अकाल में भी अखण्ड है केलापानी की जलधार
बांसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा मेला यहां भरता है
बागीदौरा|राजस्थान के दक्षिणांचल में स्थित बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर ग्राम पंचायत बारीगामा में स्थित घोटिया आम्बा तीर्थ पौराणिक काल से ऋषि-मुनियों की तपस्थली रहा है। मुम्बई मार्ग स्थित बड़ोदिया से मात्र 15 किमी दूर अरावली पर्वतमालाओं में फैला यह वन्य क्षेत्र आज भी अपनी उर्जा, ओज और आध्यात्म की धारा प्रवाहित कर रहा है। जनश्रुति के अनुसार महाभारतकाल में पाण्डवों ने अज्ञातवास इस क्षेत्र में बिताया था। उस समय शौनक आदि 88 हजार ऋषियों के यहां आने से पाण्डव धर्म संकट में घिर गये। अतिथियों को भोजन नहीं करा पाने से दुःखी द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को याद किया। उस समय श्रीकृष्ण ने यहां शेष बची आम की एक गुठली से पूरा आम्रवृक्ष फलदायी पैदा कर दिया और चावल के एक दाने से क्विंटलों चावल व गेहूं के दाने से पूरी फसल तत्काल बनाकर ऋषियों को भोजन कराने में पाण्डवों की मदद की। इसके अनुसार वागड़ी में गुठली को घोटी और आम्बा अर्थात् आम पैदा किया। तभी से इस स्थान का नाम घोटिया आम्बा पड़ा।
वर्तमान में यहां घोटेश्वर महादेव का भव्य मंदिर बना हुआ है। पुराना आम्र वृक्ष तो चिरायु होकर नष्ट हो गया पर उसी स्थान पर दूसरा आम्र वृक्ष बड़ा हुआ। पहाड़ों से रिस्ते पानी का पवित्र कुण्ड बना हुआ। कहा जाता है कि ऋषियों की प्यास बुझाने के लिए महाबली भीम ने इस स्थान पर गदा प्रहार किया तो मीठे पानी की जलधार निकली जिसे कुण्ड का स्वरुप दिया गया। इस कुण्ड के पानी से स्नान करने से चर्म रोग खतम हो जाता है। विशेषकर किसान वर्ग अपने पशुधन की सुरक्षा एवं सुस्वास्थ्य को लेकर यहां मन्नत मानते हैं। घोटेश्वर महादेव मंदिर में पांचों पाण्डवों, माता कुन्ती एवं द्रौपदी की श्वेतवर्णी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। इस स्थान को धाम के रुप में विकसित किया गया है। यहां विविध निर्माण कार्य हुए हैं। इनमें विशाल प्रवेश द्वार, आकर्षक सीढ़ियां,पानी के फव्वारें,मुख्य मंदिर के सामने विशाल यज्ञ मण्डप,सभागार,निष्कलंक मंदिर, हनुमान मंदिर सहित कईं प्रतिमाएं यहां स्थापित की गई हैं।
प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को विशाल मेला भरता है। यह बांसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा मेला है इसमें राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु मेले में शिरकत करते हैं। लगभग पांच किलोमीटर की परिधि में लगनेवाले मेला स्थल पर मनोरजंन के लिए विशालकाय झूले लगाये जाते हैं। पारम्परिक वाद्ययंत्रों में ढोल, ढोलक, कुण्डी, थाली, तानसुरा, तम्बूरा, करताल सहित कई सामग्री बड़ी संख्या में बेची जाती है। विशेषकर नमकीन, मिठाई और ठण्डे पेय पदार्थों की दुकानें मेलार्थियों के आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। लोक कलाकारों के द्वारा रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम में दी जानेवाली प्रस्तुतियां मेलार्थियों का मन मोह लेती हैं। मेले में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए प्रशासन द्वारा व्यापक स्तर पर प्रबन्ध किये जाते हैं। वहीं खेलकूद प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती हैं। रबी की फसल कटने के बाद किसानों के चेहरे पर खुशी छाई रहती है ऐसे में इस जनजाति अंचल में खरीददारी और मनोरंजन के लिए यह मेला नई उर्जा देनेवाला होता है। इस वर्ष यह मेला 5 अप्रेल से प्रारम्भ होगा। 8 अप्रेल को अमावस्या होने से इस दिन मेला चरम पर रहेगा। केलापानी नामक स्थान मुख्य घोटेश्वर मंदिर से उपरी भाग में तीन किमी दूर है। यहां बारहो मास गोमुख से मीठे पानी की अखण्ड जलधार बहती रहती हैं वहीं यहां केले के पेड़ बहुतायत में लगे हुए हैं। कहा जाता है कि अकाल के समय भी केलापानी स्थित जलधार कभी सूखती नहीं है। ये जानकारी -सुधीर पाटीदार वरिष्ठ अध्यापक (विज्ञान)
राबाउमावि बागीदौरा (जिला-बांसवाड़ा) ने दी।