गांव बहज में आयोजित हो रही भागवत कथा में गोवर्धन पूजा की कथा का किया वर्णन


डीग 22 मई|डीग जिलें के गांव बहज में संत मोहन दास जी महाराज के आश्रम पर श्रीमति श्यामवती एवं पूरन सिंह सिनसिनवार के द्वारा आयोजित हो रही श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यासपीठ पर विराजमान पूज्य भागवताचार्य पंडित विनय दास जी महाराज श्री कृष्णजी की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि व्यक्ति को हमेशा धर्म के मार्ग पर चलकर समाज सेवा में लोगों को आगे आना चाहिए। मानव जब इस संसार में जन्म लेता है तो चार व्याधि उत्पन्न होते हैं। रोग, शोक, वृद्धापन और मौत मानव इन्हीं चार व्याधियों से धीर कर इस मायारूपी संसार से विदा लेता है। सांसारिक बंधन में जितना बंधोगे उतना ही पाप के नजदीक पहुंचेगा। इसलिए सांसारिक बंधन से मुक्त होकर परमात्मा की शरण में जाओ तभी जीवन रूपी नैय्या पार होगी। आज के दौर में परेशानी और अविश्वास बढ़ता जा रहा है। इससे समाज में खींचतान, स्वार्थ, लोभ, दुख. पतन, विकृतियों का अम्बार लगा हुआ है।
विनय दास जी महाराज ने गोवर्धन पूजा की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि अहंकार और अभियान एक दूसरे के पूरक होते हैं।
कथा के दौरान मंदिर परिसर में छप्पन भोग एवं भव्य फूल बंगला की झांकी सजाई गई।
उन्होंने कहा कि पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातः काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ”मईया” ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। तब कन्हा ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। इस पर माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है। तब कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि ये सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा। इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की।
इस मौके पर श्री मति सुमन,नटवर सिंहसिनसिनवार,हरचंदी,गिर्राज,बलवीर, महेंद्र, धर्मेंद्र,महाराज सिंह, वीरेंद्र,अशोक, रामजीलाल, रामेश्वर,विमल सहित बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित थे।

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