प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व रखता है दिल्ली का नीली छतरी शिवालय


नई दिल्ली 26 दिसम्बर। दिल्ली के निगम बोध घाट पर स्थित नीली छतरी शिवालय को देश के प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। इसका संबंध पांडवों से बताया जाता है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर सम्राट हुए तब भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह और सहयोग से युधिष्ठिर ने युमना नदी के तट पर शिवलिंग की स्थापना की और हवन कुंड का निर्माण किया। यहीं पर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया।
जहां इस यज्ञ को पूर्ण किया गया वह निगम बोध घाट के पास जमुना बाजार स्थित नीली छतरी मंदिर है। यहां पर युधिष्ठिर ने देवादिदेव महादेव का शिवलिंग स्थापित किया और हवन कुंड बनवाया। इसी मंदिर में अश्वमेध यज्ञ को पूरा करके युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट यानी पूरे भारतवर्ष के राजा हुए जिसकी सीमा वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक थी।
इस मंदिर के गुंबज का रंग नीला है। यह नीला रंग गुंबज पर लगे नीले रंग की टाइल्स की वजह है। गुंबज के इसी नीले रंग के कारण यह मंदिर नीली छतरी के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर की नीली छतरी को लेकर ऐसी भी कहानी है कि पहले इस पर टाइल्ल की जगह नीलम पत्थर जड़ा हुआ था। इस पर जब चांद की दूधिया रोशनी पड़ती थी तो नीले रंग की आभा छिटकती थी जिससे इसे नीली छतरी के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई थी।
वैसे मंदिर को लेकर कैर स्टीफन नाम के एक इतिहासकार का कहना है यह मुगल बादशाह अकबर के मनसबदार नौबत खान का मकबरा है जिसका निर्माण 1565 में उन्होंने अपने जीवनकाल में करवाया था। लेकिन श्रद्धालुओं को इन बातों से कोई लेना देना नहीं है। सावन का सोमवार हो या महाशिवरात्रि हर मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां भोले बाबा को 5 लड्डुओं का भोग लगाने से मनोकामना पूरी होती है। इसलिए हर दिन यहां बम भोले को लड्डूओं का भोग लगाने श्रद्धालु आते रहते हैं। अगर आपकी भी कोई मनोकामना है तो आप भी बस 5 लड्डू लेकर नीली छतरी वाले के मंदिर में आ जाइए।
वैसे भोले बाबा को यहां भांग का गोला और धतूरा भी चढ़ता है। मंदिर के वर्तमान महंत बताते हैं कि इस मंदिर में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। 5,500 साल पुराने इस शिव मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर चार प्रहर की विशेष पूजा होती है जिसमें चार प्रकार की वस्तुओं से नीली छतरी वाले का अभिषेक किया जाता है। पहला अभिषेक दूध से, दूसरा घी से, तीसरा शहद से और चौथा गन्ने के रस से होता है। शिवपुराण के अनुसार इस अभिषेक से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।


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