कोहड़िया गो आश्रय स्थल की
योजनाएं सिर्फ कागजों पर चाक चौबंद
भूख प्यास से तड़प रहे बेजुबान गोवंशो को मौत के मुंह में धकेल रहे जिम्मेदार
योगी सरकार के आदेशों व निर्देशों की जिम्मेदार उड़ा रहे धज्जियां
प्रयागराज। यह सरकारी व्यवस्था का स्याह सच है कि सड़कों पर घूमते गोवंशों को आश्रय देने के लिए गौशालाएं तो बना दी गई हैं लेकिन इन गौशालाओं में कान्हा की गायों को सूखा चारा भी नसीब नहीं हो पा रहा है। कान्हा की गायें भूखे रहकर कब तक जिंदगी से जंग लड़ेंगी यह अहम और बड़ा सवाल है। बेसहारा पशुओं के लिए ही तो ग्राम पंचायतों में चारागाह की भूमि छोड़ी गई थी जिन पर वह चरकर अपना पेट भर सकें। लेकिन सवाल है की एक भी चारागाह की भूमि पर प्रशासन चारा उगा पाया क्या। राजस्व विभाग के नक्शे में चारागाह की जमीनें हैं मगर वह ज़मीनें भूख से व्याकुल गोवंशों के पेट भरने के लिए खाली नहीं है और ना ही खाली कराई जा रही है।चारागाह पर हरा चारा हो और गौशाला में खुराक मिले तो गोवंशों का पेट भरे। गौशाला से सुबह कर्मचारी गोवंशों को जंगल में चराने ले जाते हैं लेकिन हरी घास ही नहीं ऐसे में उनका पेट भरना कहां तक संभव है। और शाम को लाकर गौशाला में खाली पेट गोवंशों को छोड़ देना आदत में शुमार हो गया है। तस्वीरें बयां कर रही है कि बनी हुई गोवंशो की चन्नी में भूसा की जगह खाली है जबकि दिखाने के लिए खुले आसमान में भूसा पर्याप्त भरा हुआ है जो कभी भी बेमौसम बरसात होने से खराब हो सकता है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह भूसा कभी खर्च ही नहीं होता जैसे का तैसा स्टॉक बना हुआ है।ऐसे में जब गोवंशों को सूखा भूसा भी नसीब नहीं हो पा रहा है तो चूनी,चोकर, पौष्टिक आहार, हरा चारा कैसे मुवस्सर होगा।बिहार का चारा घोटाला चर्चित जरूर रहा है मगर अब उत्तर प्रदेश में अगर गहनता से जांच हो जाए तो पता नहीं कितने रुपए का भूसा घोटाला सामने आ जाएगा। मगर ऐसा होगा नहीं क्योंकि पता नहीं कितने सरकारी अफसरों की कुर्सी के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। पता नहीं कितने सरकारी अफसरशाही जिम्मेदार जेल के सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे इसलिए यह जांच होना बहुत कठिन है। बताते चलें कि ग्रामीणों के अनुसार गौशालाओं में गोवंशों को ना तो ठीक से भूसा दिया जाता है, और ना ही कोई समुचित व्यवस्थाएं हैं। सारी की सारी व्यवस्थाएं बंटाधार है, कभी कभार गोवंशों को भूसा डलवा कर सिर्फ और सिर्फ अपने कागजों की खाना पूर्ति की जाती है। वही ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि जब से खंड विकास अधिकारी शंकरगढ़ आईएएस भारती मीणा ने चार्ज संभाला है तब से बराबर गौशाला का निरीक्षण करते हुए ग्राम प्रधान और सचिव को हिदायत देती रहती हैं की गोवंशों की समुचित रूप से देखभाल की जाए मगर जिम्मेदार गोवंशों का निवाला छीनकर अपनी जेबें गर्म करने में लगे हुए हैं। बताया गया कि अपनी कमियां उजागर ना हो इसके लिए पशु चिकित्सा अधिकारी को भी सूचित नहीं करते हैं कभी कभार खबरें चलने के बाद पशु चिकित्सक को सूचना देकर दिखावे में इलाज करा कर मामले की खानापूर्ति कर लेते हैं। जब मीडिया टीम ने शंकरगढ़ क्षेत्र के गौ आश्रय स्थल का दौरा किया तो गौशाला में भूख प्यास से तड़प रहे गोवंशों ने सरकार के दावों की पोल खोल कर रख दी। गो आश्रय स्थल कोहड़िया विकासखंड शंकरगढ़ में भूख प्यास से तड़प – तड़प कर दम तोड़ रहे हैं गोवंशों की तस्वीरें हकीकत बयां कर रही हैं। जहां पर इन दिनों चारा भूसा और समुचित इलाज के अभाव में बेजुबान गोवंश अपना दम तोड़ रहे हैं। और कुछ गोवंश अपनी जिंदगी से जंग लड़ते हुए अपनी मौत का इंतजार कर रही हैं।सरकार की ओर से चलाई जा रही योजना सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गई है। प्रति महीना लाखों रुपए भूसा, चूनी, चोकर, पौष्टिक आहार,इलाज व कर्मचारियों पर खर्च किया जाता है। मगर तस्वीरें बयां कर रही है कि सारी सुविधाएं सिर्फ कागज पर ही सीमित हैं।ऐसे में गोवंशों के संवर्धन के लिए योगी सरकार की योजनाएं धरातल पर कैसे साकार होंगी जो सिस्टम पर सवालिया निशान खड़ा करता है। इस बाबत जब जिम्मेदारों से बात की गई तो उन्होंने सिर्फ अपना पल्ला झाड़ते हुए एक दूसरे पर जिम्मेदारी का गोलमोल जवाब देकर मामले की इति श्री कर दिया।