुर्सियां हिलती हैं, आज कुछ ऐसे पत्रकार है जिनके नाम से लोगों की चूलें हिलती हैं। देश का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार के लिए आज के समय में पत्रकारिता करना एक जोखिम भरा यात्रा बन गया है। सच्चाई के सिद्धांत पर पत्रकारिता में इतना कड़वा सच हो गया है जैसे किसी के साथ कोई अप्रिय घटना कर दी गई हो। अपराधी, माफिया, भू माफिया,स्मैक तस्कर, सट्टा किंग, हथियार तस्कर और भ्रष्ट अधिकारियों के काले कारनामों का धमाका, आज के समय में सच की राह पर चलने वाले पत्रकारों को महंगा पड़ रहा है। जो पत्रकार गरीबों, शोषितों, वंचितों, बेसहारों की आवाज उठाते थे वह आज अपनी आवाज भी नहीं उठा सकते।राजनीति की बात करें तो कोई भी पार्टी सत्ता में हो तो उसका मिशन होता है कुर्सी बचाए रखना, और जो राजनीतिक दल विपक्ष में होते है उसका मिशन होता है कुर्सी हथियाना। यह मिशन बड़े-बड़े नारों, वादों और मंचों पर चढ़कर चीखता है जनसेवा के लिए हैं,मगर हकीकत में ये मिशन कुर्सी के लिए होता हैं।अब ज़रा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की तरफ आइए सवाल यह है कि “क्या पत्रकार भी मिशन पर होते हैं” ?जवाब बिलकुल होते हैं।लेकिन फर्क बस इतना है कि कोई मिशन खबरों का लेकर चलता है, तो कोई मिशन खबरी दलाली का।कुछ पत्रकार ऐसे हैं जो मिशन लेकर निकलते हैं सच्चाई की खोज में।वो गलियों में धूल खाते हैं, फाइलों में पसीना बहाते हैं, और फिर वो खबर लाते हैं जो नेता के चेहरे से नकाब खींच देती है, अफसर के कान खड़े कर देती है, और जनता को जागरूक करती है।इनका मिशन होता है लिखना वह जो छुपाया जा रहा है,ना कि वह जो दिखाया जा रहा है।लेकिन हर किरदार में एक खलनायक भी होता है।और पत्रकारिता में भी एक तबका है मिशन दलाली का।ये वो लोग हैं जो माइक को हथियार नहीं, सौदे का सामान मानते हैं।इनका मिशन होता है खबर दबाऊंगा, कीमत बताओ।जहां से सुविधा शुल्क मिले, वहीं इनका मिशन जाग जाता है।और फिर एक भटका हुआ वर्ग भी है ना ये जनसेवा में हैं,ना ये सत्ता की सेवा में हैं।ये वही पत्रकार हैं जो सुबह मिशन में होते हैं, दोपहर में भ्रम में और शाम तक वायरल-वीर बनकर किसी के फटे में अपनी टीआरपी का टांका लगा रहे होते हैं।इनका मिशन खबर को वायरल करना,बिना पड़ताल, बिना प्रमाण, बस हेडलाइन बड़ी होनी चाहिए और बैंक बैलेंस बढ़ना चाहिए।सोचिए, जब देश की आवाज़ कहलाने वाली कलम सौदेबाज़ी पर उतर आए,जब माइक का तार सीधे वाट्सऐप यूनिवर्सिटी से जुड़ जाए,और जब न्यूज़ रूम की खिड़कियों से सच्चाई नहीं, विज्ञापन और कमीशन की हवा आए तो ये मिशन नहीं, मजाक है।आप ही बताइए,जो पत्रकार ना खबर से जुड़ता है, ना हकीकत से,जो बस चापलूसी में बसा है या चौराहे पर वायरल करने मे,क्या उसे “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” कहना भी सही है? या फिर कहना चाहिए “ये मिशन पत्रकारिता नहीं, मिशन मुनाफाखोरी है!”मेरे लिए हमेशा समाज हित, राष्ट्रहित सर्वोपरि है। अपने कर्तव्य और लोगों के विश्वास पर खरा उतरने की कोशिश में कभी-कभी नहीं आएगी।


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