सवाई माधोपुर, 20 जनवरी। बाघ और अन्य वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध रणथम्भौर टाईगर रिजर्व न सिर्फ वन्य प्रेमी फोटोग्राफर्स, सिनेमाटोग्राफर्स में ही ख्यात है बल्कि चितेरे कलाकारों में भी खासा प्रसिद्ध है।
कलाकार यहां के वन्यजीवों से प्रेरित होकर अपनी कल्पनाओं की उड़ान से नित नये क्लेवर देते रहते है उनमें से ऐसे ही सवाई माधोपुर के चितेरे कलाकार है राजकुमार शाक्यवाल। 1 जनवरी, 1978 को मोईकलां बारा जिले में जन्मे राजकुमार शाक्यवाल किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उनकी कलां यहां के गणेशधाम प्रवेश द्वार, वन विभाग कार्यालय, दशहरा मैदान, रेलवे स्टेशन, आलनपुर वन विभाग नर्सरी, बौंली में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के पास स्थित वन विभाग की चौकी, रामगढ़ विषधारी टाईगर रिजर्व बूंदी, कॉलकाता की गरियाहाट औद्योगिक क्षेत्र के हरवाना टॉवर पर 9 मंदिरों, मुम्बई में मुम्बादेवी मंदिर पर देवी-देवताओं की चित्र बनाने का कार्य किया है।
राजकुमार को सातवीं कक्षा में पढ़ते समय जीव-जन्तुओं के स्कैच बनाने का जुनून पैदा हुआ। धीरे-धीरे इसमें और निखार आया तो उनकी बनाई आकृतियां दसवीं में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छी लगने लगी और वे दसवीं बोर्ड के बायलोजी के प्रेक्टिकल फाईल बनाने का कार्य उनसे करवाने लगे जिससे उन्हें एक फाईल के 200 रूपये तक मिलने लगे तो यह काम उन्हें फायदे का लगा और अपने हुनर को आगे बढ़ाते रहे। इसी दौरान सदर कोतवाली के तत्कालीन थानेदार घांसीराम को जब उन्होंने अपनी बनाई हुई टाईगर पेंटिंग भेंट की तो वे 15 वर्षीय बालक राजकुमार की कलां से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने न सिर्फ उनकी इस कलां को सराहा बल्कि इसमें निखार लाने के लिए शहर के प्रसिद्ध कलाकार बाबूलाल महावर के यहां पेंटिंग की बारीकियां सीखने के लिए भेजा। यहां उन्होंने करीब 6 माह तक पेंटिंग्स बनाने की बारीकियां सीखीं।
वर्ष 1993 में ऑस्ट्रेलिया के डिसिल्वा उनकी पत्नी रेटाना व पुत्र माइकल सवाई माधोपुर के वन्यजीवों पर आधारित फिल्म बनाने के लिए आए हुए थे इसके लिए उन्हें एक बाल कलाकार की आवश्यकता थी। कलाकार बाबूलाल के यहां काम करने वाले 15 वर्षीय राजकुमार को वन्यजीव पेंटिंग्स की बारीकियां सीखते देखा तो उनके बाल कलाकार की खोज राजकुमार के रूप में पूरी हो गई। करीब वर्ष 1993 में वन्यजीवों पर आधारित फिल्म की शूटिंग पहले तो रणथम्भौर टाईगर रिजर्व के जंगलों में उसके बाद जयपुर में मंगलम आर्ट्स आमेर रोड़, आमेर किले में हुई।
ऑस्ट्रेलियन दम्पत्ती उन्हें ऑस्ट्रेलिया ले जाना चाहते थे परन्तु नाबालिग होने के कारण वे स्वयं निर्णय नहीं ले सकते थे और उनके माता-पिता शंकरी देवी व भैरूलाल शाक्यवाल उन्हें विदेश न भेजकर खेती बाड़ी के काम में लगाना चाहते थे। परन्तु अपने पैशन पेंटिंग को वे प्रोफेशन बनाना चाहते थे इसके लिए उन्होंने पेंटिंग की और अधिक बारीकिया सीखने की आवश्यकता थी। इसके लिए व पुनः अपने गुरू बाबूलाल महावर के यहां गए परन्तु उनके गुरू ने विदेशी ऑस्ट्रेलियन दम्पत्ती के साथ बिना इजाजत के फिल्म शूटिंग करने को गम्भीरता से लिया और इसे घोर अनुशासनहीनता मानते हुए अपने साथ रखकर पेंटिंग की बारीकिया सीखाने से मना कर दिया।
परन्तु उन्हें अपनी कलां को निखारने के लिए अपने हुनर को पहचान देने के लिए एक गुरू की परम आवश्यकता थी। उनके किसी परिचित ने उन्हें खजाना वालों का रास्ता जयपुर निवासी राजाबाबू आर्टि्स्ट के यहां कलां की बारीकिया सीखने के लिए भेजा। उनकी बनाई पेंटिंग्स देखकर कलाकार राजाबाबू प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उन्होंने तत्काल राजकुमार को अपने यहां बारीकियां सीखाने के लिए रख लिया। राजाबाबू को फोटो से व्यक्ति व जानवर की लाईव प्रोटेट बनाने में महारथ हासिल थी। राजकुमार ने पोर्टेट बनाने की कलां के साथ-साथ अन्य कलां की बारीकिया राजाबाबू से करीब 2 साल तक सीखीं। राजकुमार ने जयपुर के नेहरू बाजार में सोलंकी की वर्कशॉप में राजमंदिर व प्रेम प्रकाश सिनेमा हॉल में लगने वाले बडे-बडे फिल्मी पोस्टर हाथ से बनाने का काम किया। उसके बाद वे सवाई माधोपुर वापिस आ गये।
19 साल की आयु में उनका विवाह राजेश्वरी देवी से हो गया। परिवार की जिम्मेदारी आने से उन्होंने अपनी इस कलां को प्रोफेशन बना लिया। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2003 के पुष्कर पशु मेले में अमेरिकन एनआरआई हेमन्त शाह व उनकी पत्नी का लाईव पोटरेट बनाया। जिससे प्रभावित होकर वे अन्य व्यक्तियों के पोटरेट बनाने के ऑडर भी उन्हें मिलने लगे जिससे उनकी आजीविका चलने लगी। परन्तु हेमन्त शाह के निधन के पश्चात उनके संघर्ष के दिन पुनः शुरू हो गए। उसके बाद उन्होंने वॉल पेंटिंग्स, कैनवास पेंटिंग्स, चारकॉल पेंटिंग्स, करने लगे। रणथम्भौर टाईगर रिजर्व के कारण देशी-विदेशी वन्यजीव प्रेमियों के सवाई माधोपुर आने के कारण वे अपने इस हुनर के माध्यम से बाघ सहित अन्य वन्यजीवों की तस्वीरे बनाकर बेचने लगे उनकी कलां को देखते हुए उन्हें वन विभाग, होटल्स पर पेंटिंग्स बनाने का काम मिलने लगा।
सर्वप्रथम भारतीय प्रकृतिवादी, संरक्षणवादी और पर्यावरण प्रेमी लेखक वॉल्मीकि थापर ने रेलवे स्टेशन सवाई माधोपुर के अपने प्रोजेक्ट में पेंटिंग बनाने की जिम्मेदारी अन्य तीन कलाकारों के साथ राजकुमार को दी। यहां उन्होंने बाघ सहित अन्य वन्यजीवों, रणथम्भौर की पेंटिंग्स बनाई। इसके पश्चात उन्होंने घाना पक्षी विहार पक्षियों की पेंटिंग्स, नाहरगढ़ बायलोजिकल पार्क में वन्यजीवों की पेंटिंग्स, कोटा रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म पर वन्यजीवों की पेंटिंग्स बनाई।
इसके पश्चात वन विभाग ने उन्हें गणेशधाम से प्रवेश द्वार, कार्यालय, नर्सरी को रणथम्भौर के पशुओं की पेंटिंग्स बनाने का काम दिया। उनकी बनाई पेंटिंग्स को देखकर अमनेखास, नाहरगढ़ जैसे होटलों में उन्हें वन्यजीवों की पेंटिंग बनाने का काम मिला। उनके पेंटिंग्स के हुनर को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा उन्हें वर्ष 2023 में गणतंत्र दिवस के जिला स्तरीय समारोह में उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड ने स्मृति चिन्ह् देकर सम्मानित किया। राजकुमार अपनी इस कलां से न सिर्फ अपनी आजीविका कमा रहे बल्कि पर्यावरण और बाघ बचाने का संदेश देने का अनूठा कार्य भी कर रहे है।