हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भाई बहन का अटूट प्रेम प्रतीक भैया दूज
प्रयागराज।भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।इस बार भाई दूज की तिथि और शुभ मुहूर्त को लेकर लोगों में काफी असमंजस की स्थिति रही।दिवाली का पूरा सप्ताह त्योहारों में बीतता है। धनतेरस से शुरू हुए त्योहार भाई दूज के साथ खत्म होते हैं।पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर भाई दूज मनाया जाता है।भाई दूज ऐसा पर्व है जिसमें बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं और उसे सूखा नारियल देती हैं।भाई दूज भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इससे यमराज और मां यमुना की पौराणिक कथा जु़ड़ी हुई है।कार्तिक मास की शुक्ल द्वितीया
भाई दूज के दिन भाई को तिलक करने से पहले यमराज और मां यमुना का ध्यान करना शुभ माना जाता है. इसके बाद भाई के माथे पर तिलक और चावल लगाया जाता है और उसे मिठाई खिलाई जाती है।इस दौरान बहनें भाई को सूखा नारियल देती हैं और भाई बहन को उपहार देते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज और मां यमुना दोनों ही सूर्यदेव की संताने हैं।अरसों बाद जब यमराज बहन यमुना से मिलने पहुंचे तो उन्होंने भाई के लिए ढेरों पकवान बनाएं, मस्तक पर तिलक लगाया और भेंट में नारियल दिया। इसके बाद यमराज ने बहन से वरदान में उपहार स्वरूप कुछ भी मांग लेने के लिए कहा जिसपर मां यमुना ने कहा कि वे बस ये विनती करती हैं कि हर साल यमराज उनसे मिलने जरूर आएं,इसी दिन से भाई दूज मनाए जाने की शुरूआत हुई। माना जाता है कि भाई दूज के दिन ही यमराज बहन यमुना से मिलने आते हैं।भाई को तिलक करने से पहले तक बहनों ने व्रत रखा क्योंकि निष्ठा, प्रेम और समर्पण से भगवान भी प्रसन्न होते हैं। जिससे बहन और भाई के बीच का रिश्ता अच्छा बना रहता है। बहनों ने भाइयों को तिलक करके अपना व्रत खोला।
तिलक करने के बाद भाई को बहन ने मिष्ठान खिलाया क्योंकि ऐसा करना शुभ माना जाता है। साथ ही हर भाई अपनी बहन को आज के दिन सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ उपहार जरूर भेंट किया।