दुनिया में माँ की कोई उपमा नहींः-हरिचैतन्य पुरी
कामां। संसार में सब की उपमा दी जा सकती है लेकिन माँ कीं नहीं। उप यानी छोटा। उपमा कह कर मां को छोटा न करें। मां का दर्जा कभी छोटा नहीं हो सकता। यह बात दुर्गा अष्टमी के अवसर पर आयोजित धर्म सम्मेलन में हरिकृपा आश्रम के संस्थापक स्वामी हरिचैतन्य पुरी ने कही।
उन्होंने कहा कि देवी जगत की उत्पत्ति के समय ब्रह्मरूप और जगत की स्थिति में हरि रूप धारण कर लेती है। तथा संहार के समय रूद्र मूर्ति बन जाती है। वह देव और मानव जाति के रक्षार्थ युद्ध करते हुए शत्रुओं का संहार करती है। उन्होंने कहा कि महामोह तथा मिथ्या अहंकार रुपी महिषासुर तथा राग-द्वेष आदि मधु-कैटभ को मारने के लिए गुरु उपदेश, सत्संग,राम-कथा व प्रभु वाणी आदि (ये सब एक ही है) कराल कालिका है। काली हाथ में खडग लेकर महिषासुर (वह असुर जो भैसे का रूप धारण कर आया था) भैंसे का नहीं अपितु भैंसा के रूप में आए असुर का वध करती है। आज अनेक स्थानों पर इसी के प्रतीक रूप में भैसों की या अन्य जीवो की बलि का अमानवीय व निंदनीय कृत्य महा अपराध है तथा वेद,शास्त्र,संत,गुरु, प्रभु ज्ञानरूपी खड़ग लेकर हमारे अंतर के राक्षसत्व,पांच चोर,महामोह व मिथ्या अहंकार रुपी महिषासुर का वध करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस संसार में कर्म,विकर्म, अकर्म को समझना बड़ा ही कठिन है। इनको या तो भगवान जानते हैं या तो भगवद तत्व का अनुभव करने वाले महात्मा लोग जानते हैं। अपने मन से कल्पना कर बैठना की यह पाप है, यह पुण्य है, यह अज्ञानता का लक्षण है। परमात्मा के सिवाय ऐसा कौन है जिसको पाप और पुण्य का साक्षात्कार हुआ हो? इसी कारण भगवान खरा खोटा नहीं देखते हैं जो उनकी शरण में आ जाए उसे स्वीकार कर लेते हैं। सुख-दुख,हानि-लाभ,यश-अपयश, जीवन- मृत्यु,अनुकूल-प्रतिकूल सभी में परमात्मा की कृपा का सदैव अनुभव करते हुए प्रभु स्मरण व अपने अपने कर्तव्यों का पालन करते रहने में ही कल्याण है। उन्होंने कहा कि अन्तरदृष्टि(दिव्य नेत्र) खुलने पर परमात्मा या आत्मा का स्वरूप दिखाई देगा। बाह्य चर्म नेत्रों से बाह्य चर्म इत्यादि ही दिखता है। वह दिव्य दृष्टि या तो प्रभु कृपा कर के दे दें, जैसे अर्जुन द्वारा विराट रूप देखने की इच्छा जाहिर करने पर प्रभु कहते हैं कि इन नेत्रों से तू मेरे उस स्वरूप को नहीं देख सकता इनसे तो सभी देख रहे हैं किसने पहचाना? तुझे दिव्य नेत्र प्रदान करता हूं उनसे तू मुझे देख। या गुरु कृपा से प्राप्त हो सकते हैं जैसे व्यास जी संजय को प्रदान करते हैं या ऐसा भक्त या संत दे सकता है, जैसे वाह्य नेत्र ना होने के बावजूद धृतराष्ट्र को संजय ने सारा वृतान्त बता दिया व दिखा दिया।