महाराज श्री के दर्शनार्थ अपार जनसैलाब उमड़ा, “कामां के कन्हैया”व “लाठी वाले भैया” की जय जय कार से सारा वातावरण गुँजाएमान हो उठा, हरि नाम की धूम मच गई
विशाल मंगल कलश यात्रा में अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ा
कामां 20 जुलाई| प्रेमावतार, युगदृष्टा श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एवं विश्व विख्यात संत श्री श्री 1008 स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज के सानिध्य में हो रहे “गुरु पूर्णिमा महोत्सव” के उपलक्ष में सात दिवसीय विराट धर्म सम्मेलन छटे दिन तीर्थराज विमल कुण्ड का 101 किलो दूध से महा अभिषेक व आरती, पूजन के बाद विशाल कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें 1008 सौभाग्यवती महिलाएं विशेष परिधानों में सज सँवरकर सुंदर सजे हुए कलश उठाकर चल रही थी। इस वर्ष जम्मू कश्मीर में हुए अनेक आतंकी घटनाओं में वीर अमर शहीदों व देश में हुई अनेक घटनाओं में बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने के कारण कलश यात्रा मात्र तीर्थराज विमल कुण्ड की परिक्रमा करते हुए ही निकाली गई । कलश यात्रा में क्षेत्रीय व देश भर से आए काफी संख्या में भक्तों ने भाग लेकर बड़ी श्रद्धा और उल्लास पूर्वक फूल-मालाएं पहनाकर व पुष्प वृष्टि करके “श्री गुरु महाराज” “कामां के कन्हैया” “लाठी वाले भैय्या ” की जय जय कार के साथ पूरे यात्रा मार्ग को गुंजायमान कर दिया। जगह-जगह भक्तों ने महाराज श्री का स्वागत किया।
कई स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चों ने भी शोभायात्रा में भाग लिया।कलश यात्रा में आकर्षक ढंग से सुंदर सजे हुए मंगल कलश लेकर सौभाग्यवती स्त्रियां “हरिबोल” तथा “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैया” की जय जयकार बोलते हुए आगे चल रही थी। लोगों ने पुष्प- वृष्टि कर सुंदर मालाएं पहनाकर तथा आकर्षक ढंग से सजी हुई महाराज जी की आरतियाँ उतारीं। अनेक स्थानों पर प्रसाद व जलपान की व्यवस्था भी की गई थी। संपूर्ण कार्यक्रम के दौरान मौसम ने भी सुहावना बनकर खुशी का इजहार किया।
इसके पश्चात महाराज जी ने अखंड रामायण पाठ का शुभारंभ किया, व शाम को महाराज जी के दिव्य प्रवचन हुए। उन्होंने अपने दिव्य ओजस्वी प्रवचन में कहा कि मानव जीवन की सार्थकता मात्र पशु तुल्य अपने तक ही सीमित रहने में नहीं, अपितु किसी के काम आने में हैं। ईश्वर की कृपा से प्राप्त धन, बल, पद, समर्थ्य आदि का भोग या उपयोग ही नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। शांति को जीवन में प्रमुखता से स्थान दें। तीर्थस्थलों , उपासना स्थलों , प्राकृतिक रमणीय स्थलों , हिमालय इत्यादि में शांति मिलती है लेकिन उस शांति को बरकरार रखना या ना रखना हमारे ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का स्मरण मात्र मुख से नहीं साथ ही हृदय से यदि हो तो विशेष लाभदायक होता है । धर्म से , गुरु से , किसी संत से या परमात्मा से यदि आप जुड़े हैं तो आपका और भी अधिक उत्तरदायित्व हो जाता है कि आपके आचरण, स्वभाव, खानपान,वाणी, संगति आदि और भी श्रेष्ठ हो।
अपने धारा प्रवाह प्रवचनों में उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध भावविभोर कर दिया। सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा। कामां के विभिन्न समुदाय द्वारा महाराज जी का स्वागत व सम्मान किया गया।