जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है

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बांसवाड़ा| बडोदिया में आर्यिका विज्ञानमति माताजी की परम शिष्या आर्यिका सुयशमति माताजी ने कहा कि उत्तम क्षमा धर्म , मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य धर्म यह दस धर्म है जिसमें प्रत्येक श्रावक ज्यादा से ज्यादा पूण्य के कार्य करता है । दस लक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है । लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है । यह विचार उन्होंने श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पर्युषण महापर्व से पुर्व आयोजित विधान की बोलीया लेने वाले श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । आर्यिका उदितमति माताजी ने धर्मसभा में कहा कि पर्व दो प्रकार के होते हैं, लौकिक पर्व एवं लोकोत्तर पर्व। जहां लौकिक पर्व खाने, पीने, मौज मस्ती के साथ मनाते हैं । जैसे दीपावली, होली, रक्षाबंधन आदि, वहीं लोकोत्तर पर्व तप-त्याग, संवर, उपवास आदि की आराधना के साथ मनाते हैं । आर्यिका रजतमति माताजी ने कहा कि पर्युषण का पर्व जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। इसे महापर्व भी कहा जाता है। इस महापर्व के दौरान श्रावकगण भक्ति भाव के साथ अभिषेक,विशेष पूजा अर्चना, आराधना,तप, ध्यान करते हैं। ये दसलक्षण पर्व हैं । यह संतों के साथ ही गृहस्थों के लिए भी कर्तव्य कहे गए हैं। गृहस्थों को इन 10 दिनों तक दसलक्षण का पालन करना चाहिए । उन्होंने कहा कि अंतिम सत्य है कि जब जीव कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है, तो मोक्ष या निर्वाण को प्राप्त हो जाता है । जैन धर्म के चल रहे सोलह कारण व्रत तप आराधना में विनोद चौखलिया, मीना देवी खोडणिया दिलीप तलाटी मितेश खोडणिया मयंक तलाटी, प्रियंका तलाटी जयंत जैन व तक्ष जैन की आराधना की अनुमोदना करते हुए युवा मंडल के सदस्यो ने उनकी सेवा की तथा उनके उत्साह में अभिव्रद्धि हेतु भक्ति की । चातुर्मास समिति अध्यक्ष केसरीमल खोडणिया ने बताया कि पर्व पर दस उपवास करने वाले श्रावक मय जोडे ने आर्यिका संघ को श्रीफल भेंटकर उपवास करने की अनुमति लेते हुए आशिर्वाद लिया । इससे पूर्व प्रात:श्री जी का जलाभिषेक व शांतिधारा व प्रवचन व पर्व के विधान की बोलिया लगी जिसमें पुण्यार्जक परिवारो ने अपनी श्रद्धा जताई ।


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