जिले के सूरवाल का किसान जानकी लाल राजस्थानी भाषा के कैलेंडर में


सवाई माधोपुर 1 अप्रैल। जिले के सूरवाल गांव के किसान जानकी लाल मीणा की गोबर गैस से पर्यावरण की सुरक्षा के जतन को राजस्थानी भाषा के नवसंवत्सर कैलेंडर में सचित्र स्थान मिला है। ये कैलेंडर प्रतिवर्ष राजस्थानी भाषा और संस्कृति प्रचार मंडल, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।
जानकी लाल मीणा की स्टोरी को साहित्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय ने इस प्रकार लिखा है कि सूरवाल गांव के किसान जानकी लाल मीणा के घर में जब भी चूल्हा जलता तो जंगल से काटी गयी लकड़ियों को देख वन प्रदेश को हो रही हानि और चूल्हे से उठते हुए धुएं से बेहाल होती स्त्रियों को देख उनका मन विचलित हो जाता था। पर्यावरण के नुकसान की भी उन्हें बहुत फिकर होती थी। ऐसी स्थिति में जब वे वर्ष 2005 में एक दिन रणथम्भोर की प्राकृतिक सोसाइटी में गए तो वहां बॉयोगैस का प्लांट देखा। उन्होंने जानकारी प्राप्त की तो पता चला कि वह प्लांट गोबर से ही संचालित होता है।
जानकी लाल अभी चौहत्तर वर्ष के हैं और उस समय वो चौवन साल के थे। उन्होंने उसी समय निर्णय ले लिया कि उन्हें भी बायोगैस का प्लांट अपने खेत के पास बने अपने घर में वह प्लांट स्थापित करना है। 2005 में ही उन्होंने उस कार्य को सम्पन्न किया। स्थापना के कार्य में तकनीकी सहयोग प्राकृतिक सोसाईटी का रहा था। फिर, उन्होंने एक गैस चूल्हा खरीदा तथा उससे बायोगैस के कुएं से पाइप के जरिए कनेक्ट कर लिया।
जानकी लाल बताते हैं कि उनके तीन पुत्र और एक पुत्री हैं। 2005 में गांव में बिजली नहीं थी। बच्चे चिमनी या लालटेन के प्रकाश में पढते थे। चिमनी का प्रकाश बहुत कम था और लालटेन का गोला धुएं से काला हो जाता था। तब उनके मन में बायोगैस से पेट्रोमैक्स को जोड़ने का विचार आया और उसे सफलता पूर्वक जोड़कर बच्चों के अध्ययन के लिए समुचित प्रकाश की व्यवस्था भी कर दी। आज चारों बच्चे सरकारी सेवा में कार्यरत हैं।
आठवीं कक्षा तक शिक्षित प्रगतिशील किसान जानकी लाल ने बायोगैस से इंजन संचालित कर खेतों में सिंचाई के लिए भी प्रयुक्त किया था। वे बताते हैं कि उपयोग के बाद शेष रहे गोबर के अपशिष्ट का इस्तेमाल खेतों में खाद के लिए करते हैं इससे रासायनिक खाद पर खर्चा तो कम हुआ ही साथ ही जमीन की उर्वरकता भी बची रही। जानकी लाल मीणा ने इस प्रकार अपना कृषि उत्पादन को व्यय तो बचाया ही तथा अन्य किसानों को बायोगैस प्लांट स्थापित करने की प्रेरणा भी दी। मीणा बताते हैं कि एक भैंस होने पर भी बायोगैस प्लांट को लगाया जाता है|


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