प्रदेश में पौधारोपण का रिकॉर्ड कायम करने की योजना अव्यवहारिक- पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू

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रिकॉर्ड बनाने के बजाय, धरातल पर हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से काम होना चाहिए

भीलवाड़ा|राज्य सरकार द्वारा पौधारोपण के रिकॉर्ड बनाने की योजना पर सवाल उठाते हुए पीपुल फॉर एनीमल्स के प्रदेश प्रभारी और पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू ने इसे अव्यवहारिक और जल्दबाजी में लिया गया निर्णय बताया है।
बुधवार को भीलवाड़ा में जाजू ने कहा है कि सरकारी कार्यालयों और विद्यालयों में पौधारोपण का जो भारी-भरकम लक्ष्य दिया गया है, वह व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इन संस्थानों में पौधे लगाने के लिए पर्याप्त खाली स्थान नहीं है और अत्यधिक छोटी साइज के पौधे उपलब्ध करवाए गए हैं।
पर्यावरणविद् जाजू ने कहा है कि पौधे चाहे कम संख्या में लगाए जाएं, लेकिन उनकी देखभाल और जीवित रखने की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से तय होनी चाहिए। उन्होंने सरकार से अपील की है कि पौधारोपण अभियानों को केवल रिकॉर्ड बनाने के बजाय, धरातल पर हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाए, ताकि इसके वास्तविक और स्थायी परिणाम देखे जा सकें।

पौधारोपण की विफलता का इतिहास—–
जाजू ने इस संदर्भ में पूर्व में हुए पौधारोपण अभियानों का उदाहरण देते हुए बताया कि पहले भी सरकार ने बड़े लक्ष्य निर्धारित कर करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन इनका धरातल पर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा। उन्होंने वर्ष 2009-11 के हरित राजस्थान अभियान का हवाला दिया, जिसमें 149 करोड़ रुपये की लागत से 4 करोड़ 46 लाख पौधे लगाए गए थे। इसके बावजूद, डूंगरपुर में वर्ष 2011 में एक दिन में 11 लाख 11 हजार पौधे लगाने का रिकॉर्ड बनाने के बावजूद, इनमें से केवल 5 प्रतिशत पौधे भी जीवित नहीं रह पाए।

पौधारोपण में खामियां—-
जाजू ने बताया कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए पौधों की सुरक्षा, खाद और मिट्टी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए आर्थिक सहयोग भी नहीं दिया गया है। कई विद्यालयों में सुरक्षा दीवारें टूटी हुई हैं और दरवाजे क्षतिग्रस्त हैं, जिससे पौधों की सुरक्षा मुश्किल हो जाती है। उन्होंने कहा कि बिना तैयारी के इस प्रकार का पौधारोपण केवल कागजी कार्यवाही की तरह लगता है, जो धरती पर हरियाली बढ़ाने के बजाय, सिर्फ रिकॉर्ड बनाने के उद्देश्य से किया जा रहा है।

पौधारोपण के बाद रखरखाव की कमी–
जाजू ने इस बात पर भी जोर दिया कि पौधारोपण के बाद इन पौधों को जीवित रखने की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। कई विद्यालयों में, पौधे लगाने के स्थान के अभाव में, इनका वितरण छात्रों को कर दिया गया, लेकिन ये पौधे घरों में गमलों में नहीं लगाए जा सकते, जिससे वे नष्ट हो गए।


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