भीलवाडा। करोड़ो वर्षो से पृथ्वी पर प्रकृति ने कार्बन डाई-ऑक्साइड का लेवल संतुलित चल रहा था लेकिन पिछले 150 वर्षों में यह तेजी से बढ़ने लगा। पिछले तीस-चालीस वर्षो में तो हर वर्ष 2-3 प्रतिशत की गति से बढ रहा है। जितना भी फॉसिल फ्यूल का उपयोग किया जा रहा है, उन सबसे कार्बन डाई-ऑक्साइड ही पैदा होता है। वर्ष 1880 से लेकर अब तक धरती का तापमान 1.44 डिग्री से बढ़ चुका है। अगर हमने इस परिवर्तन की गति को नहीं रोका तो प्रकृति हमें तड़पा-तडपा कर मारेगी। पिछले 40 वर्षो में बाढ़ आने की स्थिति चार सौ गुणा बढ गई है, यहां तक की रेगिस्तान में भी बाढ़ आ रही है, जंगलों में आग लग रही है एवं समुद्र में जल का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह बात प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने मंगलवार दोपहर में मेवाड़ चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री की ओर से आयोजित पर्यावरण परिवर्तन एवं सरक्षण के उपाय पर बोलते हुए कही। पर्यावरण में यह परिवर्तन गलत तरीके से एनर्जी उपयोग की वजह से है। हम सब को, प्रत्येक व्यक्ति को अपने एनर्जी उपयोग के विषय में सोचना होगा एवं वृहद स्तर पर फॉसिल फ्यूल के बजाय प्रकृति प्रद्धत सोलर एनर्जी की ओर जाना ही पडेगा। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने एनर्जी उपयोग को कम से कम एक तिहाई से कम करे। इसके लिए एनर्जी एफिसियेन्ट उपकरणों को काम में लेना, अनावश्यक रूप से एसी एवं अन्य उपकरणों का उपयोग बंद होगा। घरेलू उत्पादन को बढाना भी एनर्जी उपयोग कम करने में सहायक होगा क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन में बहुत एनर्जी का उपयोग होता है। प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को गम्भीरता से समझे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मेवाड चैम्बर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ आरसी लोढा ने प्रोफेसर सोलंकी का परिचय देते हुए बताया कि इन्होंने पर्यावरण परिवर्तन एवं रक्षण के हेतु आईआईटी मुम्बई से अवैतनिक अवकाश लेकर पूरे देश में अलख जगाने के लिए भ्रमण कर रहे है एवं पूरे देश में भ्रमण हेतु 11 वर्ष के लिए लम्बी यात्रा पर निकले है। चैम्बर के मानद महासचिव आर के जैन ने कार्यक्रम का संचालन किया।