Chauth Mata Temple: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के बरवाड़ा गांव में स्थित है। यह मंदिर करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर अरावली पर्वत पर बना है। इस मंदिर में चौथ माता के साथ-साथ भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यह मंदिर जन आस्था का केन्द्र होने के साथ-साथ एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण भी है।
568 साल पहले 1000 फीट ऊंचाई पर बना सबसे बड़ा चौथ माता मंदिर, चढ़नी पड़ती हैं 700 सीढ़ियां
दुनिया में सर्वाधिक मंदिरों वाले देश भारत, म्यांमार और इंडोनेशिया हैं। हिंदू समुदाय के सर्वाधिक अनुयायी भी भारत में हैं। यहां 90 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं, जिनके लिए हजारों मंदिर हैं। हर मंदिर की कुछ न कुछ कहानी रही है, मान्यताएं रही हैं। कई मंदिर हजारों टन सोने से बने हैं, तो बहुत से मंदिरों में भगवान की चांदी-तांबे की प्रतिमाएं मौजूद हैं। देश में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जो अपने अलग तरह के भोग-प्रसाद के लिए विख्यात हैं। नदी-समुद्र के तटों पर सदियों से देवालय स्थापित हैं और पहाड़ों पर मौजूद मंदिरों की कीर्ति भी दूर-दूर है।
राजस्थान में सवाई माधोपुर के बरवाड़ा नामक नगर के निकट यह मंदिर 1451 ई. में बना था। यह मंदिर हजार फीट से भी ज्यादा उूंचाई पर स्थित है। 568 साल पुराने यानी, देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर में करवा चौथ के ही मौके पर 2 से 3 लाख महिलाएं पूजा करती हैं।
मान्यता, यहां चौरू माता ने दिए थे राजा को दर्शन
इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने कराई थी। किवदंतियां हैं कि, देवी चौरू माता ने स्वप्न में राजा भीमसिंह चौहान को दर्शन देकर यहां अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। राजा एक बार बरवाड़ा से संध्या के वक्त शिकार पर निकल रहे थे, तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका। मगर, भीमसिंह ने यह कहकर बात को टाल दिया कि चौहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं। इस तरह रानी की बात को अनसुना करके भीमसिंह अपने कुछ सैनिकों के साथ घनघोर जंगलों की तरफ चले गए।
राजा रानी के मना करने पर भी शिकार को गए थे
शाम ढलते उन्हें वहां एक मृग दिखा, सभी उस मृग का पीछा करने लगे। कुछ देर में रात हो गई। रात होने के बावजूद भीमसिंह मृग का पीछा करते रहे। धीरे-धीरे मृग भीमसिंह की नजरों से ओझल हो गया। तब तक साथ के सैनिक भी राजा से रास्ता भटक चुके थे। अकेले में राजा विचिलित हो उठा। काफी खोजने के बाद भी पीने को पानी नहीं मिला। इससे वह मूर्छित होकर जंगलों में ही गिर पड़े। तब अचेतावस्था में भीमसिंह को पचाला तलहटी में चौरू माता की प्रतिमा दिखने लगी। कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि भयंकर बारिश होने लगी और बिजली कड़कने लगी। मूर्छा टूटने पर राजा को अपने चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया।
घनघोर जंगल में कोई न था, तभी हुआ ये चमत्कार
राजा ने पहले पानी पिया। फिर वहीं अंधकार भरी रात में एक कांतिवान बालिका पर उनकी नजर पड़ी। वह कन्या खेलती नजर आई। राजा ने पूछा कि तुम इस जंगल में अकेली क्या कर रही हो? तुम्हारे मां-बाप कहां पर हैं।’ कन्या ने तोतली वाणी में कहा कि ‘हे राजन तुम यह बताओ कि तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं।’ इतना कहकर वह कन्या अपने असली देवी रूप में आ गई। तब राजा उनके चरणों में गिर पड़ा। बोला कि, ”हे आदिशक्ति महामाया! मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए, अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हमारे प्रांत में ही हमेशा निवास करें।’ तब ‘ऐसा ही होगा’ कहकर, वह देवी अदृश्य हो गईं।
देवी दर्शन के बाद राजा ने पहाड़ी पर मूर्ति स्थापित कराई
राजा को वहां चौथ माता की एक प्रतिमा मिली। उसी चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर लौट पड़ा। बरवाड़ा आते ही राजा ने राज्य में पूरा हाल कह सुनाया। तब पुरोहितों की सलाह पर संवत् 1451 में बरवाड़ा की पहाड़ की चोटी पर, माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित कराया। ऐसा कहा जाता है कि तब से आज तक इसी दिन यहां चौथ माता का मेला लगता है। करवा चौथ के पर्व के मौके पर कई राज्यों से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर दर्शन के लिए आते हैं।
सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा का वचन मांगती हैं
यह मंदिर विशेषतौर पर विवाहित जोड़े के लिए है। सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ के त्योहार के मौके पर यहां अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। ऐसी मान्यता हैं कि चाैथ माता गौरी देवी का ही एक रूप हैं। इनकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान तो मिलता ही है साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी सुख बढ़ता है। करवाचौथ हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
मंदिर में पहुंचने के लिए चढ़नी पड़ती हैं 700 सीढ़ियां
अरावली पर्वत पर यह मंदिर सवाई माधोपुर शहर से 35 किमी दूर, सुंदर-हरे वातावरण और घास के मैदानों के बीच स्थित है। सफेद संगमरमर के पत्थरों से इस स्मारक की संरचना तैयार की गई थी। दीवारों और छत पर शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
माता के नाम पर चौथ माता बाजार भी लगता है
इस मंदिर परिसर में देवी की मूर्ति के अलावा, भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी दिखाई पड़ती हैं। पुजारी के मुताबिक, हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य से पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं। प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही इसे कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। इतना ही नहीं, माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है।
जानिए कैसे पहुंचे और कब जाएं
इस मंदिर की यात्रा साल में कभी भी की जा सकती है, लेकिन नवरात्र और करवा चौथ के समय यहां जाने का विशेष महत्व माना जाता है। नवरात्र में यहां मेल लगता है। इसके अलावा किसी भी समय यहां अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए जा सकते हैं।
जयपुर से यहां तक लोकल ट्रेन चलती हैं
इस मंदिर के दर्शन करने जाने के लिए आपको पहले सवाई माधोपुर पहुंचना होगा। चौथ का बरवाड़ा से जयुपर 130 किमी दूर है। जयपुर से यहां तक लोकल ट्रेन चलती हैं।
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