आस्था का केन्द्र बल्लभगढ का देवी मन्दिर

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– सौ साल से अधिक समय से लग रहा माता का मेला

– महाराजा सूरजमल ने चढाई माता की ध्वजा

– 15 अप्रेल से मेला का शुभारम्भ

भरतपुर|जिले के गांव बल्लभगढ की अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थित देवी माता का मन्दिर जन आस्था का केन्द्र बना हुआ है। मन्दिर का निर्माण साल 1729 में भरतपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सूरजमल ने क्षेत्र के लोगों के सहयोग कराया था। यहां मेले की शुरूआत साल 1912 में गांव के दो सगे भाई मन्नू व कृष्णा ने कराई,तभी से यहां प्रतिवर्ष मेला लगता आ रहा है। वैसे तो मन्दिर में आए दिन धार्मिक कार्यक्रम होते ही रहते है। प्रत्येक माह की सप्तमी व अष्ठमी को लघु मेला तथा वर्ष में एक बार माता का बडा मेला लगता है। मेले में स्थानीय लोगों सहित दूर-दराज के के लोग आते है तथा श्रद्वापूर्वक माता की पूजा-अर्चना व दर्शन करते है। मनौती पूर्ण होने पर श्रद्वालु यहां बच्चों,नव शिशु व विवाहित महिलाओं की जात भी देते है। इसके साथ ही बच्चो का मुंडन संस्कार भी यहां कराते हैं। समय के बदलाव के साथ मेले में लोगों के मंनोरजन के लिए भी इन्तजाम किए जाने लगे। मेले में विभिन्न प्रकार के आयटमों की दुकानों सहित मनोरंजन के लिए झूले,सर्कस,सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है,इसके साथ ही कुश्ती दंगल व खेलकूद प्रतियोगिताएं का आयोजन होता है। माता की श्रद्वा व आस्था के कारण भरतपुर रियासत के महाराजा,राजा,ठाकुर सहित कई राजनीतिक लोग भी आ चुके है। जिनमें महाराजा सूरजमल के द्वारा मन्दिर की स्थापना के बाद 1912 से 2023 तक महाराजा बृजेन्द्र सिंह,मुख्यमंत्री,राज्यपाल,सांसद,विधायक,जिला प्रमुख,प्रधान, भामाशाह,समाजसेवी आदि शामिल हो चुके है।

– यह रहेगा मेले का कार्यक्रम
माता देवी मेला कमेटी,ग्राम पंचायत एवं गांव के सर्व समाज के द्वारा गांव बल्लभगढ में 15 अप्रेल से माता देवी का 112 वां मेला शुरू होगा,पहले दिन 15 अप्रेल को माता की पूजा-अर्चना,उद्घाटन व ध्वजारोहण,खेलकूद प्रतियोगिताएं होगी। 16 अप्रेल को विशाल कुश्ती दंगल व माता का भव्य श्रृंगार व प्रसादी,अतिथि सम्मान होगा। 17 अप्रेल को मेला का समापन होगा।
– मन्नू-कृष्णा ने शुरू किया मेला
माता के मेले की शुरूआत गांव बल्लभगढ निवासी मन्नू मीणा व कृष्णा मीणा ने साल 1912 में कराई थी,ये दोनों सगे भाई थे और गरीब,किसान व दुःखी व्यक्ति के मददगार। माता देवी व हनुमान के भक्त होने के कारण भरतपुर के महाराजा बृजेन्द्र सिंह एवं गांव के लोगों के द्वारा पहली बार मेला लगवाया और पहलवानों की कुश्तियां कराई। साथ ही हाथी,घोडा-घोडी,ऊंट-ऊंटनी,पुरूष,रथ आदि की दौड कराई। विजेताओं को महाराजा बृजेन्द्र सिंह व मन्नु-कृष्णा सहित गांव के लोगों ने सोना-चांदी के उपहार भेंट किए।
– ससुराल जाते समय करते थे दर्शन
भरतपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सूरजमल की ससुराल पडौसी गांव सलेमपुर कलां में थी,जिनका विवाह गांव सलेमपुर कलां निवासी महारानी हंसियां के साथ हुआ। महारानी हंसियां एवं उनकी पडौसी गांव बल्लभगढ निवासी एक युवती सखी थी,ये दोनों माता देवी की भक्त थी। महारानी हंसियां के आग्रह पर गांव बल्लभगढ में महाराजा सूरजमल ने 1729 में गांव बल्लभगढ की पहाडी पर भव्य माता देवी मन्दिर का निर्माण कराया। जब भी महाराजा सूरजमल अपनी ससुराल सलेमपुर कलां आते-जाते थे, वे माता के दर्शन जरूर करते थे और पूजा-अर्चना कर माता को चुनरी ओढाते थे। महाराजा सूरजमल के अलावा महाराजा जवाहर सिंह,बृजेन्द्र सिंह,राजा मान सिंह,राजा बच्चू सिंह,पूर्व कैबिनेट व महाराजा मंत्री विश्वेन्द्र सिंह,वैर के राजा प्रताप सिंह,हलैना के ठाकुर अतिराम सिंह,पथैना के संस्थापक ठाकुर सार्दुल सिंह,राजस्थान दिवंगत मुख्यमंत्री व बिहार व हरियाणा के दिवंगत राज्यपाल जगन्नाथ पहाडिया,दिवंगत मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर,पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिर्राजप्रसाद तिवारी,पूर्व कैबि जाटव,नेट मंत्री भजनलालपूर्व सांसद पण्डित रामकिसन,पूर्व सांसद बहादुर सिंह कोली,पूर्व सांसद रामस्वरूप कोली,पूर्व राज्यसभा सदस्य शान्ति पहाडिया, स्वतंत्रता सेनानी रमेश स्वामी,विश्वप्रिय शास्त्री,पूर्व जिला प्रमुख द्वारिकाप्रसाद गोयल आदि माता के दर्शन एवं मेले में आ चुके है।


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