भीलवाड़ा में प्राचीन वैभव महोत्सव का आगाज-नांदशा के ऐतिहासिक स्तंभ का अनावरण

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भीलवाड़ा जिले के नांदशा में स्थापित 1800 साल पुराने स्तंभ के संरक्षण की जरूरत- नवहाल

भीलवाड़ा|जलधारा विकास संस्थान द्वारा आयोजित भीलवाड़ा पुरा प्राचीन वैभव महोत्सव के पहले दिन का आयोजन नांदशा, तहसील गंगापुर ग्राम में किया गया। यह महोत्सव राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी, माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय भीलवाड़ा और शिक्षा विभाग भीलवाड़ा की सहभागिता से संपन्न हुआ। महोत्सव में आरसीएम समूह और श्री नाकोड़ा इंफ्रा स्टील प्राइवेट लिमिटेड का भी सहयोग रहा।
कार्यक्रम की शुरुआत नांदशा के तालाब में स्थापित 1800 साल पुराने यूप (स्तंभ) के दर्शन से की गई। इस ऐतिहासिक स्तंभ की खोज 1927 में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता गौरीशंकर ओझा द्वारा की गई थी। इस स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है, जो राजा सोम द्वारा संवत 282 में स्थापित किया गया था। यूप के इतिहास और उसकी प्राचीनता को दर्शाते हुए जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चन्द्र नवहाल ने बताया कि यह स्तंभ उत्तर भारत के सबसे प्राचीन स्तंभों में से एक है और इसे संरक्षण की आवश्यकता है।
जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चन्द्र नवहाल ने बताया कि इस स्तंभ को भीमरा और भीमरी के नाम से भी जाना जाता है। यह तालाब में स्थित है और जलस्तर बढ़ने पर भी इसका कुछ हिस्सा हमेशा पानी से बाहर रहता है। यह स्तंभ ब्राह्मी लिपि में अंकित लेखों से भरा हुआ है, जो वैदिक युग की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करता है। एक अन्य स्तंभ, जिसे भीमरी कहा जाता है, बिजली गिरने के कारण टूट गया था, लेकिन इसकी प्राचीनता आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
यह यूप प्राचीन काल में संपन्न हुए षष्ठीरात्र यज्ञ के बाद स्थापित किया गया था। विक्रम संवत के आरंभ में स्थापित इस स्तंभ की रिसर्च रिपोर्ट को देशभर के इतिहासकारों और पुरातत्वविदों द्वारा गहराई से पढ़ा गया है, लेकिन इसके संरक्षण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
कार्यक्रम के दौरान गांव की सरपंच चंदा देवी और प्रतिनिधि किशनलाल जाट ने विशेषज्ञों को गांव के विभिन्न स्थानों का दौरा करवाया। इस दौरे में 12वीं और 13वीं शताब्दी के दो नए स्तंभ भी खोजे गए। इनमें से एक स्तंभ पर हाथी पर सवार एक योद्धा की आकृति उकेरी गई है, जिसके हाथ में तलवार है, और चार अन्य लोग उसके सामने खड़े हैं। इस स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में लेखन भी किया गया है, जिसका अध्ययन पुरातात्विक दृष्टिकोण से किया जाएगा। दूसरा स्तंभ सूर्य की आकृति के साथ बना है, जिसके नीचे देवनागरी लिपि में 8-10 लाइनों में लेख अंकित हैं। यह स्तंभ भी 10 फीट ऊंचा है और इसकी पुरातात्विक महत्ता को ध्यान में रखते हुए इसे अध्ययन के लिए भेजा जाएगा।
इस आयोजन में संगम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल कांत शर्मा, भूवैज्ञानिक और बूंदी के पुरातात्विक विशेषज्ञ ओमप्रकाश कुकी, महेश नवहाल, रणजीत सिंह, सुरेश सुवालका ने भाग लिया। सभी ने स्तंभ की प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व को स्वीकारा और इसके संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि यह स्तंभ वैदिक संस्कृति का प्रतीक है और इसकी भव्यता अद्वितीय है। यदि यह स्तंभ किसी यूरोपीय देश में होता, तो इसे एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बना दिया गया होता। ओमप्रकाश कुकी ने कहा कि इस यूप का उपेक्षित रहना दुखद है। ग्रामवासियों ने इस स्तंभ को सहेज कर रखा है, जो सराहनीय है, लेकिन अब इसके संरक्षण के लिए सरकार और संबंधित विभागों को ध्यान देना चाहिए।
गौरवगान और संरक्षण कार्यशाला—-
महोत्सव के अंतर्गत स्थानीय राजकीय विद्यालय में गौरवगान और संरक्षण कार्यशाला का आयोजन भी किया गया। इस कार्यशाला की अध्यक्षता ब्लॉक शिक्षा अधिकारी माधव लाल बड़वा ने की। कार्यशाला में उपस्थित सभी विशेषज्ञों और ग्रामवासियों ने एकमत होकर कहा कि यह ऐतिहासिक धरोहर क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ शोधकर्ताओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण आधार हो सकती है। महेश नवहाल ने कहा कि ग्रामवासियों को 42 साल पहले की रिसर्च रिपोर्ट का पीडीएफ भी दिया गया है और छात्रों में इस बारे में जानकारी देने के लिए पत्रक वितरित किए गए हैं।
ग्रामवासियों ने घोषणा की कि अगले वर्ष चेत्र शुक्ल पूर्णिमा को, जब इस स्तंभ के 1800 साल पूरे हो जाएंगे, तब एक भव्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। सरपंच चंदा देवी और उनके प्रतिनिधि किशनलाल जाट ने यह भी बताया कि स्तंभ की सारी जानकारी सार्वजनिक होने के बाद, इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। इसके साथ ही, इस स्थल को पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित करने का प्रयास किया जाएगा, ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।


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