प्रयागराज।राजदेव द्विवेदी। नेशनल हाईवे पर बने होटलों, ढाबों और रेस्टोरेंटों में मानक को ताक पर रखकर शंकरगढ़ क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं जो मयखानों में तबदील हो गए हैं। शाम ढलते ही ढाबों व होटलों में जाम छलकने लगते हैं और यह सिलसिला देर रात तक चलता रहता है। ऐसा नहीं है कि शासन या प्रशासन को होटलों, रेस्टोरेंटों व ढाबों में चल रहे मुनाफे के खेल की जानकारी न हो, बावजूद इसके इन ढाबा व होटल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। पीपीजीसीएल से लेकर प्रयागराज के जनपद चित्रकूट सीमा टकटयी तक क्षेत्र में आबकारी नियमों को ताक पर रखकर नियम कानून को ठेंगा दिखाते हुए ग्राहकों को शराब पिलाना होटल व ढाबा मालिकों की फितरत बन चुकी है। अपने प्रतिष्ठानों की रौनक बढ़ाने के लिए खुलेआम नियमों को अनदेखी कर मदिरा पान करवाया जा रहा है।
ढाबा संचालन के लिए जरूरी है लाइसेंस
ढाबा और रेस्टोरेंट उद्योग की शुरूआत करने के लिए स्थानीय प्रशासन जैसे नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत आदि से बिजनेस की परमिशन लेनी होती है। इसके अलावा फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया (एफएसएसएआई) से लाइसेंस और खाद्य सुरक्षा विभाग से फूड लाइसेंस लेना भी अनिवार्य होता है। यहां तक कि ढाबे का नाम रखकर उसका भी रजिस्ट्रेशन कराना होता है।सरेआम रेस्टोरेंट व ढाबों पर बार खुले हुए हैं। होटल व ढाबा मालिक आमदनी को तो कई गुना कर रहे हैं लेकिन प्रदेश सरकार को लाखों रुपए की चपत लगा रहे हैं। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि होटल, ढाबा व रेस्टोरेंट खाना खाने के लिए बनाया जाता है। वहीं पर बैठकर लोग शराब पीते हैं। इन ढाबा व होटल मालिकों के पास बार लाइसेंस तक नहीं होता। बिना बार लाइसेंस के ही नियमों की अवहेलना कर सब काम चल रहा है।ढाबा शहर की हलचल से दूर हाईवे के किनारे पर खोलना चाहिए। प्रायः लंबी दूरी से आने वाले ट्रक और पर्यटकों की बसें एकांत एवं शांतिप्रिय स्थलों पर रुकना पसंद करती हैं। जानकार बताते हैं कि देर रात तक शराब परोसे जाने वाले ढाबों पर प्रशासन की नजर होनी चाहिए। ऐसे ही स्थानों पर मारपीट की घटनाएं होती हैं। तमाम शिकायतों के बाद भी आबकारी विभाग मौन ही बना रहता है। ढावा और रेस्टोरेंटों का धंधा प्रयागराज बांदा राष्ट्रीय राजमार्ग 35 पर तेजी से फल-फूल रहा है।कम पूंजी लगाकर बड़ी आमदनी का ख्वाब देखने वाले अधिकांश लोगों ने इस बिजनेस को अपना लिया है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि हाईवे किनारों पर बने कुछ ढाबों में मानक के अनुरूप खाना नहीं परोसा जाता है। साथ ही खाने की कीमत भी अनाप शनाप मांगी जाती है। ग्राहकों और संचालकों में मारपीट तक हो जाती है।
अहम और बड़ा सवाल
हाईवे के किनारों के अलावा नगर क्षेत्र में भी चलाए जा रहे ढाबों और रेस्टोरेंटों की समय-समय पर जांच क्यों नहीं होती। जबकि प्रशासन की ओर से समय-समय पर जांच कर उचित कार्रवाई भी की जानी चाहिए मगर ऐसा होता कहीं दिख नहीं रहा है।