FIR दर्ज नहीं और सात महीनो से जाँच कर रहे है डिप्टी एसपी; वाह री भरतपुर पुलिस
बिना मुकदमा दर्ज किये जाँच कर रहे है डिप्टी एस पी : आरटीआई मे खुलासा : राजा भईया
भरतपुर– जब सयियाँ भय कोतवाल तो डर काहेका यह कहाबत भरतपुर जिला पुलिस पऱ चरित्रार्थ साबित हो रही है मामला पिछले दिनों भरतपुर सेन्ट्रल जेल मे जेलर पूरन चंद शर्मा जेल सिपाही महेश व उनके साथी गुर्गे बड़ी सजा पाये कैदीयो द्वारा जेल के अन्य बंदियों से उन्हें प्रताड़ित कर फोन एप्स द्वारा अबैध चौथ बसूली का है, जिसे लेकर हिंदुस्तान शिवसेना के राष्ट्रीय प्रमुख और दिल्ली हाई कोर्ट के एडवोकेट राजेन्द्रसिंह तोमर राजा भईया ने इसी वर्ष बीस फरबरी को और उसके बाद भी लगातार कई शिकायतें एसपी भरतपुर, थाना प्रभारी सेवर व अन्य संबन्धित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियो के समक्ष सभी साक्ष्यों सहित दर्ज कराई थी, परन्तु अब लगभग सात महीने बीतने के बाद भी उनकी शिकायतों पऱ भरतपुर जिला पुलिस ने आरोपियों के विरुद्ध एफ आई आर तक दर्ज नहीं कि है, राजा भईया को आरटीआई के माध्यम से सूचना दी गई है कि उनकी शिकयतो पऱ डिप्टी एसपी ग्रामीण जिला भरतपुर पुलिस द्वारा अभी जाँच की जा रही है इससे छुब्ध हो कर उन्होंने फिर से ईमेल द्वारा राजस्थान प्रदेश के डीजीपी, आईजीपी भरतपुर रेंज और एसपी जिला भरतपुर को लिखित शिकायतें कि है आज उन्होंने इस बाबत प्रेस नोट जारी करते हुए बताया कि वर्दी वाले ही दागदार वर्दी वालों को बचाने मे जूटे है उनके द्वारा कोग्निजेबल औफेन्स/अपराध का खुलासा करते हुए सात महीने पूर्व दी गई शिकायतों पऱ अभी तक कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जाना और शिकायतों को जाँच के नाम पऱ ठंडे बस्ते मे डालना इस बात को दर्शाता है कि वर्दी ही दागदार वर्दी वालों को मिली भगत कर बचा रही है! एडवोकेट होने के नाते उन्होंने बताया कि दण्ड प्रक्रिया सहिंता की धारा 154 (1) के अनुसार और माननीय सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की फुल बेंच द्वारा एक क्रिमिनल रिट पेटीशन पर पारित लैंड मार्क जजमेंट ललिता कुमारी बनाम राज्य सरकार के आदेशानुसार भी कोग्निजेबल/ संगेय अपराध का खुलासा करने पऱ यदि कोई शिकायत पुलिस अधिकारी को दी जाती है तो वह तुरंत उस पऱ एफ आई आर दर्ज कर कार्यवाही करने के लिए बाध्य है, शिकायत झूंठी है या सच्ची यह भी बाद मे देखा जायेगा! ऐसे कई अन्य आदेश भी मा.सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किये जा चूके है, राजा भईया ने आगे बताया कि नियम व क़ानून के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी शिकायत पऱ एफ आई आर दर्ज करने से पहले मात्र इंक्वेरी/पूछताछ तो कर सकता जिसकी सीमा भी अधिकतम सात दिन की है, परन्तु जाँच नहीं कर सकता,जाँच/इन्वेस्टीकेशन तो एफ आई आर दर्ज होने के बाद या फिर दप्रस.की धारा 202 के तहत संबन्धित कोर्ट के आदेश पर ही कर सकता है? परन्तु लगता है भरतपुर पुलिस ना तो क़ानून को मानती है और ना दण्ड प्रक्रिया सहिंता को मानती है और ना ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को? पुनः भेजी गई शिकायत और आर टी आई जबाब की प्रतियां पत्रकारों को साझा करते हुए उन्होंने आज उपरोक्त बातें कही!