जीवन से क्रोध और ईर्ष्या खत्म करतीं भागवत श्रवण


सवाई माधोपुर ।बजरिया शिव मंदिर में चल रही भागवत कथा में आचार्य श्री ने बताया कि श्रीमद्भागवत के अनुसार आनंद हमेशा मनुष्य के भीतर ही होता है परंतु मनुष्य उसे बाहरी सुखों में ढूंढता है. भगवान की उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि पूरे मन से करनी चाहिए. भगवान का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है.

मनुष्य अपनी वासना की वजह से ही पुनर्जन्म लेता है. मनुष्य अपनी इंद्रियों को अगर अधीन में कर ले तो उसके जीवन में कभी विकार और परेशानियां नहीं आती हैं. संयम, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण मनुष्य में कभी भी सत्संग के बिना नहीं आते हैं.

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की जगह हृदय परिवर्तन पर केंद्रित करना चाहिए. गीता के अनुसार जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में आकर भोगना पड़ता है.

श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को स्वयं को ईश्वर में लीन कर देना चाहिए. ईश्वर के सिवाय मनुष्य का कोई नहीं होता है. इसके साथ ही यह मान कर कर्म करना चाहिए कि वह भी किसी का नहीं है| भोग से मिलने वाला सुख क्षणिक होता है जबकि त्याग में स्थायी आनंद मिलता है. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है परंतु कुसंगति में भी मनुष्य अप । भागवत कथा के यजमान ताराचंद मित्तल सीमेंट वाले ने बताया कि श्री दिव्य हनुमंतेश्वर दरबार पीठाधीश्वर आचार्य श्री शिवदत्त शास्त्री जी काछीपुरा करसाई कैलादेवी बालों ने आज कथा भक्त ध्रुव, भक्त प्रह्लाद, भक्त अजामिल के भक्ति में प्रवचनों से भक्तों को भाव विभोर किया साथ ही सुन्दर सुन्दर श्याम बाबा के भजनों पर भक्तों को नाचने पर मजबुर कर दिया

 


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