प्रताप नगर में पंच दिवसीय महोत्सव प्रारंभ, 25 जुलाई तक होगी विधान पूजन
जयपुर 21 जुलाई। राजधानी जयपुर में 29 वर्षों में पहली बार चातुर्मास कर रहे आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में शुक्रवार से टोंक रोड़ स्थित प्रताप नगर के सेक्टर 8 दिगंबर जैन मंदिर के भव्य अनुष्ठान स्थल पर पंच दिवसीय मज्जाजिनेन्द्र महाअर्चना विधान पूजन का भव्य आयोजन प्रारंभ हुआ। जिसकी मंगल शुरुवात प्रातः 5.30 बजे मूलनायक भगवान शांतिनाथ स्वामी के कलशाभिषेक के साथ प्रारंभ हुई।
प्रचार संयोजक सुनील साखुनियां और मुख्य समन्वयक गजेंद्र बड़जात्या ने बताया की आचार्य सौरभ सागर महाराज ससंघ सानिध्य में प्रारंभ हुए पंच दिवसीय महासौभाग्य मंगल महोत्सव लगातार 25 जुलाई तक संचालित होगा, जिसमें प्रमुख इंद्र – इंद्राणियों सहित 100 से अधिक श्रावक और श्राविकाएं इस अनुष्ठान में सम्मिलित होकर सिद्ध भगवानों की आराधना कर अपने कर्मों की निर्जरा कर रहे है। शुक्रवार को मुख्य आयोजन अनुष्ठान स्थल पर प्रातः 7.30 बजे से प्रारंभ हुआ जिसमें पंडित संदीप जैन के निर्देशन में मंत्रोच्चार के साथ समाजसेवी अजयकुमार शशि जैन गाजियाबाद वाला परिवार द्वारा ध्वज डंड स्थापित कर ध्वजारोहण किया। इसके पश्चात मंडप प्रतिष्ठा, इंद्र प्रतिष्ठा, सकलीकरण किया गया और विनोद शशि जैन तिजारिया परिवार द्वारा मंगल कलश व राकेश संगीता पाटनी मुशर्रफ परिवार द्वारा अखंड दीपक प्रवज्जलित कर दीपक स्थापना की गई। इस दौरान वर्षायोग समिति गौरवाध्यक राजीव जैन गाजियाबाद वाले, अध्यक्ष कमलेश जैन, मंत्री महेंद्र जैन, कार्याध्यक्ष दुर्गालाल जैन सहित समिति के सभी पदाधिकारियों, महिला मंडल व युवा मंडल ने सभी अतिथियों का स्वागत सम्मान किया। शुक्रवार को महोत्सव के मुख्य अतिथि मनोज सोगानी, वशिष्ठ अतिथि ताराचंद पाटनी, दीप प्रज्वलनकर्ता कैलाशचंद रमेश सेठी व आलोक मित्तल और चित्र अनावरणकर्ता चांदमल बाकलीवाल परिवार भी उपस्थित रहे। प्रातः 8 बजे से आचार्य के सानिध्य में विधान पूजन प्रारंभ हुआ जिसमें इंद्र – इंद्राणियो ने अष्ट द्रव्यों के साथ भाव पूर्वक सिद्ध परमेष्ठियों की आराधना की और अर्घ चढ़ाएं।
विधान पूजन के दौरान प्रातः 8.30 बजे आचार्य सौरभ सागर महाराज ने अपने आशीर्वचन देते हुए अनुष्ठान स्थल पर उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित किया और कहा कि जो प्राणी सौभाग्यशाली होते है उन्हे सिद्धों की आराधना करने का सुख प्राप्त होता है और जिन्हे यह सुख प्राप्त होता है वह उनकी आराधना करते है जिन्होंने स्वयं को सिद्ध कर धर्म, इंसानियत और मानवता की स्थापना की है और अब श्रद्धा के भावों में डुबकर स्वयं को कर्मों की निर्जरा से मुक्त करने के लिए स्वयं को सिद्ध करते है और स्वार्थ, वैभव इत्यादि से स्वयं को दूर रखने की आराधना कर ईश्वर के बताए मार्ग पर चलने की कामना करते है।
आचार्य सौरभ सागर ने कहा की जिस प्रकार कपड़ा हो या रिश्ते या व्यापार सभी को जोड़ने के लिए जुड़ने की आवश्यकता होती है उसी प्रकार धर्म की प्रभावना करने, धर्म का वैभव प्राप्त करने के लिए संस्कार और संस्कृति को भी जोड़ने की आवश्यकता होती है। श्रावक जिस ड्रेस को पहनते है वह केवल कपड़ों से नही बना, उसमें धागे सबसे अहम योगदान होता है कपड़ा और धागा मिलकर ही ड्रेस तैयार करता है ठीक उसी प्रकार रिश्ते है जो कभी जोड़ने से नही बनते रिश्ते बनाने के लिए जुड़ना पड़ता है जैसे व्यापार को बढ़ाने के लिए व्यापारी को कस्टर्म्स की आवश्यकता होती है तभी व्यापार बढ़ता है उसी प्रकार धर्म है जिसकी प्रभावना, प्रचार-प्रसार के लिए संस्कार और संस्कृति की आवश्यकता होती है। प्रत्येक प्राणी को धर्म के प्रचार-प्रसार और प्रभावना के लिए संस्कारों और संस्कृति का पालना करना चाहिए, वही सिद्धों की सबसे बड़ी आराधना है।